सेक्स स्ट्राइक पर क्यों है अमेरिकी लिबरल महिलाएं?
बीते शुक्रवार को अमेरिकी उच्चतम न्यायलय द्वारा गर्भपात के अधिकार को खत्म कर दिया गया। इस फैसले को लेकर अब वहां की लिबरल समाज की औरतें एक ऐसी हड़ताल पर चली गयी हैं, जिसके विषय में सोचा भी नहीं जा सकता था। वह लोग अब सेक्स स्ट्राइक पर चली गयी हैं। गर्भपात का अधिकार मांगने वाले समूह की औरतें प्रदर्शन कर रही हैं, और उन्होंने अब यह कहना आरम्भ कर दिया है कि वह लोग सेक्स हड़ताल पर हैं!
क्या है मामला और क्यों है प्रदर्शन?
अमेरिका में महिलाओं का एक बड़ा वर्ग गर्भपात की आजादी चाहता है, जो उसे वहां के उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 1973 में दिया गया था। यह मामला था "रो बनाम वेड" का! इस मुकदमे के बाद महिलाओं को यह अधिकार था कि पहली तिमाही में महिला गर्भपात करा सकती थी, परन्तु दूसरी तिमाही में कुछ प्रतिबन्ध थे और उसके बाद तीसरी तिमाही में पूर्णतया प्रतिबंधित था। और अब गर्भपात का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के उपरांत पूरी तरह से समाप्त हो गया है।
जहां इस बात को लेकर परम्परावादी एवं धार्मिक समूह प्रसन्न हैं तो वहीं उन्मुक्तता की बात करने वाला वर्ग कुपित है। गर्भपात को लेकर लगभग हर मत एवं हिन्दू धर्म की दृष्टि समान है कि जीवन अनमोल है और उसे इस प्रकार नष्ट नहीं किया जा सकता है। हाँ, जब माँ को स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या हो या फिर भ्रूण में ही जीने की सम्भावना न हो, तो ऐसे में गर्भपात का प्रावधान है।
फिर भी यह मानना ही होगा कि जहाँ "सेक्युलर" भारत में गर्भपात पर कोई रोक नहीं है, अर्थात 20 सप्ताह तक महिला गर्भपात करा सकती है, उसके उपरान्त स्वास्थ्य समस्याओं या फिर दुष्कर्म आदि के मामलों में गर्भ ठहरना और पता न चलना जैसे कई प्रावधान हैं, जिनमें चिकित्सीय सलाह में गर्भपात कराया जा सकता है। परन्तु ईसाई बाहुल्य अमेरिका, जहाँ पर ईसाई मत का वर्चस्व है, वहां पर अब इसे पूर्णतया प्रतिबंधित कर दिया गया है।
दरअसल ईसाई देशों में गर्भपात को लेकर संकीर्णता है। आयरलैंड में सविता का मामला हम सभी को याद होगा जब सविता का गर्भपात नहीं किया गया था, और सविता की मृत्यु हो गयी थी। उस समय उनके पति प्रवीण ने यही कहा था कि सविता माँ बनने को लेकर बहुत खुश थी, मगर बाद में उनके बहुत तेज दर्द दर्द होने लगा था और फिर जब वह लोग गर्भपात के लिए गए तो अस्पताल में यह कहकर गर्भपात के लिए मना कर दिया गया कि कैथोलिक देश में गर्भपात की अनुमति नहीं है।
अमेरिका में भी वहां के न्यायालय द्वारा गर्भपात को प्रतिबंधित करने के निर्णय पर कैथोलिक धर्म गुरु प्रसन्न हैं, वेटिकन ने भी इसका स्वागत किया है। परन्तु लिबरल महिलाएं इसे लेकर बहुत अधिक गुस्से में हैं। उनका कहना है कि उन्हें अधिकार होना चाहिए कि वह यह निर्धारित कर सकें कि आखिर उन्हें गर्भ चाहिए या नहीं! बच्चा चाहिए या नहीं!
ऐसी ही महिलाओं ने अमेरिका में यह नया तरीका निकाला कि जब तक उच्चतम न्यायालय यह कानून वापस नहीं लेता, तब तक वह सेक्स के लिए हाँ नहीं कहेंगी। तो वहीं दूसरी ओर एक बड़ा वर्ग उन महिलाओं का भी है जो इस निर्णय के पक्ष में हैं और कह रही हैं कि गर्भपात की अनुमति महिलाओं के पास नहीं होनी चाहिए। फिर भी यह आन्दोलन अब हिंसक हो चला है। इन महिलाओं का यह तर्क है कि उन्हें अब गर्भपात के लिए दूसरे देश जाना होगा।
यह सोचने योग्य बात है कि आखिर क्या कारण है कि गर्भपात का अधिकार महिलाओं के लिए इतना महत्वपूर्ण हो गया है? यह महिला के स्वास्थ्य को लेकर कोई समस्या है जैसे आयरलैंड में सविता के मामले में थी, तो गर्भपात की अनिवार्यता समझी जा सकती है, परन्तु जो महिलाएं विवाह में, बच्चों में और न किसी सामाजिक व्यवस्था में विश्वस नहीं रखती है, वह इस बात के लिए क्यों आन्दोलन कर रही है कि पूरी दुनिया की महिलाओं को सेक्स करना बंद कर देना चाहिए?
क्या यह व्यक्तिगत अय्याशियों या फिर कहें कि उन्मुक्त यौन सम्बन्धों के कारण हो रहा है? क्योंकि यह कोई जीवन या मृत्यु का मामला है ही नहीं! तमाम ऐसे माध्यम है जिससे बच्चे को गर्भ में आने से रोका जा सकता है, फिर जीवन को क्यों नष्ट करना? वहीं उद्योगपति एलन मस्क ने भी एक रोचक ट्वीट को अपनी प्रोफाइल के साथ पिन किया है जिसमें लिखा है कि अमेरिका में जन्मदर पिछले पचास वर्षों से बहुत तेजी से गिरी है! और यह भी लिखा कि जितना व्यक्ति अमीर होता है, उसके उतने ही कम बच्चे होते हैं!
तो क्या हम यह मानकर चलें कि यह सेक्स स्ट्राइक जैसे शब्द एक बार उसी कथित फेमिनिज्म के गर्भ से निकला शब्द हैं, जो परिवार को नष्ट कर चुका है, जो महिलाओं के सहज सौन्दर्य को मार चुका है, जो स्त्री और पुरुष के सम्बन्धों की पवित्रता में अपना विष घोल चुका है और अब वह गर्भपात को एक "जैविक" प्रक्रिया बताकर उसे इतना आम कर देना चाहता है कि शिशु और माँ के मध्य स्नेह का सम्बन्ध ही न पनप सके।
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