Uttarakhand saffron: उत्तरकाशी का सीमांत क्षेत्र महकने लगा केसर की खुशबू से, उत्साहित किसान, अब ये है तैयारी
उत्तराखंड के सीमांत जिले उत्तरकाशी की हर्षिल घाटी और टकनौर क्षेत्र राजमा, सेब के अलावा अब केसर की खुशबू से महकने लगा है। हर्षिल घाटी के अलावा भटवाड़ी तहसील के भंगेली गांव में भी केसर का उत्पादन सफल रहा है। जिससे किसानों में खासा उत्साह है।

30 किलो केसर के बीज करीब एक नाली में लगाया, 70 प्रतिशत सक्सेस
उत्तरकाशी मुख्यालय से 58 किमी सड़क मार्ग और 3 किमी पैदल मार्ग के बाद भंगेली गांव आता है। यहां के प्रधान प्रवीन प्रज्ञान ने सितंबर माह में केसर की खेती प्रारम्भ की। जिसकी 20 से 21 दिन में ही फ्लोरिंग हो गई। किसान प्रवीन ने बताया कि उन्होंने 30 किलो केसर के बीज करीब एक नाली में लगाया। जिसमें से 70 प्रतिशत सक्सेस रहे हैं। उनके करीब 700 से 800 फूल उनके खेत में निकले।
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जंगली सुअर ने भारी नुकसान पहुंचाया
उन्होंने बताया कि गांव के अन्य किसानों ने भी केसर का उत्पादन करना चाहा लेकिन जंगली सुअर ने भारी नुकसान पहुंचाया। जिस वजह से वे इस बार सफल नहीं हुए हैं। प्रवीन का कहना है कि वे अगले साल भी केसर लगाएंगे। जिस तरह का परिणाम इस साल मिला है, उससे वे उत्साहित हैं। उन्होंने बताया कि अब तक जो केसर निकले, उसे उन्होंने कई लोगों को बांटे हैं। उम्मीद है कि अगली बार वे इसको सही तरह से कर पाएंगे।

हर्षिल से करीब 37 किमी पहले भंगेली गांव
प्रवीन ने बताया कि भंगेली गांव सुदूरवर्ती गांव है। जो कि हर्षिल से करीब 37 किमी पहले है। इस गांव में राजमा, चोलाई और आलू का अच्छा उत्पादन होता है। साथ ही अब सेब के पौधे भी लगाए हैं जो कि अच्छा रिस्पांस कर रहे हैं।

लाल सोना के नाम से मशहूर केसर
भारत में केसर के उत्पादन के लिए अभी तक जम्मू कश्मीर पर ही निर्भरता रही है। लेकिन अब हिमाचल और उत्तराखंड में भी इसका उत्पादन शुरू हो गया है। उत्तराखंड में अल्मोड़ा और उत्तरकाशी में इसका ट्रायल किया जा चुका है। लाल सोना के नाम से मशहूर केसर की खेती मई में शुरू होती है और अक्टूबर तक फसल पककर तैयार हो जाती है।

केसर की खेती पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर की थी
उत्तराखंड की हर्षिल घाटी अपनी सुंदरता, सेबों और राजमा के लिए लोकप्रिय है। लेकिन अब हर्षिल घाटी के केसर की पहचान भी जुड़ने जा रही है। इस क्षेत्र के किसान उद्यान विभाग की मदद से सेब के साथ-साथ केसर की खेती में भी अपने हाथ आजमा रहे हैं। जिसके अभी तक बेहद अच्छे परिणाम सामने आए हैं। इस घाटी के हर्षिल, मुखबा, बगोरी,सुक्खी,झाला, धराली में केसर की खेती पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर की थी।

केसर की गुणवत्ता की जांच
कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ के उद्यान विशेषज्ञ डॉ पंकज नौटियाल ने बताया की सबसे पहले 2019 में हर्षिल घाटी के सुक्खी झाला में पालमपुर के सहयोग से प्रयोग के तौर पर खेती की थी। जो सफल रही। डॉ पंकज ने बताया कि जहां भी केसर का उत्पादन शुरू हो रहा है, पहले उस केसर की गुणवत्ता की जांच के लिए उसके नमूने भेजे जा रहे हैं। घाटी का मौसम व मिट्टी मुफीद होने के चलते कृषि विज्ञान केंद्र ने वर्ष 2018-19 में पहले ट्रायल के तौर पर किसानों को केसर के बीज दिए थे। जो कि सफल हुआ है। लैब में केसर में मिलने वाले क्रोसिन, क्रोसेटिन व सेफ्रेनल तत्वों के आधार पर इसकी गुणवत्ता परखी जाती है। इसमें कश्मीर के केसर का सैंपल के साथ भी इसका तुलनात्मक परीक्षण होगा।

केसर में औषधीय गुण भी अद्भुत
केसर दुनिया का सबसे महंगा मसाला है। एक तरह से केसर दुर्लभ मसाला है क्योंकि यह बहुत कम जगहों पर पाया जाता है। इतना दुर्लभ मसाला होने के कारण केसर में औषधीय गुण भी अद्भुत है। केसर को सनसाइन स्पाइस भी कहा जाता है। आयुर्वेद में केसर को पूरे शरीर को स्वस्थ्य रखने का बेहतरीन औषधि माना जाता है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल दूध और दूध से बने रेसिपी में किया जाता है। केसर के अनेक फायदे हैं। केसर में कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं कि यह शरीर की प्रत्येक कोशिकाओं को बाहरी हमले से बचाता है। केसर में मौजूद ये एंटीऑक्सीडेंट्स सेल्स में फ्री रेडिकल्स को बनने नहीं देते, जिससे कोशिकाएं क्षतिग्रस्त नहीं होती। यह आर्थिक का भी सबसे मजबूत विकल्प हो सकता है। एक किलो केसर की कीमत 3 से 4 लाख रूपए आंकी जाती है।
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