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ट्रांसजेंडर, यूनीसेक्स और लैंगिक भ्रम के वातावरण में असुरक्षित नारी

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हाल ही में आयुष्मान खुराना की एक फिल्म आई थी "चंडीगढ़ करे आशिकी।" इस फिल्म में जो थीम थी, वह ऐसे विषय पर थी जिस पर बात करने में कोई भी भारतीय सहज नहीं हो सकता है। इसमें नायिका जो थी, वह दरअसल एक ऐसी नायिका थी, जिसका जन्म तो लड़के के रूप में हुआ था, परन्तु चूंकि उसे यह अनुभव होता था कि वह लड़का नहीं लड़की है तो उसने अपनी सर्जरी करवा ली थी और वह लडकी बन गयी थी। जाहिर है कि इस विषय को कॉमेडी के तड़के के साथ प्रस्तुत किया गया था, परन्तु इसमें जो एक बड़ी गलती दिखाई गयी थी वह था नायिका का फिगर भी लड़कियों के रूप में बदल जाना। जबकि वास्तविक जीवन में यह देखा गया है कि जिन भी पुरुषों ने सर्जरी के उपरांत अपना लिंग परिवर्तन करवाया है, वह पूरी तरह से नहीं बदले और उनके भीतर पुरुषों वाला कठोरपन रह ही गया।

Women not secure in an environment of Transgender, Unisex

जैसे मिस वर्ल्ड के गाउन को डिजाइन करने वाला या कहें करने वाली सायशा शिंदे पहले स्वप्निल हुआ करती थी। सायशा शिंदे ने इसी वर्ष यह स्वीकार किया था कि वह ट्रांस जेण्डर हैं और उन्होंने स्वप्निल से सायशा तक की यात्रा की थी।

एकाएक इन नामों का उभरना कोई षड्यंत्र है क्या?

'चंडीगढ़ करे आशिकी' की नायिका हो या फिर स्वप्निल से सायशा तक की यात्रा करने वाली सायशा, या फिर नाज़ जोशी या फिर सुशांत दिवगीकर, ऐसे उदाहरणों के माध्यम से लैंगिक एवं यौनिक पहचान के प्रति जो भ्रम उत्पन्न किया जा रहा है वह केवल सैंदर्य प्रसाधन का नया बाजार तलाशने की मुहिम भर नहीं है। उससे भी आगे ऐसा करके पुरुष बोध को विकृत किया जा रहा है।

इसी विकृति को बाजारवादी मीडिया का एक वर्ग प्रचारित भी कर रहा है जो न केवल पुरुष बोध को विकृत कर रहा है बल्कि पूरी तरह से स्त्री विरोधी एवं प्रकृति विरोधी भी है। महिलाओं को यह कहने में क्रांति का अनुभव होता है कि वह ट्रांस महिलाओं का समर्थन करती हैं, या फिर उन्हें स्वीकारती हैं, परन्तु क्या उन्हें यह पता भी है कि कैसे यह विकृति उनके लिए भी ऐसी चुनौतियां ला रही है, जो उन्होंने भी कभी नहीं सोची होगी।

वह उन्हें एक ऐसे खतरे की ओर लेकर जा रही है, जो उनके पूरे के पूरे अस्तित्व को निगलने के लिए तैयार बैठा है। स्त्री पुरुष के प्राकृतिक संबंधों को नकार कर वह एक ऐसे अजगर को निमंत्रित कर रही हैं जो उनके अस्तित्व को ही निगल जाएगा। स्त्री और पुरुष का सम्बन्ध प्रकृति का सम्बन्ध है। यह सम्बन्ध अस्तित्व को अनुभव करने का सम्बन्ध है। भारतीय जीवन दर्शन में स्त्री प्रकृति है और पुरुष को विराट आकाश के रूप में देखा गया है। दोनों के मिलन से ही नई सृष्टि का निर्माण होता है। परन्तु जब कोई पुरुष किसी भ्रम के चलते यह हठ करे कि वह स्त्री है, और लिंग परिवर्तन करवा लेता है तो उसके दुष्परिणाम क्या हो सकते हैं, यह हम विदेशों से कुछ उदाहरण से जान सकते हैं!

लिया थॉमस की स्टोरी

अमेरिका में पिछले दिनों एक विवाद काफी चला था और वह था कि लिया थॉमस नमक ट्रांस-जेंडर व्यक्ति जिसने सर्जरी न कराते हुए मात्र हार्मोनल थेरेपी के माध्यम से ही स्वयं को महिला घोषित करवाया था, उसने महिलाओं की तैराकी प्रतियोगिता में भाग लिया था और कई रिकार्ड्स अपने नाम कर लिए थे। इस बात को लेकर बहुत विवाद हुए थे और लड़कियों ने दबे स्वर में कहा था कि यदि यही रहा तो सारी प्रतियोगिताओं में लिया थॉमस की ही जीत होगी क्योंकि शरीर से तो वह आदमी ही थी। उसकी शारीरिक शक्ति लड़कियों की तुलना में कहीं अधिक थी।

यह भी लड़कियों की ओर से आपत्ति व्यक्त की जाती थी कि वह लिया की उपस्थिति में कपड़े नहीं बदल पाती थीं, और न ही लिया को अपनी उपस्थिति में कपड़े बदलते देख सकती थीं क्योंकि वह लैंगिक रूप से आदमी ही थी। यह तमाम समस्याएं आ रही थीं और बार-बार लड़कियों की ओर से विरोध किये जा रहे थे। यही कारण है कि अब तैराकी की वर्ल्ड गवर्निंग बॉडी फीना ने महिला श्रेणी में ट्रांसजेंडर को सम्मिलित करने से इंकार कर दिया है और कहा है कि तीसरी श्रेणी बनाई जाएगी!

यहाँ तक कि ओलम्पिक्स में भी महिलाओं की प्रतिस्पर्धाओं में ट्रांसवुमन की अनुमति दे दी गयी है। उनके कुछ अपने मापदंड हैं। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के ट्रांस एथलीट्स के निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के लिए कुछ मापदंड हैं और जिनकी पूर्ति के बाद न्यूजीलैंड की एक ट्रांसवुमन खिलाड़ी ने भाग लिया था।

जिसे यह माना जाता है कि महिलाओं के साथ अन्याय है, परन्तु ओलम्पिक समिति इसे ऐसा नहीं नहीं मानती है। उसने फीना का भी विरोध किया है कि उसने क्यों तैराकी में ट्रांसवुमन के लिए तीसरी श्रेणी बताई है।

खतरा इसे कहीं अधिक बड़ा है!

खतरा इससे कहीं अधिक बड़ा है। भारत में भी जो लिंग परिवर्तन की सर्जरी हो रही हैं, उनमें आदमियों द्वारा महिला बनने के आंकड़े बहुत अधिक हैं। ऐसा क्या है जो महिला बनने की इतनी ललक उत्पन्न हो रही है? क्या इसमें भी विदेशों की तरह कुछ षड्यंत्र है?

पिछले दिनों स्कॉटलैंड की पुलिस ने यह नियम बनाया था कि वह बलात्कार के मामले में पुरुष अंग वाले अपराधियों द्वारा किये गए अपराधों को भी "महिला" द्वारा किया गया अपराध कहेगी, यदि अपराधी कहता है कि वह महिला है! स्कॉटलैंड पुलिस ने आगे कहा था कि इससे कोई भी अंतर नहीं पड़ता कि उस आदमी ने सर्जरी कराई है या नहीं, परन्तु यदि वह कहता है कि वह महिला है, तो वह महिला ही है और अपराध को महिला द्वारा किया गया अपराध मना जाएगा।

इस बात पर बहुत हंगामा हुआ था और एक समय में लिब्रल्स की प्रिय रहीं हैरी पॉटर की लेखिका जे के रोव्लिंग ने भी इसका विरोध किया था तो उस लॉबी ने उनका इस हद तक विरोध किया था कि उनका लिबरल का प्रमाणपत्र तो निरस्त किया ही, उन्हें ट्रांसोफोबिया फैलाने वाला बताया गया।

ट्रांसवुमन कैदियों ने असली महिलाओं का बलात्कार किया था

यह भी देखने में आया कि ट्रांसवुमन अर्थात लिंग परिवर्तन कराकर या बिना सर्जरी के खुद को औरत कहने वाली ट्रांस-वुमन ने असली महिलाओं का बलात्कार किया। बीबीसी ने एक ऐसी लेस्बियन अर्थात समलैंगिक महिला की आपबीती साझा करते हुए लिखा था कि उसके साथ ट्रांसवुमन ने बलात्कार की कोशिश की। उसका कहना था कि वह महिलाओं के साथ सम्बन्ध बनाना चाहती है, परन्तु जो जन्म से महिलाएं हैं, न कि लिंग परिवर्तन कराकर बनी महिलाएं!

अप्रैल में इंग्लैण्ड में एक कंज़रवेटिव सांसद ने कहा था कि वर्ष 2012 से 2018 के बीच कई ट्रांसवुमन ने असली महिलाओं के साथ बलात्कार किया है। उन्होंने कहा था कि "महिलाओं के साथ जो भी हिंसा है वह आदमियों ने की है, फिर भी अब नई श्रेणी देखी गयी है जो खुद को महिला कहती है और बायोलोजिकल रूप से आदमी हैं!"

इस बात पर हंगामा हो रहा है और कहा जा रहा है कि यह अतिश्योक्ति है और पहले ही खतरे में ट्रांस-समूह को जानबूझकर अपराधी घोषित कर रहा है।

परन्तु भारत में इस मुद्दे को लेकर अभी तक कोई स्पष्ट समझ नहीं आ पाई है कि आखिर यह खतरा क्या है? क्यों इतनी संख्या में आदमी अपना लिंग परिवर्तन करा रहे हैं?

भारत में भी इस विकृति को कुछ लोगों द्वारा महिमामंडित किया जा रहा है और आदमी से औरत बनीं औरतों को फैशन शो में शो-स्टॉपर बनाया जा रहा है। उनके लिए मिस इंडिया, मिस वर्ल्ड जैसी उनकी भी सौन्दर्य प्रतियोगिताएं हो रही हैं, और वह शीघ्र ही उन क्षेत्रों में अपना हस्तक्षेप कर सकती हैं, जो पूर्णतया लड़कियों के लिए है। तो ऐसे में महिलाओं के लिए न केवल कैरियर विकल्प कम होने का खतरा है बल्कि सबसे बड़ा खतरा है उनकी सुरक्षा का जिसकी ओर अभी किसी का ध्यान नहीं जा रहा है।

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(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)

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Women not secure in an environment of Transgender, Unisex
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