Uttarakhand Glacier Burst: साफ मौसम, सटीक कम्युनिकेशन और अच्छी ट्रेनिंग की वजह से बची सैकड़ों की जान
Chamoli Glacier Burst: साल 2013 में आई केदारनाथ आपदा के जख्म अभी भरे भी नहीं थे, इस बीच रविवार को उत्तराखंड के चमोली जिले में एक बड़ा हादसा हुआ, जहां तपोवन इलाके में ग्लेशियर का हिस्सा टूट जाने से अलकनंदा के साथ उसकी सहायक ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी में अचानक बाढ़ आ गई। इस घटना में अभी तक 18 लोगों की जान गई है, जबकि 200 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं। शुरुआत में इस आपदा की तुलना केदारनाथ त्रासदी से की जा रही थी, लेकिन इस बार NDRF, SDRF, ITBP, भारतीय सेना, वायुसेना, उत्तराखंड पुलिस और प्रशासन की मदद से सैकड़ों लोगों की जान वक्त रहते बचा ली गई।
मौसम ने दिया साथ
2013 में 16-17 जून को केदरानाथ में जल प्रलय आया। जिसने रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जिले में भारी तबाही मचाई। उस दौरान पूरे उत्तराखंड में भारी बारिश हो रही थी, जिस वजह से राहत एवं बचाव कार्य में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पहले वहां 21 जून को एक प्राइवेट कंपनी का हेलीकॉप्टर क्रैश हुआ, फिर 25 जून को खराब मौसम की वजह से वायुसेना का MI-17 हेलीकॉप्टर जंगलचट्टी इलाके में पहाड़ी से टकरा गया, लेकिन इस बार मौसम ने बचाव दल का पूरा साथ दिया। चमोली में ठंड तो थी ही लेकिन बारिश और बर्फबारी नहीं होने की वजह से पैदल, वाहन और वायु मार्ग के जरिए रेस्क्यू टीमें वक्त रहते मौके पर पहुंच गईं।
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आपदा के वक्त सटीक कम्युनिकेशन
2013 में मोबाइल का चलन तो काफी था, लेकिन दुर्गम इलाकों में नेटवर्क नहीं रहते थे। पिछले सात सालों में उत्तराखंड ने काफी विकास किया, साथ ही दुर्गम पहाड़ी इलाकों में सरकारी और प्राइवेट कंपनियों ने कम्युनिकेशन की अच्छी व्यवस्था कर रखी है। केदारनाथ में जल प्रलय 16 जून को आया लेकिन तबाही की सही तस्वीर 18-19 जून को सामने आ पाई थी, क्योंकि उस दौरान कई पहाड़ी इलाके ऐसे थे, जहां पर संचार की कोई व्यवस्था ही नहीं थी। चमोली आपदा के दौरान कम्युनिकेशन ने बड़ा रोल अदा किया। तपोवन इलाके में तबाही के आधे से एक घंटे के अंदर पुलिस-प्रशासन को इसकी जानकारी मिल गई, जिस वजह से तुरंत रेस्क्यू टीमों को भेजा ही गया, साथ ही जहां-जहां बाढ़ का पानी तबाही मचाने वाला था, वहां पर वक्त रहते लोगों को आगह कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया गया।
स्टैंडबाई पर थे रेस्क्यू के एक्सपर्ट
केदारनाथ आपदा के वक्त सेना, वायुसेना और नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (NDRF) ने राहत एवं बचाव कार्य चलाया था। साथ ही हजारों लोगों की जान बचाई। इस आपदा के बाद उत्तराखंड की तत्कालीन सरकार ने बड़ा सबक लिया और अक्टूबर 2013 में ही स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (SDRF) का गठन कर दिया। मौजूदा वक्त में इस बल की टीमें हर जिले में मौजूद हैं। साथ ही इन्हें पहाड़ी इलाकों की अच्छी जानकारी भी है। SDRF के इंस्पेक्टर प्रवीण आनंद ने वन इंडिया से बात करते हुए बताया कि उनके जवानों को 42 दिन की बेसिक ट्रेनिंग तो दी ही जाती है, साथ ही माउंटेनियरिंग, सर्च एंड रेस्क्यू समेत कई अलग-अलग तरह के कोर्स करवाए जाते हैं। ये फोर्स स्टेट लेवल पर आपदा से निपटने के लिए हर वक्त स्टैंडबाई पर रहती है। जब चमोली में आपदा आई, तो सड़क मार्ग और पैदल रास्तों से SDRF के जवान ITBP के साथ मौके पर पहुंचे और बड़ी संख्या में लोगों को रेस्क्यू किया।
अभी भी जारी है रेस्क्यू ऑपरेशन
जब ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी में जलस्तर बढ़ने के वीडियो सामने आए तो सभी के रोंगटे खड़े हो गए थे। सबको लगा था कि इससे जानमाल को काफी ज्यादा नुकसान होगा, लेकिन इस बार हालात 2013 से अलग थे। मौसम ने साथ दिया, जिस वजह से रेस्क्यू टीमें वक्त से पहुंचीं और उत्तराखंड पुलिस ने SDRF के साथ बाढ़ से प्रभावित होने वाले इलाकों को वक्त रहते खाली करवाकर सैकड़ों लोगों की जान बचाई। हालांकि अभी भी 200 से ज्यादा लोग लापता हैं। जिनकी तलाश में युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है।
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