West Bengal Elections 2021: बंगाल के सियासी रण में बीजेपी का प्लान क्या है ?
कोलकाता: पश्चिम बंगाल में पहले दौर की वोटिंग में अब 10 दिन से भी कम रह गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अबतक राज्य में दो रैलियों को संबोधित कर आए हैं। उन्होंने कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड से इस अभियान की शुरुआत की थी और गुरुवार को पुरुलिया में टीएमसी और ममता बनर्जी की सरकार को उखाड़ फेंकने की बात करके लौटे हैं। लेकिन, इसकी तैयारी बीजेपी पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से ही कर रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव को उसने अगर सेमीफाइनल माना था तो अबकी बार वह फाइनल खेलने के लिए मैदान में उतरी हुई है। इसके लिए पार्टी ने पिछले कई महीनों से अपने नेताओं-कार्यकर्ताओं की लंबी-चौड़ी फौज वहां पर उतार रखी है। प्रदेश को कई जोन में बांटकर वह अपने मिशन में जुटे हुए हैं। बूथ मैनेजमेंट पार्टी का हमेशा से मजबूत हथियार रहा है और पार्टी इसबार यहां भी इसपर पूरा फोकस कर रही है।
क्या है बीजेपी का मिशन 200 प्लस?
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जनवरी महीने में अपने गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में कहा था कि 'ममता जी के पांव के नीचे से बंगाल की गाड़ी खिसक चुकी है। वो बौखलाहट में हैं।' दरअसल, बंगाल की धरती पर भाजपा को सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ रेस में लाने का सबसे पहला श्रेय गृहमंत्री अमित शाह को जाता है, जो 2016 के बाद से ही लगातार पश्चिम बंगाल पर फोकस किए हुए हैं। बंगाल में बीजेपी के लिए मिशन 200 प्लस का लक्ष्य उन्होंने ही तय कर रखा है। यानी भाजपा प्रदेश की 294 विधानसभा सीटों में से 200 से ज्यादा सीटें जीतने के मिशन पर काम कर रही है। भाजपा के इस लक्ष्य के पीछे पिछले लोकसभा चुनावों में उसका शानदार प्रदर्शन है, जिसमें वह टीएमसी से सिर्फ 3 फीसदी वोट से ही पीछे रह गई थी। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि दो कार्यकालों की एंटी-इन्कंबेंसी और प्रदेश में जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार और सियासी हिंसा से ऊब चुकी जनता के बीच मतों के इस अंतर को पाटकर आगे निकल जाना उसके लिए अब नामुकिन नहीं है। इसीलिए उसने वहां अपनी हिंदुवादी छवि तो पेश की ही है, विभिन्न जातीय समुदायों में भी पैठ बनाने की कोशिश की है। इसमें उसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी बहुत योगदान मिला है।
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क्या है ममता को मात देने का प्लान?
टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी अपनी चोट को जिस तरह से चुनाव में सहानुभूति बटोरने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं, उससे लगता था कि भाजपा उनकी जाल में फंस जाएगी और उसके नेता उनपर निजी हमले शुरू कर देंगे। लेकिन, गुरुवार को प्रधानमंत्री ने उनके जख्मों पर मरहम लगाकर इस चुनावी कुचक्र में नहीं फंसने का रास्ता अख्तियार किया है। यानी पार्टी इस फ्रंट पर ममता को ज्यादा हवा बनाने का मौका देने के मूड में नहीं है। क्योंकि, पार्टी का राज्य में चुनाव जीतने का मुख्य एजेंडा हिंदुत्व पर केंद्रित है और उसमें वह ममता को अपने पिच पर बैटिंग करने को मजबूर कर चुकी है। भाजपा ने मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर उन्हें इस तरह से घेर लिया है कि वो अब कभी चंडी पाठ तो कभी दुर्गा पाठ करती नजर आ रही हैं। असल में पिछले विधानसभा चुनाव में तृणमूल जो 211 सीट जीती थी, उनमें से 98 मुसलमान वोटरों के प्रभाव वाली सीटें थीं। उनमें से करीब 60 पर मुस्लिमों की आबादी लगभग 30 फीसदी या उससे ज्यादा है और 38 पर वह 20 फीसदी के करीब हैं। जबकि, करीब 70 हिंदू बहुल सीटें भी टीएमसी को मिली थीं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने इस फ्रंट पर काफी मेहनत की है। प्रत्याशियों के चुनाव पर इसके लिए बहुत हिसाब-किताब किया गया है। ऊपर से अगर आईएसएफ की अलग से एंट्री के चलते थोड़ा भी मुस्लिम वोट दीदी से छिटका तो भाजपा का काम और आसान हो सकता है। इसके अलावा भाजपा उन जातीय समुदायों पर भी फोकस कर रही है, जो खुद को उपेक्षित महसूस करते आए हैं। समाज के ऐसे वंचित परिवारों में भोजन करने और किसानों के घरों से मुट्ठीभर अनाज जुटाने की पार्टी की योजना उन्हीं भावनात्मक मुद्दों को वोटों में तब्दील करने पर आधारित है।
कौन हैं बीजेपी के स्टार प्रचारक ?
बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में 27 मार्च को होने वाले पहले चरण के मतदान के लिए 40 स्टार प्रचारकों की जो सूची जारी की है, उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह और नितिन गडकरी के अलावा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जैसे नेता शामिल है। इसके अलावा इस फेहरिस्त में पार्टी संगठन के कई कद्दावर नेता और कई केंद्रीय मंत्री और दूसरे राज्यों में पार्टी के मंत्री भी शामिल हैं। इनके अलावा बंगाल में पार्टी को संवारने में जुटे नेताओं में कैलाश विजयवर्गीय, मुकुल रॉय, दिलीप घोष, राजीब बनर्जी, अमित मालवीय, बाबुल सुप्रियो, रूपा गांगुली, देबश्री चौधरी, लॉकेट चटर्जी, मिथुन चक्रवर्ती, यश दासगुप्ता, श्रबंती चटर्जी, पायल सरकार और हिरण चटर्जी जैसे स्टार भी भाजपा के प्रचारकों की लिस्ट की शोभा बढ़ा रहे हैं।
जीती बीजेपी तो कौन बनेगा मुख्यमंत्री?
बीजेपी ने बंगाल में किसी भी नेता को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया है। विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए यह कोई नई रणनीति नहीं है। लेकिन, फिर भी कुछ नाम ऐसे हैं, जो भाजपा के जीतने पर प्रदेश में उसके चेहरे बन सकते हैं। इनमें सबसे पहला नाम प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का है। वो संघ से जुड़े हैं और उन्हें राज्य में अपने दल का कायाकल्प करने में बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। राज्य में एक तरह से उन्होंने ही जमीन पर पार्टी की नींव तैयार की है। हालांकि, उनके लिए यह साफ हो चुका है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। दूसरा नाम पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकल रॉय का लिया जा सकता है। उन्हें कृष्णानगर उत्तर से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद उनको लेकर चर्चे तेज हो गए हैं। रॉय को टीएमसी की नींव हिलाकर भाजपा की जड़ें मजबूत करने वाले नेता के रूप में देखा जाता है। लेकिन, यह भी सच्चाई है कि टीएमसी से भगवा ब्रिगेड में शामिल होने वाले सबसे बड़े चेहरों में से एक रॉय पर पहले बीजेपी के लोग ही भ्रष्टाचर के आरोप लगाते थे। भाजपा के पास चुनाव के बाद एक और चेहरा हो सकता है, वो है राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर तारकेश्वर सीट से चुनाव लड़ रहे पूर्व पत्रकार स्वपन दासगुप्ता का। इसी तरह पार्टी ने केंद्रीय मंत्री और लोकसभा सदस्य बाबुल सुप्रियो को जिस तरह से विधानसभा का टिकट दिया है, उससे इन अटकलों को बल मिल रहा है कि अगर केंद्रीय नेतृत्व की आंखों को भा गए तो उनके नाम की भी लॉटरी लग सकती है। आखिर में एक नाम महाभारत फेम की 'द्रौपदी' यानी रूपा गांगुली का लिया जा सकता है, जो लंबे वक्त से पार्टी के साथ हैं और महिला होने के नाते ममता बनर्जी के बाद भाजपा की ओर राज्य में महिला सीएम का चेहरा बन सकती हैं। हालांकि, ये सारे कयास हैं और हरियाणा, उत्तराखंड और त्रिपुरा में चौंका चुकी भाजपा के लिए कुछ भी पहले से अंदाजा लगाना बहुत ही मुश्किल काम है।