इंडिया गेट से: युवाओं के हिंसक आन्दोलन के पीछे कौन?
कृषि कानूनों और सीएए के खिलाफ चले आन्दोलन की तरह अग्निपथ योजना के खिलाफ चल रहा आन्दोलन भी सिर्फ इस योजना के खिलाफ नहीं है।
नई दिल्ली, 20 जून: अग्निपथ योजना के खिलाफ चल रहा हिंसक आन्दोलन सिर्फ अग्निपथ के खिलाफ नहीं है। जैसे कृषि कानूनों के खिलाफ चला आन्दोलन सिर्फ कृषि कानूनों के खिलाफ नहीं था। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चला हिंसक आन्दोलन सिर्फ उस कानून के खिलाफ नहीं था। उसी तरह अग्निपथ योजना के खिलाफ चल रहा आन्दोलन भी सिर्फ इस योजना के खिलाफ नहीं है।
मैंने जितने भी आंदोलनों का जिक्र किया है, उन सबके पीछे राजनीति और सांप्रदायिकता छिपी है। इन सभी आंदोलनों में समानता है। कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलन के वक्त भाजपा नेताओं और भाजपा कार्यालयों पर हमले किए गए थे। अब अग्निवीर योजना के खिलाफ आन्दोलन में भी वही हो रहा है और केंद्र सरकार को अपने नेताओं की सुरक्षा करनी पड रही है।
मोदी सरकार के दुबारा सत्ता में आने के बाद चले इन सभी आंदोलनों में एक समानता और है। वह समानता यह है कि समुदाय विशेष और विचारधारा विशेष के लोग हर आन्दोलन में कूद रहे हैं, इसलिए हिंसक आन्दोलन के पीछे काम कर रही शक्तियों की पहचान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एसआईटी गठन करने के लिए याचिका दाखिल की गई है। अग्निवीर योजना के खिलाफ हिंसक आंदोलनों के पीछे वही शक्तियाँ काम कर रही हैं, जो नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक आन्दोलन कर रहीं थी या हाल ही में नूपुर शर्मा के खिलाफ हिंसक आन्दोलन कर रहीं थी। युवाओं के आन्दोलन के नाम पर वही लोग मुहं पर काले, सफेद और भगवे स्कार्फ पहन कर ट्रेनें जला रहे हैं और भाजपा नेताओं पर हमले कर रहे हैं।
जिन आंदोलनों का मैंने जिक्र किया है, उन सभी आंदोलनों को विपक्षी दलों का समर्थन मिला था और अब अग्निपथ योजना के खिलाफ भी विपक्ष खड़ा हो गया है। जिस तरह राहुल गांधी ने कृषि कानूनों के बारे में कहा था कि केंद्र सरकार को ये क़ानून वापस लेने ही पड़ेंगे, उसी तरह उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार को अग्निपथ योजना वापस लेनी ही पड़ेगी। राजनीतिक दल अब किसी मुद्दे पर गुण दोष के आधार पर स्टेंड नहीं लेते, बल्कि सरकार के खिलाफ चल रहे किसी भी आन्दोलन के समर्थन में खड़े हो जाते हैं। योजना में अनेक खामियां हैं, जिनपर विचार किए बिना सेना में इतना बड़ा बदलाव खतरनाक भी साबित हो सकता है। लेकिन विपक्ष उन सवालों को नहीं उठा रहा, केवल आन्दोलन को राजनीतिक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
अग्निपथ योजना के खिलाफ चल रहे हिंसक आंदोलन के समय दो छात्र आंदोलनों की याद आती है। पहला जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में चला 1974-75 का संपूर्ण क्रान्ति आन्दोलन, और दूसरा वीपी सिंह सरकार के समय 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ चला छात्र आन्दोलन। इन दोनों ही आंदोलनों में युवाओं ने सार्वजनिक संपत्ति को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया था। जेपी आन्दोलन इतना शांतिपूर्ण था कि आपातकाल लगने के बावजूद युवा सत्याग्रह करके गिरफ्तारियां देते रहे।
मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ युवाओं ने अपनी आहुति देकर आरक्षण का विरोध किया था। जबकि वीपी सिंह उस समय मंडल आयोग की सिफारिशों का राजनीतिक हित के लिए इस्तेमाल कर रहे थे। जब मेहम काण्ड को आधार बना कर देवी लाल ने वीपी सिंह सरकार से इस्तीफा दे दिया था, राम विलास पासवान और शरद यादव उन के साथ जाने को तैयार खड़े थे, तब अपनी सरकार बचाने के लिए वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कर दी थीं। मैं यह उदाहरण इसलिए दे रहा हूँ क्योंकि यह सेना में भर्ती का इन्तजार कर रहे युवाओं का आन्दोलन नहीं है। यवाओं ने कभी भी हिंसक आन्दोलन नहीं किए। जब भी हिंसक आन्दोलन हुए उस के पीछे जेएनयू वाली विचारधारा विशेष और शाहीन बाग़ वाली विध्वंसक शक्तियाँ काम कर रही थीं।
मंडल आयोग की सिफारिशों को अन्य पिछड़े वर्ग के वंचित युवाओं को नौकरियों में आरक्षण को क्रांतिकारी कदम कहा गया था। अब सेना में व्यापक बदलाव के लिए लागू की जा रही अग्निवीर योजना को भी युवाओं के रोजगार से जोड़ कर क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है, क्योंकि इस योजना से तीनों भारतीय सेनाओं के सैनिकों की औसत उम्र घट जाएगी। मैं यह नहीं कहता कि अग्निपथ योजना सही है या गलत है, लेकिन नरेंद्र मोदी ने वीपी सिंह की तरह कुर्सी बचाने के लक्ष्य से यह योजना लागू नहीं की है, इस में उन का कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं है।
हालांकि योजना कई सवाल खड़े करती है और योजना को लागू किए जाने का समय भी गलत है। अगर रक्षा मामलों की संसदीय स्थाई समिति में विचार विमर्श कर लिया जाता तो राजनीतिक दलों का स्टेंड वहीं पर साफ़ हो जाता। संसदीय समितियां इसीलिए बनाई गई हैं कि व्यापक विचार विमर्श हो जाए। हिंसक आन्दोलन के बाद सरकार ने अग्निवीर सैनिकों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए कई योजनाओं का ऐलान किया है, जिनमें 25 फीसदी को सेना में स्थाई नौकरी के अलावा रक्षा मंत्रालय में दस फीसदी आरक्षण, अर्धसैनिक बलों और असम राइफल में दस फीसदी आरक्षण, कोस्ट गार्ड और मर्चेंट नेवी में अग्निवीरों के लिए दरवाजे खोले जाएंगे।
लेकिन, उन गंभीर सवालों का कोई जवाब नहीं दिया गया है, जो देश की सुरक्षा से जुड़े हैं, और जिन्हें पूर्व सैनिक उठा रहे हैं। किसी भी देश की सेना सीमाओं की सुरक्षा करने और देश में शान्ति बनाए रखने के लिए एक स्थाई फ़ोर्स होती है। सैनिक अपने देश के लिए जान की बाजी लगाने के जज्बे से भरे होते हैं। जिम्मेदारी भरा यह कार्य चार साल के लिए भर्ती हुए अस्थाई बन्दोबस्त से संभव ही नहीं हो सकता, क्योंकि इसके लिए अनुभव और प्रतिबद्धता की जरूरत होती है। इसलिए यह देश की सुरक्षा के साथ समझौता करने वाली योजना है। सैनिकों का राष्ट्र के साथ जीवन भर का अनुबंध होता है, इसे चार साल के लिए सीमित क्यों करना?
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
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