इंडिया गेट से: झारखंड में भाजपा कर रही है “ऑपरेशन लोटस” की तैयारी
कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बाद अब झारखंड में ऑपरेशन लोटस होने वाला है। राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस के 18 में से 10 विधायकों ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग किया था। अब कांग्रेस भले ही यह कहे कि महिला और आदिवासी विधायकों ने द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया है, वे भाजपा के साथ नहीं गए हैं, पर उन्होंने क्रास वोटिंग भाजपा के प्रयासों से ही किया है।
इन दस विधायकों ने छिपाया भी नहीं है कि उन्होंने एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया। यही कारण है कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद झारखंड में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने क्रॉस वोटिंग करनेवाले हर एक विधायक से इस बारे में बात भी किया है।
अब झारखंड में आए दिन कांग्रेस विधायकों के गुवाहाटी जाने की चर्चा हो रही है। महाराष्ट्र के अभियान की सफलता के बाद गुवाहाटी और असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा का महत्व बढ़ गया है। हेमंत बिस्व सरमा ने हाल ही में दार्जिलिंग जाकर अनहोनी करके दिखाई है। जब उन्होंने आपसी बैर वाले मुख्यमंत्री और राज्यपाल को एक साथ बिठा दिया था।
नतीजा यह निकला कि ममता बनर्जी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार का समर्थन करने से इंकार कर दिया। इससे बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति बनना सुनिश्चित हो गया। जिसे पहले कड़ा मुकाबला कहा जा रहा था, वह मुकाबला ही नहीं रहा।
राष्ट्रपति पद के चुनाव के बाद झारखंड के कम से कम दो विधायक गुवाहाटी घूम कर आए हैं। इसमें से एक मुस्लिम विधायक हैं, जिसने सरेआम कहा है कि उसने द्रौपदी मुर्मू को वोट किया। दूसरे ईसाई आदिवासी बहुल सीट से जीते विधायक हैं। भाजपा में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में से एक बाबूलाल मरांडी भी एक कांग्रेस विधायक के साथ इस हफ्ते दिल्ली आए और पार्टी के बड़े नेताओं से मिले।
झारखंड में ऑपरेशन लोटस के लिए दो टीमें बनाई गई हैं। इनमें से एक टीम की रहनुमाई असम के मुख्यमंत्री कर रहे हैं, और दूसरी टीम की रहनुमाई एक केन्द्रीय मंत्री कर रहे हैं। बाबूलाल मरांडी भी अपने लेवल पर काम कर रहे हैं, हालांकि उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली है।
झारखंड में ऑपरेशन लोटस दो मोर्चों पर काम कर रहा है। एक टीम महाराष्ट्र की तर्ज पर काम कर रही है जबकि दूसरी टीम बिहार की तर्ज पर काम कर रही है। जैसे महाराष्ट्र में दो तिहाई विधायकों के साथ शिव सेना तोड़ी गई, वैसे ही कांग्रेस के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों को तोड़ने की रणनीति है।
विधायक दल में वैधानिक विभाजन के लिए कम से कम 12 विधायकों की जरूरत है, लेकिन मुश्किल यह है कि कांग्रेस में विभाजन कराने के लिए जरूरी 12 की संख्या पूरी नहीं हो पा रही। हर बार एक दो विधायक कम पड़ जाते हैं। वैसे भाजपा को कम से कम 13 विधायक चाहिए क्योंकि भाजपा के अपने 26 विधायकों, समर्थक दल आजसू के दो विधायकों के साथ अगर कांग्रेस के 12 विधायक आते भी हैं तो यह आंकडा 40 बनता है। जबकि बहुमत के लिए 41 विधायक चाहिए।
भाजपा के पास दूसरा विकल्प नीतीश कुमार की तर्ज पर हेमंत सोरेन को कांग्रेस और राजद से तोड़कर एनडीए में शामिल करवाने का है। आपरेशन लोटस की एक टीम झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से बात कर रही है कि वह नीतीश कुमार की तरह कांग्रेस छोड़ कर एनडीए में शामिल हो जाएं। प्रदेश भाजपा का कोई नेता नहीं चाहता कि झारखंड मुक्ति मोर्चा एनडीए में शामिल हों, क्योंकि ऐसे में मुख्यमंत्री पद हेमंत सोरेन को देना पड़ेगा। वैसे हेमंत सोरेन खुद भी भारी दुविधा में हैं।
उन पर भी जांच और चुनाव आयोग की तलवार लटकी हुई है। पहले जिन दो राज्यों कर्नाटक और मध्य प्रदेश में आपरेशन लोटस हुआ था वहां मुख्यमंत्री पद के दावेदार येदियुरप्पा और शिवराज चौहान की भी मेहनत थी। महाराष्ट्र में भले देवेंद्र फड़नवीस मुख्यमंत्री नहीं बन पाए लेकिन सारी मेहनत उन्हीं की थी। झारखंड में ऑपरेशन लोटस के सफल होने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा येदियुरप्पा, शिवराज चौहान और फड़नवीस जैसे धांसू नेता का अभाव है।
हाल ही में अपनी पार्टी का भाजपा में विलय करके घर वापसी करने वाले बाबूलाल मरांडी विधायक दल के नेता हैं और इस नाते मजबूत दावेदार हैं। पर उनके रास्ते में दो बाधाएं हैं। पहली बाधा तो यह है कि कांग्रेस से बगावत की तैयारी कर रहे कुछ विधायक उनका नेतृत्व मानने को तैयार नहीं हैं। दूसरी यह कि मरांडी की खुद की विधायकी पर तलवार लटकी हुई है।
उनकी पार्टी के तीन में से दो विधायक कांग्रेस में गए थे और उन्होंने मरांडी को पार्टी से निकालने का ऐलान किया था। इस आधार पर स्पीकर के पास उनकी सदस्यता बर्खास्तगी का मामला लंबित है। जैसे ही दलबदल से सरकार बनने की भनक लगी, स्पीकर उनकी सदस्यता निलंबित कर देंगे।
ऐसी स्थिति में तो भाजपा को एक दो और विधायकों के साथ साथ वैकल्पिक चेहरे की भी जरूरत है। भाजपा किसी केन्द्रीय मंत्री या सांसद को मुख्यमंत्री बनाकर भेजने का जोखिम नहीं लेना चाहती। एक विकल्प है, वह है नीलकंठ मुंडा। वह लगातार पांचवीं बार विधायक बने हैं। वह रघुबर दास की सरकार में नंबर दो की हैसियत के साथ भाजपा का बड़ा आदिवासी चेहरा थे।
भाजपा अगर उनको आगे करती है तो ईसाई आदिवासी इलाके के कांग्रेस विधायक आरकाम से उनके साथ आ जाएंगे। लेकिन वह खुद शिवराज चौहान, येदियुरप्पा या देवेन्द्र फडनवीस बनने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए आपरेशन लोटस की तैयारी सीधे दिल्ली से हो रही है।
प्रदेश भाजपा के ज्यादातर नेताओं को इसका अंदाजा नहीं है कि क्या हो रहा है। सब अंधेरे में हाथ-पैर मार रहे हैं। पार्टी आलाकमान अपने भरोसे के लोगों के जरिए कांग्रेस विधायकों के अलावा दो-तीन अन्य विधायकों के भी संपर्क में है। देखते हैं कि किस दिन झारखंड में भी यूपीए सरकार के तख्तापलट की खबर आती है।
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