सारनाथः एक पोस्टमार्डन स्टोरी टेलर
पिछले दिनों सारनाथ बैनर्जी का तीसरा ग्राफिक नावेल द बर्न ओल्स वंडरस कैपर्स सामने आया है. काफ्का की शैली में रेखांकन के जरिए एक पोस्टमार्डन शैली में कथा कहने वाले सारनाथ ने कॉमिक विधा को एक सचमुच की वयस्कों की विधा में बदल दिया. उनके पहले उपन्यास कॉरीडोर का नायक डिजिटल दत्ता दरअसल भारत के पढ़े-लिखे युवा की दुविधा से भरी मनःस्थिति को व्यक्त करता है. उसके आसपास बॉलीवुड, मदर इंडिया, कार्ल मार्क्स, चे ग्वेरा और सेक्स की इमेजेज मंडराती रहती हैं.
दरअसल ग्राफिक नावेल टर्म अब भारत के लिए भी अनजान नहीं रह गया. भारत में इसकी शुरुआत करने का श्रेय दरअसल सारनाथ बैनर्जी को ही जाता है. लेखक, चित्रकार और फिल्ममेकर सारनाथ बैनर्जी ने कई साल पहले कोलकाता की पृष्ठभूमि पर कॉरीडोर नाम से ग्राफिक नॉवेल लिखा जो काफी पॉपुलर हुआ. इसके बाद सारनाथ ने अनिंद्य राय के साथ एक पब्लिशिंग हाउस की शुरुआत की, इस प्रकाशन से भारत का दूसरा ग्राफिक नॉवेल द बिलीवर्स सामने आया.
अमेरिका से शुरू होकर सारी दुनिया में पॉपुलर इस विधा को भारत मे शुरू करना श्रेय सारनाथ बैनर्जी को जाता है, मगर उन्होने इस विधा को बहुत निजी किस्म के आग्रहों के चलते अपनाया. वे बताते हैं कि उनकी किशोरावस्था का एक बड़ा हिस्सा कॉमिक्स के साथ गुजरा.युवा होने पर उनकी दिलचस्पी डाक्यूमेंट्री तथा म्यूजिक वीडियो में थी. मगर जब उन्होंने इस क्षेत्र मे हाथ आजमाना चाहा तो उन्हें निराशा हाथ लगी. इसके बाद वे ग्राफिक नावेल की ओर मुड़ गए. कोलकाता में 1972 की पैदाइश सारनाथ ने यूनीवर्सिटी आफ लंदन से इमेज एंड कम्यूनिकेशन में मास्टर डिग्री हासिल की है. सारनाथ की दिलचस्पी शार्ट मूवीज तथा इंडिपेंडेंट सिनेमा में भी है. इन दिनों वे दिल्ली में रहकर स्वतंत्र रूप से लेखन कर रहे हैं.
सारनाथ बैनर्जी जानते हैं कि कॉमिक्स के क्षेत्र में काम करने के दौरान आप अपने काम को बहुत सी सतही किस्म की रचनाओं के बीच प्रस्तुत करते हैं, मगर वे मानते हैं कि एक अच्छा ग्राफिक नावेल इस दुविधा से उबर सकता है. वे मानते हैं कि ग्राफिक नावेल उनका अपना निजी तरीका है कहानी कहने का. यूं भी वे खुद को एक कलाकार से पहले स्टोरी टेलर मानते हैं. सारनाथ बैनर्जी की अपनी वेबसाइट भी है, जहां पर उनके उपन्यासों के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है और उनकी कला के नमूने भी देख जा सकते हैं.