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उत्तराखंड में दो बुजुर्ग हिंदू बहनों ने ईदगाह को क्यों दान की चार बीघा जमीन ? जानिए

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देहरादून, 4 मई: उत्तराखंड में दो हिंदू बहनों ने सिर्फ अपने पिता की इच्छा का सम्मान करने के लिए करोड़ों रुपये की जमीन एक ईदगाह को दान कर दी है। सबसे बड़ी बात ये है हिंदू परिवार की ओर से इतना बड़ा तोहफा मुसलमानों को ईद के मुबारक मौके पर दिया गया है। जिस व्यक्ति की इच्छा पूरी करने के लिए उनकी बुजुर्ग बेटियों ने ये कदम उठाया है, वह दो दशक पहले ही स्वर्गवासी हो गए थे। इसके जवाब में मुसलमानों ने मंगलवार को उनके लिए खास दुआ मांगी और बड़ी तादाद में उनकी तस्वीर को वाट्सऐप की प्रोफाइल पिक्चर की तरह इस्तेमाल किया।

हिंदू बहनों ने मुसलमानों को दान में दी जमीन

हिंदू बहनों ने मुसलमानों को दान में दी जमीन

उत्तराखंड में इन दिनों 62 साल की अनिता रस्तोगी और 57 साल की उनकी बहन सरोज रस्तोगी की खूब चर्चा हो रही है। इन्होंने अपनी करीब चार बीघा पैतृक जमीन एक ईदगाह को दान में दे दी है। काशीपुर इलाके की ईदगाह कमिटी के हेड हसीन खान ने इसके बारे में बताया है कि 'दोनों बहनों ने अपने दिवंगत पिता की इच्छा के मुताबिक जमीन दान की है। हमने जमीन का कब्जा ले लिया है और बाउंडरी वॉल का निर्माण शुरू कर दिया है। ऐसे समय जब देश में सांप्रदायिक उन्माद का माहौल है, ये इन दोनों बहनों का बहुत ही महान कार्य है। '

ईदगाह के बगल में थी रस्तोगी परिवार की जमीन

ईदगाह के बगल में थी रस्तोगी परिवार की जमीन

यह ईदगाव बैलजुड़ी गांव में धेला नगी पर बने पुल के पास है। ईदगाह कमिटी के पास पहले से ही चार एकड़ जमीन है और मंगलवार को ईद के मौके पर करीब 20,000 मुसलमानों ने यहां नमाज भी अदा की। अनिता और सरोज रस्तोगी के पिता लाला ब्रिजनंदन प्रसाद रस्तोगी की जमीन ईदगाह के बगल में थी। उनके बारे में कहा जाता है कि वो सभी धर्मों का सम्मान करते थे। वह जमीन दान देकर हिंदू और मुसलमानों के बीच रिश्ते को और मजबूत करना चाहते थे, लेकिन ऐसा करने से पहले ही 2003 में उनका निधन हो गया।

19 साल बाद दोनों बहनों ने पूरी की पिता की अंतिम इच्छा

19 साल बाद दोनों बहनों ने पूरी की पिता की अंतिम इच्छा

अपनी मौत से पहले लाला रस्तोगी ने अपनी जमीन अपने बेटों और बेटियों में बांट दी थी। वह जो जमीन दान देना चाहते थे, वह उनकी दोनों बेटियों सरोज और अनिता रस्तोगी के हिस्से की थी। इस समय सरोज यूपी के मेरठ में और अनिता दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहती हैं। पिता के गुजरने के 19 साल बाद दोनों बहनें जसपुर पहुंचीं और राजस्व अधिकारियों से जरूरी प्रक्रिया पूरी करवाने के बाद, जमीन ट्रांसफर करने के लिए काशीपुर की ईदगाह कमिटी के हेड से संपर्क किया।

'ईदगाह कमिटी को दान में रकम भी देते थे रस्तोगी'

'ईदगाह कमिटी को दान में रकम भी देते थे रस्तोगी'

ईदगाह को जमीन देने के बाद सरोज रस्तोगी ने कहा है, 'हमनें कुछ नहीं किया है, सिर्फ अपने पिता की इच्छा के अनुसार जमीन का दान किया है। वह विशाल हृदय वाले आदमी थे और सभी धर्मों का सम्मान करते थे। नमाज की व्यवस्था करने के लिए वे हर साल ईदगाह कमिटी को कुछ रकम भी दान में दिया करते थे।' हसीन खान ने कहा है कि, 'दान में मिली जमीन पर हम वर्षों से नमाज पढ़ रहे हैं। रस्तोगी परिवार खुद ही जमीन की सफाई करवाने के बाद इसे नमाज के लिए उपलब्ध करवाता था। अब मुबारक मौके पर और ज्यादा लोग बिना किसी दिक्कत के नमाज पढ़ सकेंगे।'

'हमें जमीन की अच्छी कीमत मिल सकती थी'

'हमें जमीन की अच्छी कीमत मिल सकती थी'

सरोज रस्तोगी कहा कहना है कि 'हालांकि, जमीन के दाम इन दिनों आसमान छू रहे हैं और जिस जगह पर ये जमीन है, हमें अच्छी कीमत मिल सकती थी। लेकिन, सबसे बड़ी बात कि यह हमारे पिता की इच्छा की बात थी। इसलिए, अपने पिता के सम्मान और उनके विशाल हृदय को देखते हुए हमने जमीन दान कर दी।' वो बोलीं कि 'हम (दोनों बहनें) अपने पिता की इच्छा पूरी करने को लेकर लंबे समय से चर्चा कर रहे थे। जब हम दोनों ने एक तारीख पक्की कर ली तो काशीपुर आ गए।' इस जमीन की कीमत लगभग 1.2 करोड़ रुपये बताई जा रही है।

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पिता की इच्छा का सम्मान करता हूं- राकेश रस्तोगी

पिता की इच्छा का सम्मान करता हूं- राकेश रस्तोगी

ईदगाह कमिटी के प्रमुख खान ने कहा है, 'दोनों बहनों और उनके परिवार वालों की इच्छा है कि जमीन दान देने के लिए चारदीवारी पर लाला जी के नाम की पत्थर की पट्टी लगाई जाए। हम उनकी इच्छा के अनुसार एक पत्थर की पट्टी लगाएंगे।' उधर सरोज और अनिता रस्तोगी के भाई राकेश रस्तोगी ने अपनी बहनों के फैसले के बारे में कहा है, 'जमीन का दान हमारे पिता की इच्छा के अनुसार किया गया है, हमें इस बारे में कुछ भी नहीं कहना है। मैं अपने पिता की इच्छा का सम्मान करता हूं।'(रस्तोगी बहनों की तस्वीर सौजन्य ट्विटर वीडियो, बाकी प्रतीकात्मक)

English summary
Two elderly Hindu sisters in Uttarakhand donated land worth crores of rupees to Muslims for Idgah, fulfilling the wish of the late father
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