Maharashtra Karnataka Dispute: सीमा विवाद के नाम पर सियासत साधने की कोशिश
कर्नाटक महाराष्ट्र का सीमा विवाद दोनों ही प्रदेशों की सीमा से ही नहीं, सियासत से भी जुड़ा है। जब भी किसी प्रदेश में चुनाव पास आता है, सीमा विवाद हिलोरे मारकर खड़ा हो जाता है।
Maharashtra Karnataka Dispute: अमित शाह ने भले ही गृह मंत्री के तौर पर अधिकारिक रूप से महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकारों से कह दिया हो कि सीमा विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक कोई किसी भी तरह का दावा न करे। उन्होंने यह भी कहा है कि इस मुद्दे का हल सड़क पर नहीं हो सकता, लेकिन सड़कों पर संग्राम जारी है। दोनों राज्यों के बीच सीमा पर यातायात अवरुद्ध है, हजारों गाड़ियां जा नहीं पा रही हैं और लाखों लोग परेशान। तोड़ फोड़ तो चालू है, राजनीतिक जंग भी रोके नहीं रुक रही। हालांकि, महाराष्ट्र - कर्नाटक सीमा विवाद पर एकनाथ शिंदे के नेतृत्ववाली बालासाहेब की शिवसेना और बीजेपी ने फिलहाल चुप्पी साध ली है, लेकिन सियासत भड़क उठी है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस के मुखिया शरद पवार ने संयमित पासा फेंकते हुए कहा है कि सीमा पर हालात चिंताजनक है। तो उनकी सांसद बेटी सुप्रिया सुले ने संसद में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई पर महाराष्ट्र को तोड़ने का आरोप लगाते हुए महाराष्ट्र के लोगों के कर्नाटक प्रवेश पर पिटाई का आरोप भी लगाया है। शिवसेना सांसद संजय राऊत ने कहा कि जैसे चीन हमारे यहां घुसा है, वैसे ही हम कर्नाटक में घुसेंगे। कर्नाटक के मुख्यमंत्री आग भड़का रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र में कमजोर सरकार है जो इस पर कोई स्टैंड नहीं ले रही।
संजय राऊत से पहले 9 दिसंबर को लोकसभा में एकनाथ शिंदे की शिवसेना के सांसद धैर्यशील माने ने भी इस मुद्दे को उठाया था। उन्होंने कहा था कि कर्नाटक के मराठी भाषी इलाकों में विरोध हो रहा है, आंदोलन हो रहे हैं और मुख्यमंत्री बोम्मई के बयानों से वहां आतंक का माहौल है। वैसे, उद्धव ठाकरे जब मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने तो जनवरी 2021 में विवादित इलाके को 'कर्नाटक अधिकृत महाराष्ट्र' ही कह डाला था।
दरअसल, भाषाई आधार पर राज्यों का गठन इस पूरे विवाद की जड़ है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद सन 1957 से है, जब अन्य प्रदेशों की तरह ही भाषा के आधार पर महाराष्ट्र व कर्नाटक का पुनर्गठन हुआ। महाराष्ट्र का कहना है कि कर्नाटक के उन गांवों को महाराष्ट्र में मिलाया जाए, जहां मराठी बोलने वालों की आबादी ज्यादा है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई ने कुछ वक्त पहले महाराष्ट्र के अक्कलकोट और सोलापुर में कन्नड़ भाषी इलाकों के कर्नाटक में विलय का बयान दिया था, और कहा था कि सांगली जिले के कुछ गांव कर्नाटक में शामिल होना चाहते हैं। सन 2004 में महाराष्ट्र सरकार इस सीमा विवाद को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई जहां कर्नाटक के मराठीभाषी 814 गांव उसे सौंपने की मांग की थी। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 30 नवंबर को सुनवाई हुई थी। उसी के बाद मामला और गरमा गया।
हालात की संवेदनशीलता को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने सीमावर्ती इलाके के निवासी अपने वरिष्ठ मंत्री चंद्रकांत पाटिल और शंभुराज देसाई को सीमा विवाद के समन्वय के लिए नियुक्त किया। दोनों को कर्नाटक के बेलगावी भेजकर महाराष्ट्र एकीकरण समिति के कार्यकर्ताओं से सीमा विवाद पर चर्चा का फैसला किया। महाराष्ट्र एकीकरण समिति वह संगठन है जो बेलगावी और कुछ अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों के महाराष्ट्र में विलय के लिए संघर्ष कर रहा है। लेकिन कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से सीमावर्ती जिले में कानून-व्यवस्था की स्थिति प्रभावित होने का हवाला देते हुए मंत्रियों का बेलगावी दौरा रद्द करवा दिया।
6 दिसंबर को मामला भड़क गया। बेलगावी को कर्नाटक का अभिन्न हिस्सा बताने वाली संस्था कर्नाटक रक्षण वेदिके ने महाराष्ट्र की बसों पर हमला किया, गाड़ियों को रोका, प्रदर्शन किया व ट्रकों पर पथराव किया, तो पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया। जवाब में उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने पुणे में कर्नाटक की बसों पर कालिख पोती, और महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाके में कर्नाटक बैंक के एटीएम के बोर्ड़ पर कर्नाटक शब्द पर रंग पोत दिया। महाराष्ट्र से कर्नाटक जाने वाली बसों का यातायात अगले आदेश तक बंद है।
सीमा विवाद की जड़ों में देखा जाए, तो कहते हैं कि जब जब बेलगावी में विधानसभा सत्र होना होता है, उससे पहले सीमा विवाद शुरू हो जाता है। कर्नाटक के बेलगावी इलाके पर महाराष्ट्र अपना दावा करता रहा है। वहां कर्नाटक की अपनी विधानसभा भी है और सरकार का सचिवालय भी। हर साल दिसंबर में यहां की सुवर्ण विधान सौध में विधानसभा का अधिवेशन होता है, और इस साल भी बेलगावी में 19 से 30 दिसंबर तक होना तय हुआ, तो उससे पहले ही 6 दिसंबर को सीमा का विवाद फिर शुरू हो गया।
यह ठीक वैसा ही मामला है, जब महाराष्ट्र विधानसभा का सत्र नागपुर में होता है, तो विदर्भ को अलग राज्य बनाने की मांग कभी तेजी से तो कभी दबी जुबान से उठती रहती है। नागपुर में भी बेलगावी की तरह विधानसभा तो है ही, राजभवन और मंत्रियों के बंगलों सहित वे सारी इमारतें व सुविधाएं भी पहले से हैं। संभव है, ऐसे ही भावनात्मक कारण से हर साल कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच सीमा का टकराव होता रहा है।
कर्नाटक कहता रहा है कि, बेलगावी उसका अभिन्न अंग है, जबकि वहां पर मराठी भाषी आबादी काफी ज्यादा होने के कारण महाराष्ट्र बेलगावी के विलय की मांग करता रहा है, कर्नाटक इसी का विरोध करता रहा है। जबकि वहां के लोग भी महाराष्ट्र में मिलना चाहते हैं। महाराष्ट्र का बेलगावी के उन 814 मराठी भाषी गांवों पर दावा है, जो तत्कालीन बॉम्बे प्रोसिडेंसी का हिस्सा थे। आजादी से पहले महाराष्ट्र को बॉम्बे के नाम से जाना जाता था और वर्तमान कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड बंबई रियासत का ही हिस्सा थे।
आजादी के बाद 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के वक्त बेलगावी नगर पालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्तावित महाराष्ट्र महाराष्ट्र में शामिल किया जाए, क्योंकि यहां मराठी भाषी ज्यादा है। महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने भी बेलगावी निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की तो एक आयोग का गठन हुआ, जिसने 1967 में अपनी रिपोर्ट में 262 गांव महाराष्ट्र में मिलाने का सुझाव दिया। महाराष्ट्र सरकार 2004 में इस पर आपत्ति जताते हुए 814 गांवों की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।
वैसे तो दोनों राज्यों में बीजेपी के प्रभुत्व वाली सरकारें है, लेकिन राजनीति के अपने समीकरण कुछ अलग ही होते हैं। इसीलिए, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस मुद्दे के संवैधानिक तरीके से हल की बात कह रहे है। लेकिन राजनीति के जानकार कहते हैं कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव सिर पर है और बेलगावी में विधानसभा का यह आखरी सत्र है, सो पार्टी के अपने राजनीतिक एजेंडे की मजबूती के लिए यह मुद्दा एक राजनीतिक पासा है, जिसे उछाल तो दिया है लेकिन लोग परेशान हैं और राजनीति उबल रही हैं। हालांकि तत्काल होना कुछ भी नहीं है। जो मामला 66 साल से लंबित है, उसका सुलझना इतना आसान नहीं है। फिर भी देखते हैं राजनीति के रंग क्या गुल खिलाते हैं।
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