कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब उत्तराखंड सरकार पर चौतरफा दबाव, ये दो मुद्दे बने बड़ी चुनौती
कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब उत्तराखंड सरकार पर चौतरफा दबाव
देहरादून, 20 नवंबर। मोदी सरकार के कृषि कानून वापस लेने के ऐलान के बाद अब उत्तराखंड में दूसरे बड़े मुद्दों पर आंदोलन कर रहे आंदोलनकारियों की मांगे तेज हो गई है। जिसमें दो बड़े मुद्दे चुनाव से पहले सुलझने की उम्मीद बंध गई है। पुरानी पेंशन बहाली और देवस्थानम बोर्ड रद्द करने को लेकर सबसे बड़े आंदोलन हो रहे हैं। जो कि अब राज्य सरकार पर दबाव बनाने में जुट गए हैं।
देवस्थानम को लेकर महापंचायत
किसानों के आंदोलन का असर केन्द्र सरकार पर नजर आने के बाद अब पंडा समाज भी उत्तराखंड में महापंचायत कर शक्ति प्रदर्शन करने जा रहा है। इसके लिए 22 नवंबर को देहरादून में चार धाम तीर्थ पुरोहित एवं हकहकूकधारियों ने महापंचायत बुलाई है। तीर्थ पुरोहितों ने ऑनलाइन बैठक कर आगे की रणनीति तैयार की। महापंचायत के संयोजक सुरेश सेमवाल ने बताया कि आगामी 22 तारीख को देहरादून में महापंचायत की महा बैठक का आयोजित करने पर सहमति बनी। बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि चारों धामों के शीतकालीन पूजा स्थलों में जल्दी ही देवस्थानम एक्ट के विरोध में धरना प्रदर्शन एवं आंदोलन शुरू किया जाएगा।
15 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान
महापंचायत ने विधानसभा चुनावों को देखते हुए अपना विरोध भी तेज कर दिया है। साथ ही महापंचायत की और से विधानसभा चुनावों में भी अपने प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है। महापंचायत के अध्यक्ष कृष्णकांत कोटियाल ने कहा कि महापंचायत 15 सीटों पर भाजपा के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारने जा रहा है। इसके लिए महापंचायत विशेष रणनीति पर फोकस कर रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पुरोहितों से 30 नवंबर तक का समय मांगा है। जिसके कारण तीर्थ पुरोहित राज्य सरकार पर चारों तरफ से दबाव बना रहे हैं। विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी उतारने का ऐलान इसी का हिस्सा माना जा रहा है। चारों धामों में गंगोत्री, यमुनोत्री उत्तरकाशी जिले और केदानाथ रुद्रप्रयाग जिले में है। बद्रीनाथ धाम चमोली जिले में स्थित है। लेकिन चारों धाम के पुरोहित समाज और स्थानीय लोगों का 15 विधानसभा सीटों पर असर है। जिससे पंडा समाज भाजपा सरकार के खिलाफ मुश्किलें खड़ी कर सकता है। पंडा समाज का ये निर्णय कांग्रेस के लिए संजीवनी देने का काम कर सकता है।
पुरानी पेंशन बहाली की मांग तेज
कृषि कानून की तरह केन्द्र की मोदी सरकार ने कर्मचारी भी पुरानी पेंशन को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। इसके लिए राज्य कर्मचारी, राज्य सरकार पर भी दबाव बना रही है। जिससे राज्य सरकारों की तरफ से केन्द्र को इस मुद्दे पर सहमति भेजी जा सके। अब मोदी सरकार के कृषि कानून को लेकर लिए गए फैसले के बाद अब पुरानी पेंशन को लेकर भी कर्मचारी दबाव बनाने में जुट गए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि अक्तूबर 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ नहीं दिया जा रहा है। पुरानी पेंशन का लाभ न मिलने से कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद खाली हाथ रह जा रहे हैं। नई पेंशन स्कीम में जो पैसा उन्हें मिल रहा है, उससे घर चलाना मुश्किल हो रहा है। दवाई तक का खर्चा उस पैसे से नहीं निकल पा रहा है। नई पेंशन स्कीम बाजार आधारित योजना है। जिसमें जोखिम अधिक है। ऐसे में कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना से कम कुछ भी मंजूर नहीं