Narada case:'हम मजाक बनकर रह गए हैं...' कलकत्ता HC के सीटिंग जज ने सहयोगी पर ही उठाए सवाल
कोलकाता, 28 मई: कलकत्ता हाई कोर्ट में नारदा स्टिंग केस को जिस तरह से हैंडल किया गया है, उससे असहमति जताते हुए एक सीनियर जज ने हाई कोर्ट के सभी जजों को चिट्ठी लिखकर ऐक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल के न्यायिक आचरण पर सवाल उठा दिया है। मामला इस केस को हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने और सीबीआई कोर्ट से टीएमसी के चार नेताओं को मिली बेल पर रोक लगाने को लेकर है। बता दें कि सीबीआई की विशेष अदालत ने टीएमसी के लोगों की भारी भीड़ और कथित हिंसा के बीच नारदा केस के चारों आरोपी नेताओं और मंत्रियों को जमानत दे दी थी, जिसपर बाद में हाईकोर्ट ने रोक लगा दिया था। हालांकि, आज हाई कोर्ट ने चारों नेताओं को अंतरिम जमानत दे दी है।
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जज
ने
उठाया
ऐक्टिंग
चीफ
जस्टिस
पर
सवाल
इंडियन
एक्सप्रेस
ने
दावा
किया
है
कि
कलकत्ता
हाई
कोर्ट
के
एक
सीनियर
जज
ने
ऐक्टिंग
चीफ
जस्टिस
राजेश
बिंदल
समेत
सभी
सहयोगी
जजों
को
चिट्ठी
लिखकर
कहा
है
कि,
'हाई
कोर्ट
का
अपने
कार्यों
में
निश्चित
एकजुटता
रखनी
चाहिए।
हमारा
आचरण
हाई
कोर्ट
के
गौरव
के
विरुद्ध
हो
रहा
है।
हम
मजाक
बनकर
रह
गए
हैं....
'इसके
बाद
जज
ने
बेंचों
के
निर्धारण
को
लेकर
नियमों
और
कोड
ऑफ
कंडक्ट
का
हवाला
दिया
है।
जज
ने
आरोप
लगाया
है
कि
नारदा
केस
को
बंगाल
से
बाहर
ले
जाने
वाली
सीबीआई
की
याचिका
को
कलकत्ता
हाई
कोर्ट
ने
गलत
तरीके
से
'रिट
याचिका'
के
तौर
पर
लिस्ट
कर
ली
और
इसके
चलते
यह
सिंगल
बेंच
की
जगह
डिविजन
बेंच
को
दे
दी
गई।
जमानत
के
खिलाफ
दी
थी
याचिका
बता
दें
कि
पिछले
हफ्ते
सीबीआई
ने
पश्चिम
बंगाल
के
दो
मंत्रियों
समेत
चार
टीएमसी
नेताओं
की
गिरफ्तारी
के
बाद
मिली
जमानत
के
खिलाफ
यह
याचिका
दायर
की
थी।
इस
याचिका
की
सुनवाई
ऐक्टिंग
चीफ
जस्टिस
बिंदल
की
अगुवाई
वाली
बेंच
ने
की
थी।
सीबीआई
ने
इस
आधार
पर
केस
को
बंगाल
से
बाहर
भेजने
की
मांग
की
थी
कि
अपने
नेताओं
और
मंत्रियों
के
नारदा
केस
में
गिरफ्तारी
के
बाद
प्रदेश
की
मुख्यमंत्री
ममता
बनर्जी
ने
एजेंसी
के
दफ्तर
में
धरना-प्रदर्शन
शुरू
कर
दिया
था।
यही
नहीं
इसने
आरोप
लगाया
था
कि
जब
विशेष
अदालत
में
गिरफ्तार
आरोपी
नेताओं
की
पेशी
होनी
थी
तो
राज्य
के
कानून
मंत्री
भीड़
लेकर
वहां
पर
जा
धमके
थे।
रिट
याचिका
की
तरह
क्यों
हुई
सुनवाई
?
अपनी
चिट्ठी
में
कलकत्ता
हाई
कोर्ट
के
जज
ने
लिखा
है
कि
सीबीआई
की
उस
याचिका
की
सुनवाई
सिंगल
बेंच
में
होनी
चाहिए
थी,
न
कि
डिविजन
बेंच
में।
उनका
तर्क
है
कि
उस
याचिका
में
संविधान
से
जुड़ा
कोई
बड़ा
कानूनी
मसला
नहीं
उठाया
गया
था,
इसलिए
उसे
रिट
याचिका
की
तरह
नहीं
सुना
जाना
चाहिए
था।
यह
चिट्ठी
24
मई
को
लिखी
गई
है।
बता
दें
कि
इसके
ठीक
एक
दिन
पहले
ही
सीबीआई
ने
पश्चिम
बंगाल
के
मंत्रियों
सुब्रता
मुखर्जी,
फिरहाद
हकीम
और
टीएमसी
विधायक
मदन
मित्रा
और
कोलकाता
के
पूर्व
मेयर
सोवन
चटर्जी
को
हाउस
अरेस्ट
में
रखने
के
डिविजन
बेंच
के
निर्देश
के
खिलाफ
सुप्रीम
कोर्ट
का
दरवाजा
खटखटाया
था।
गौरतलब
है
कि
21
मई
को
हाई
कोर्ट
के
ऐक्टिंग
चीफ
जस्टिस
राजेश
बिंदल
और
जस्टिस
अरजीत
बनर्जी
के
अलग
राय
के
बावजूद
हाऊस
अरेस्ट
का
आदेश
पारित
हुआ।
जस्टिस
बनर्जी
बेल
देने
के
पक्ष
में
थे
और
जस्टिस
बिंदल
हाउस
अरेस्ट
के
पक्ष
में।
दोनों
जजों
के
बीच
इस
मसले
की
सुनवाई
के
लिए
5
सदस्यीय
बेंच
गठित
करने
पर
भी
एक
राय
नहीं
थी।
खत
लिखने
वाले
वरिष्ठ
जज
ने
सवाल
उठाया
है
कि
अगर
डिविजन
बेंच
का
फैसला
विभाजित
था
तो
भी
पांच
जजों
की
बेंच
बनाने
की
क्या
जरूरत
थी,
जबकि
सामान्यतया
ऐसी
स्थिति
में
तीसरे
जज
को
शामिल
किया
जाता
है।
इसे भी पढ़ें- नारदा स्टिंग केस में टीएमसी नेताओं को कलकत्ता हाईकोर्ट से राहत, अंतरिम जमानत मिली
इस मामले में सीबीआई ने हाईकोर्ट से कहा था कि सीबीआई कोर्ट ने 'भीड़, दबाव, धमकी और हिंसा की वजह से जमानत दी है।' इसके बाद हाई कोर्ट ने स्पेशल कोर्ट के जमान के फैसले पर रोक लगा दी थी। अब खत लिखने वाले जज का कहना है कि 'न्यायिक निर्णय के लिए मॉब फैक्टर मेरिट का आधार हो सकता है, लेकिन पहली बेंच ने इसे रिट याचिका की तरह लिया, यह पहला सवाल है। '