Bengal election: क्या बंगाल फिर दोहराएगा इतिहास, जानिए कब-कब फेल हुई हैं चुनावी भविष्यवाणियां
कोलकाता: बंगाल में गुरुवार को दूसरे दौर का मतदान होना है। खुद मुख्यमंत्री और सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी का इस चरण में सियासी किस्मत दांव पर लगा हुआ है। उनका इस फेज में अपने ही पुराने सहयोगी सुवेंदु अधिकारी से नंदीग्राम सीट पर महासंग्राम होना है। पहले चरण की तरह इस चरण में भी 30 सीटों पर वोटिंग होनी है। 29 अप्रैल तक कुल 8 चरणों के चुनाव संपन्न होने के बाद 2 मई को नतीजे आने हैं। चुनाव से पहले के ज्यादातर ओपिनियन पोल में दावा किया गया है कि टीएमसी सत्ता में वापसी कर रही है और ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल के मतदाता अगले 5 साल के लिए फिर से शासन की कुर्सी सौंपने वाले हैं। अगर बंगाल के चुनावी इतिहास को देखें तो यहां विरोधियों से बेहतर चुनावी रणनीति बनाने वाली पार्टी, जिसके पास मास लीडर हो, वह सत्ता में वापस लौटती है। इस हिसाब से सारे ओपिनियन पोल ने उसी ट्रेंड पर मुहर लगाने की कोशिश की है। लेकिन, तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है जो बिल्कुल ही अलग इतिहास की गवाही भी पेश करता है।
बंगाल में अनुमानों के विपरीत नतीजों का रहा है इतिहास
दुनिया भर में चुनाव विश्लेषकों के लिए चाहे वो ओपिनियन पोल करें या फिर एग्जिट पोल, उनके सामने दिक्कत सीटों के सही आंकड़े प्रोजेक्ट करने में आती है। जबकि, वोट शेयर का अनुमान लगाना उनके लिए अक्सर उससे ज्यादा आसान साबित होता है। यह दिक्कत जब पश्चिमी देशों में भी आती है तो पश्चिम बंगाल में यह कितनी बड़ी चुनौती होगी इसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। यही वजह है कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जब पूर्वानुमान और असल नतीजों में जमीन-आसमान के फर्क ने चुनाव विश्लेषकों का खूब मुंह चिढ़ाया है। बंगाल में इस सदी में कम से कम ऐसा दो बार हो चुका है कि चुनाव परिणाम अनुमानों के ठीक उलट आए हैं। तथ्य ये भी है कि ओपनियन पोल के मुकाबले एग्जिट पोल की भविष्यवाणियों को ज्यादा वैज्ञानिक माना जाता है। इसलिए बंगाल के लिए अभी सिर्फ ओपनियन पोल ही सामने आए हैं, एग्जिट पोल क्या कहता है और उसमें विभिन्न एजेंसियों के अनुमानों में कितना अंतर होता है, यह तो 29 अप्रैल को अंतिम चरण की वोटिंग खत्म होने के बाद ही पता चलेगा।
2001 के विधानसभा चुनाव में सारे अनुमान फेल हो गए थे
2001 के विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ मीडिया वालों का यह दावा था कि चुनाव नतीजे बहुत ही नजदीकी रहेंगे और यहां तक की उस समय की विपक्षी नेता ममता बनर्जी अगली सरकार तक बना सकती हैं। कहा गया कि तत्कालीन सरकार के खिलाफ जबर्दस्त एंटी-इंकम्बेंसी है और वोटरों में नाराजदी का अंडरकरंट साफ महसूस किया जा सकता है। उस समय लेफ्ट फ्रंट को टक्कर देने के लिए टीएमसी और कांग्रेस ने महाजोत बनाया था,लेकिन सत्ताधारी नेता सारे पूर्वानुमानों की खिल्ली उड़ा रहे थे। लेकिन, चुनाव विश्लेषक अपने-अपने दावों पर अडिग थे और बाद में गठबंधन की महाजीत के दावे तक किए जाने लगे। एग्जिट पोल के बाद तो ममता बनर्जी ने विक्टरी साइन भी दिखाने शुरू कर दिए और संभावित कैबिनेट के सदस्यों की भी घोषणा करनी शुरू कर दी। लेकिन, असल नतीजे एग्जिट पोल के ठीक विपरीत आए। लेफ्ट फ्रंट की सरकार दो-तिहाई बहुमत से सत्ता में वापस लौटी और उसकी सीटों में 1996 के मुकाबले सिर्फ 4 सीटों की कमी आई।
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2016 में भी धरे के धरे रह गए सारे पूर्वानुमान
चुनाव के पूर्वानुमानों ने 2001 में जो झटका ममता बनर्जी को दिया था, वही झटका 2016 में बंगाल के वोटरों ने कांग्रेस-लेफ्ट के गठबंधन को भी दिया था। इस चुनाव में कई बंगाली मीडिया टीएमसी और विपक्षी गठबंधन में कांटे का टक्कर बता रहे थे। लेकिन, जब वोटों की गिनती हुई तो सत्ताधारी टीएमसी ने दो-तिहाई से ज्यादा यानी 211 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की। मतलब, 2001 में ममता बनर्जी मीडिया के अनुमानों वर्ग से चक्कर खा गईं तो 2016 में कांग्रेस-लेफ्ट वाले चकमा खा गए थे। अब सवाल है कि क्या इस चुनाव में बीजेपी के साथ यही होने वाला है? क्या वह सारे पूर्वानुमानों को बदलने हुए सत्ता में आने वाली है? इन सवालों के सटीक जवाब के लिए 2 मई तक का इंतजार करना ही पड़ेगा।
बंगाल में भाजपा किस ट्रेंड पर करे भरोसा ?
अगर बंगाल में चुनावी पूर्वानुमानों का पुराना ट्रेंड भाजपा कैडर में जोश भर सकता है तो वहां पर लोकसभा और विधानसभा में वोटिंग पैटर्न का अलग-अलग ट्रेंड उसे चिंता में भी डाल सकता है। पिछले 12 साल में बंगाल के अलग-अलग चुनावों में वोटिंग का ट्रेंड देखें तो यह एक अलग ही रुझान दिखाता है। मसलन, 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वहां 6.14 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन दो साल बाद ही 2011 के विधानसभा चुनाव में जब प्रदेश के मुद्दों पर वोटिंग हुई तो उसे सिर्फ 4.06 फीसदी वोट मिले। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा मोदी लहर पर सवार थी तो उसका वोट शेयर बढ़कर 17.02 फीसदी तक पहुंच गया। लेकिन, फिर दो साल बाद 2016 के विधानसभा में उसका वोट शेयर घटकर 10.28 फीसदी तक पहुंच गया। इसमें कोई दो राय नहीं कि 2019 में पार्टी को यहां अप्रत्याशित सफलता मिली और उसे 40.25 फीसदी तक वोट हासिल हो गए। बड़ा सवाल यही है कि क्या इसबार बीजेपी लोकसभा और विधानसभा वाला अपना चुनावी ट्रेंड बरकरार रखती है या फिर चुनाव विश्लेषकों के पूर्वानुमानों पर बंगाल के वोटर एकबार फिर से अपने ऐतिहासिक ट्रेंड के मुताबिक पलीता लगाते हैं ?