विधानसभा चुनाव 2018: 'हिंदुत्व' बनाम 'हिन्दू' की राजनीति
नई दिल्ली। देश की राजनीति इस समय हिन्दुत्व के उभार के दौर से गुजर रही है। आज ज्यादातर पार्टियां अपने आप को हिन्दू दिखाने की होड़ में शामिल हैं। मध्यप्रदेश भी इससे अछूता नहीं है, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं। गुजरात के बाद मध्यप्रदेश को संघ की दूसरी प्रयोगशाला कहा जा सकता है। यहां लम्बे समय से भाजपा और संघ का दबदबा है। इस प्रयोगशाला में संघ परिवार से जुड़े संगठनों की गहरी पैठ है और यहां लगातार तीन बार से भाजपा की सरकार है। कांग्रेस इससे पहले गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान "नरम हिन्दुतत्व" के रास्ते पर चलते हुये भाजपा को टक्कर दे चुकी है। अब वो मध्यप्रदेश में भी यही दोहराना चाहती है। मध्यप्रदेश में राहुल गांधी अपने चुनावी अभियान के दौरान पूरी तरह से धर्म के रंग में सराबोर नजर आ रहे हैं। दरअसल गुजरात की तरह मध्यप्रदेश में भी अल्पसंख्यकों की आबादी कम है इसलिये यहां भी वो "हिन्दू चादर" ओढ़कर चुनाव में उतरने की तैयारी में है।
कांग्रेस
का
राइट
टर्न?
कांग्रेस
के
रणनीतिकारों
का
मानना
है
कि
वर्तमान
में
पार्टी
की
इस
दुर्दशा
के
पीछे
सबसे
बड़ा
कारक
पार्टी
पर
"अल्पसंख्यक
तुष्टिकरण"
का
लेबल
है।
भाजपा
भी
लगातार
उस
पर
मुस्लिम
परस्त
पार्टी
होने
का
आक्षेप
लगाती
आई
है।
2014
में
हुई
झन्नाटेदार
हार
के
बाद
जो
एंटनी
कमेटी
गठित
की
गयी
थी
उसने
भी
अपने
रिपोर्ट
में
कहा
था
कि
कांग्रेस
की
छवि
'हिंदू
विरोधी'
पार्टी
की
बन
गई
है
जिसे
दूर
करने
की
जरूरत
है।
अब
लगता
है
राहुल
गांधी
और
उनके
सलाहकारों
ने
एंटनी
कमेटी
की
सिफारिशों
पर
गंभीरता
से
अमल
करना
शुरू
कर
दिया
है।
हालांकि
इसके
पीछे
एक
दूसरी
वजह
देश
और
समाज
पर
हिन्दुत्ववादी
ताकतों
के
बढ़े
वर्चस्व
का
भी
है
जिसके
बाद
सभी
पार्टियां
हिन्दू
दिखने
को
मजबूर
कर
दी
गयी
हैं।
बहरहाल कांग्रेस ने गुजरात और कर्नाटक के बाद अब मध्यप्रदेश में भी संघ और भाजपा से मुकाबले के लिये उन्हीं की पिच यानी हिंदुत्व पर ही खेलने का फैसला कर लिया है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व भी राहुल गांधी के इसी लाईन पर चलता हुआ नजर आ रहा है। इसमें मध्यप्रदेश कांग्रेस के तीनों प्रमुख नेता शामिल हैं, प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलने के बाद कमलनाथ सबसे पहले भोपाल के गुफा मंदिर और दतिया के पीतांबरा पीठ मंदिर गये थे, इस दौरान उन्होंने कहा था कि "मंदिर जाने पर बीजेपी का कॉपीराइट नहीं है"। इसी तरह चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने चुनाव अभियान की शुरुआत महाकालेश्वर मंदिर पर पूजा अर्चना और अभिषेक करने के बाद की थी, इस सम्बन्ध में खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया कह चुके हैं कि "हिंदू धर्म बीजेपी की बपौती नहीं और ना ही बीजेपी ने हिंदू धर्म का ठेका लिया है, हिंदू धर्म हिन्दुस्तान का धर्म है"।
इससे पहले दिग्विजय सिंह अपनी बहुचर्चित नर्मदा यात्रा पूरी कर चुके हैं जिसे भले ही वे निजी यात्रा बताते रहे हों लेकिन यह एक तरह से छवि बदलने की कवायद भी थी। लेकिन मध्यप्रदेश में सॉफ्ट हिन्दुतत्व के रास्ते पर चलते हुये कांग्रेस यहीं नहीं रुक रही है बल्कि इस दौरान लगातार ऐसी घोषणायें भी की गयीं है जिन्हें अभी तक अमूमन भाजपा का कार्यक्षेत्र माना जाता रहा है। कांग्रेस घोषणा कर चुकी है कि राज्य में उसकी सरकार बनी तो वह मध्यप्रदेश को धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाएगी। इसी तरह से पिछले दिनों प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने ऐलान किया था कि 'मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने पर उनकी सरकार प्रदेश के हर पंचायत में गोशाला बनवायेगी और इसके लिये अलग से फंड उपलब्ध कराया जायेगा'। इसके लिये कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर कमलनाथ के फोटो के साथ बाकायदा एक विज्ञापन जारी किया था जिसमें लिखा था, 'प्रदेश की हर पंचायत में गोशाला बनाएंगे, ये घोषणा नहीं, वचन है।' यह घोषणा करते हुये कमलनाथ ने आरोप लगाया था कि "भाजपा गोमाता को लेकर बहुत बड़ी-बड़ी बातें करती है लेकिन करती कुछ नहीं है,प्रदेश में गौशालाओं की हालत बहुत खराब है, सैकड़ों गाय रोज मर रही हैं, भाजपा गाय के नाम पर केवल राजनीति करती है, लेकिन कांग्रेस गाय को तड़पते हुए नहीं देख सकती। इसलिए सड़कों पर आवारा घूम रही गायों को पंचायत स्तर पर गोशाला खोल कर उसमें भेजा जाएगा ताकि वह दुर्घटना का शिकार ना हो सकें"।
कांग्रेस
ने
'राम
पथ'
के
निर्माण
का
भी
वादा
किया
है,
इस
सम्बन्ध
में
दिग्विजय
सिंह
ने
कहा
है
कि
"भाजपा
ने
राम
पथ
का
वादा
किया
था
लेकिन
यह
अभी
तक
बना
नहीं
है।
'नर्मदा
परिक्रमा
के
दौरान
महसूस
हुआ
था
कि
राम
पथ
का
निर्माण
होना
चाहिए
यह
पथ
मध्य
प्रदेश
की
सीमा
तक
बने
इस
पर
हम
विचार
कर
रहे
हैं"।
गौरतलब
है
कि
शिवराज
द्वारा
राम
पथ
बनाने
की
घोषणा
कई
बार
की
जा
चुकी
है
जिसे
वे
अपनी
कई
घोषणाओं
की
तरह
भूल
चुके
थे।
कांग्रेस
अब
शिवराज
के
इस
वादे
को
पूरा
करने
का
दम
भर
रही
है।
कांग्रेस
'राम
वन
गमन
पथ
यात्रा'
भी
कर
रही
है।
जाहिर
है
मध्यप्रदेश
में
हिन्दुत्व
के
मुद्दों
को
लेकर
इस
बार
भाजपा
के
बजाये
कांग्रेस
आक्रमक
नजर
आ
रही
है।
कांग्रेस
की
इस
रणनीति
को
लेकर
भाजपा
दबाव
में
नजर
आ
रही
है।
हिन्दू
बनाम
हिन्दुतत्व
एक
तरफ
जहां
खुद
को
शिवभक्त,
जनेऊधारी
हिंदू
के
तौर
पर
पेश
करने
की
कोशिश
करते
हुये
राहुल
गांधी
मंदिर-मंदिर
घूम
रहे
हैं,
दूसरी
तरफ
आज
के
परिदृश्य
में
वही
एक
ऐसे
नेता
हैं
जो
लगातार
संघ
और
भाजपा
पर
उनकी
हिन्दुत्ववादी
राजनीति
को
लेकर
हमलावर
बने
हुये
हैं।
यह
हमला
इस
कदर
तीखा
है
कि
पिछले
दिनों
लंदन
में
वे
एक
कार्यक्रम
के
दौरान
बोलते
हुये
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक
संघ
(आरएसएस)
की
तुलना
मुस्लिम
ब्रदरहुड
से
कर
चुके
हैं।
दरअसल
राहुल
गांधी
बहुत
बारीकी
से
खेलने
की
कोशिश
कर
रहे
हैं,
यह
संघ
के
हिन्दुत्व
की
परिभाषा
से
अलग
हिन्दू
धर्म
को
क्लेम
करने
की
कोशिश
है।
इसे
सॉफ्ट
हिन्दुतत्व
की
जगह
"हिन्दू
चादर"
को
ओढ़ना
कहना
ज्यादा
मुनासिब
रहेगा।
दरअसल
हिंदुत्व
एक
राजनीतिक
विचारधारा
और
परियोजना
है
जिसे
विनायक
दामोदर
सावरकर
और
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक
संघ
के
संस्थापकों
ने
आगे
बढ़ाया
था,
जबकि
राहुल
हिन्दू
धर्म
की
बात
करते
हैं
जिसका
ज्यादा
संबंध
पहचान
और
आस्था
से
है।
राहुल
गांधी
बार-बार
इंगित
करते
रहे
हैं
कि
कांग्रेस
और
संघ
की
अलग-
अलग
विचारधारा
है।
दिग्विजय सिंह भी लगातार हिन्दू धर्म और हिन्दुतत्व में फर्क समझाने की कोशिश करते रहे हैं। इस सम्बन्ध में उनका एक बयान काबिलेगौर है जिसमें उन्होंने 'हिंदू आतंकवाद' शब्द के इस्तेमाल से इनकार करते हुये कहा था कि मैंने 'संघी आंतकवाद' शब्द का इस्तेमाल किया है। लेकिन इस पूरे बहस में इस बात को भी रेखांकित किये जाने की जरूरत है कि यह भारतीय समाज और राजनीति में संघ और उसकी विचारधारा की ही बढ़त है जिसकी वजह से आज राहुल जैसे नेताओं को अपने हिन्दू पहचान व आस्था को इस तरह से अभिव्यक्त करने के लिये मजबूर होना पड़ा है। प्रारम्भिक तौर पर "हिन्दू चादर" ओढ़ने का फायदा राहुल गांधी को होता दिखाई भी पड़ रहा है। गुजरात चुनाव के बाद से राहुल गांधी की छवि में काफी सुधार देखने को मिला है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में उसका मुकाबला सीधे तौर पर भाजपा से है, इन तीन राज्यों में कांग्रेस के इस रणनीति की असली परीक्षा होनी है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)