BJP in Jatland: भाजपा से जाट छिटके, अब जाटव पर अटके
जाटलैंड में भाजपा के लिये चुनौती दोगुनी हो गई है। एक तरफ जाट-गुर्जर वोटर उससे छिटकता दिख रहा है तो दूसरी तरफ जाटव वोटर चंद्रशेखर के प्रभाव में सपा-रालोद गठबंधन से जुड़ रहा है।
BJP in Jatland: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पराजय से हताश-निराश सपा-रालोद गठबंधन को खतौली की जीत ने संजीवनी दे दी है। खासकर, जब जाट और दलित वोट भाजपा की बजाय रालोद प्रत्याशी को मिला है। सपा गठबंधन को लगने लगा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वह एक दशक से यूपी में चले आ रहे भाजपा के विजय अभियान की लगाम थामकर उसे केंद्र की सत्ता से बाहर कर सकता है।
यह भरोसा अकारण नहीं है। दलित नेता चंद्रशेखर रावण के प्रभाव में जिस तरह पश्चिमी यूपी के दलितों के बड़े वर्ग ने सपा-रालोद गठबंधन को वोट किया है, वह ट्रेंड लोकसभा चुनाव में आंशिक भी बना रहा तो यह समीकरण पश्चिमी यूपी की एक दर्जन सीटों पर असरकारी प्रभाव डालेगा, जिसका सीधा नुकसान भाजपा को होगा। विशेषकर सहारनपुर और मेरठ मंडल की सीटों पर जहां चंद्रशेखर का खासा प्रभाव है।
पश्चिमी यूपी में आगरा, सहारनपुर, अलीगढ़ तथा मेरठ मंडल में गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर, बागपत, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा और फतेहपुर सिकरी सीट आती है। इस बेल्ट की सभी तेरह सीटों पर दलित खासकर जाटव वोट निर्णायक भूमिका अदा करता है। जाटव मतदाताओं की बदौलत ही बसपा पश्चिमी यूपी में लंबे समय तक मजबूत ताकत बनी रही।
भाजपा के लिये सबसे बड़ी दिक्कत यह सामने आई है कि पश्चिमी यूपी को साधने के लिये भाजपा ने जिन जाट वोटरों पर दांव खेला, खतौली उपचुनाव में उन्हीं जाटों ने उसे गच्चा दे दिया। यह तब हुआ, जब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, पश्चिमी यूपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष मोहित बेनीवाल तथा स्थानीय सांसद एवं केंद्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान जाट समुदाय से आते हैं।
ऐसे में भाजपा के लिये चुनौती दोगुनी हो गई है। एक तरफ जाट-गुर्जर वोटर उससे छिटकता दिख रहा है तो दूसरी तरफ जाटव वोटर चंद्रशेखर के प्रभाव में सपा-रालोद गठबंधन से जुड़ रहा है। यह जुड़ाव भाजपा के हिंदुत्व वाली राजनीति के लिये सबसे बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है। खतौली उपचुनाव की तरह जाट, गूर्जर और दलित सपा-रालोद गठबंधन के साथ चला गया तो मुसलमानों के साथ मिलकर वह भाजपा का पूरा खेल खराब कर सकता है।
पश्चिमी यूपी में जाट एवं गूर्जर से बड़ा वोट बैंक जाटवों का है। पश्चिम की सीटों पर जाटव वोटरों की संख्या 12 फीसदी से लेकर 33 फीसदी तक है। बसपा के कमजोर होने के बाद जाटव वोटर अपने लिये नई जमीन तलाश रहा है। मायावती के दौर वाली पीढ़ी भले बसपा के साथ जुड़ी हो, लेकिन नई पीढ़ी का युवा चंद्रशेखर रावण को अपना रोल मॉडल मानने लगा है और युवाओं का रुझान तेजी से रावण की तरफ बढ़ा है।
चंद्रशेखर रावण की पार्टी अकेले भले ही भाजपा पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाये, लेकिन गठबंधन के साथ आने पर यह असर भगवा दल के लिये नुकसानदेह साबित हो सकता है। पूरे उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा वोट बैंक होने के बावजूद भाजपा के पास एक भी ऐसा जाटव चेहरा नहीं है, जिसके सहारे वाले इस प्रभावशाली जाति का वोट अपनी तरफ खींच सके। दलित के नाम पर भाजपा ने कुछ नेताओं को आगे बढ़ाया, लेकिन जाटवों में उनका कोई प्रभाव नहीं है।
भाजपा ने पश्चिमी यूपी में दलित के नाम पर खटीक चेहरों को प्रमुखता दी, लेकिन एक दो लोकसभा सीटों को छोड़कर यह कहीं भी प्रभावी नहीं हैं। बुलंदशहर सुरक्षित सीट से भोला सिंह सांसद हैं, जो खटीक समुदाय से आते हैं। लोकसभा में खटीक वोटरों की संख्या 30 से 35 हजार है। मेरठ जिले से आने जीते दिनेश खटीक को भाजपा ने मंत्रिमंडल में शामिल कर रखा है, लेकिन वह अपनी विधानसभा के बाहर कोई प्रभाव नहीं रखते हैं।
हाथरस से राजवीर बाल्मिकि तथा आगरा से एसपी बघेल सांसद हैं। इन जातियों के वोट कुछ विधानसभा सीटों तक प्रभावी हैं। भाजपा गैर जाटव दलित वोटरों को तो अपने साथ जोड़ने में सफल रही है, लेकिन जाटव वोटर अब भी उससे दूर है। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जिन जिलों में जाटव प्रत्याशी उतारे वहां पार्टी को इसका लाभ मिला।
दूसरी तरफ वोटरों का एक छोटा समूह सपा-रालोद गठबंधन को हराने के नाम पर भाजपा की तरफ तो आया, लेकिन वह उससे पूरी तरह जुड़ता नजर नहीं आ रहा है। भाजपा की तरफ से जाटव वोटरों को साधने के जो प्रयास किये गये अब तक वह नाकाफी साबित हुए हैं। भाजपा के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जो जाटव वोटरों को जोड़ने की ताकत रखता हो।
मायावती को टक्कर देने के लिये भाजपा ने जाटव वर्ग से आने वाली कांता कर्दम और बेबी रानी मौर्या को आगे बढ़ाने की भरसक कोशिश की, लेकिन इनका अपने इलाके से बाहर कोई प्रभाव नहीं है। भाजपा ने कांता कर्दम को राज्य सभा भेजा तो बेबी रानी मौर्य को यूपी कैबिनेट मंत्री बनाकर जाटवों को जोड़ने की कोशिश की, लेकिन पश्चिमी यूपी में चंद्रशेखर रावण का प्रभाव इन दोनों पर भारी है।
भाजपा यह मानकर चल रही है कि बसपा के उपचुनाव में नहीं उतरने से चंद्रशेखर रावण का असर काम कर गया, लेकिन यह आंशिक सच है। चंद्रशेखर तेजी से मायावती की शिथिलता से उपजे शून्य को भरता जा रहा है। अभी चंद्रशेखर का प्रभाव भले ही पश्चिमी यूपी के दो-तीन मंडलों तक सीमित हो, लेकिन जैसे-जैसे बसपा सिमटती जायेगी, वैसे-वैसे चंद्रशेखर की प्रासंगिता बढ़ती जायेगी।
भाजपा ने 2024 से पहले जाटव वोटरों को जोड़ने की मजबूत पहल नहीं की तो जाटों के छिटकने की दशा में उसे पश्चिमी यूपी में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। जाट नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद भी जाटों का रालोद गठबंधन से जुड़ जाना भाजपा की रणनीतिक हार है। इस हार को जीत में बदलना है तो भाजपा को किसी भी कीमत पर जाटव वोटरों को अपने साथ जोड़ना होगा, जिसकी संभावना फिलहाल कम नजर आ रही है।
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