योगी सरकार के कार्यकाल में रद्द हुए 800 पुराने कानून, जानिए उनके बारे में
लखनऊ, 9 जनवरी: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार के कार्यकाल में राज्य विधि आयोग ने साढ़े 11 सौ से ज्यादा पुराने कानूनों को निरस्त करने की सिफारिशें की, जिनमें से 800 पुराने कानून रद्द कर दिए गए हैं। यूपी विधि आयोग के हाल ही में रिटायर हुए पूर्व चेयरमैन ने उन तमाम बिंदुओं पर बातचीत की है और उन प्रमुख कानूनों के बारे में बताया है, जो मौजूदा सरकार के कार्यकाल में हटाना या निरस्त करना संभव हुआ है। उन्होंने पुरानी सरकारों के साथ भी अपने काम करने के अनुभव साझा किए हैं। गौरतलब है कि बीजेपी की सरकार के कार्यकाल में कई ऐसे कानून बदले गए हैं, जिसको लेकर काफी विवाद भी हुए हैं।
'यूपी विधि आयोग को सरकार से भरपूर सहयोग मिला'
उत्तर प्रदेश विधि आयोग के अध्यक्ष एएन मित्तल हाल ही में अपने पद से रिटायर हुए हैं। उनके कार्यकाल में यूपी में सैंकड़ों पुराने कानून और अधिनियम निरस्त कर दिए गए हैं। उनका कार्यकाल प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल से थोड़ा ही कम रहा है। इस दौरान उन्होंने प्रदेश के विधि आयोग की ओर से निभाई गई भूमिका और राज्य सरकार के रोल के बारे में बहुत कुछ बताया है। ईटी से बातचीत में उन्होंने कई अहम जानकारियां दी हैं। उनके मुताबिक उन्होंने 2017 के अगस्त में कार्यभार संभाला था, उससे पहले के अध्यक्ष के कार्यकाल में कोई कार्य ही नहीं किया गया था। उन्होंने अपनी पहली रिपोर्ट तो बिना किसी स्टाफ के ही तैयार की, क्योंकि स्टाफ की नियुक्ति अगले साल जनवरी में हुई। मित्तल के मुताबिक विधि आयोग को सरकार और विधि विभाग से भरपूर सहयोग मिला है।
800 पुराने कानून निरस्त कर दिए गए
यूपी विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष के मुताबिक उनके कार्यकाल में राज्य सरकार को जो 21 रिपोर्ट सौंपी गई, उनमें से 11 को स्वीकार कर लिया गया। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि पैनल ने राज्य में कुल 1,166 पुराने कानून निरस्त करने की राज्य सरकार को सलाह दी, जिनमें से 800 कानून निरस्त किए जा चुके हैं। अब प्रदेश में ट्रांसजेंडरों को भी उत्तराधिकार का हक दिया गया है। मित्तल के मुताबिक वे प्रदेश सरकार से पिछले 21 वर्षों से जुड़े रहे हैं। मायावती और मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में विधि विभाग में स्पेशल सेक्रेटरी रह चुके थे। उनके मुताबिक योगी आदित्यनाथ ऐसे पहले मुख्यमंत्री हैं, जो किसी भी कानून को अमल में लाने से पहले 2,025 वरिष्ठ अफसरों की बैठक बुलाते हैं, अपनी मौजूदगी में पेजेंटेशन दिलवाते हैं और कानून के सभी पहलुओं पर चर्चा करते हैं।
प्रदर्शनकारियों से नुकसान की भरपाई कराने पर
किसी भी प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसानों की गुनहगारों से भरपाई कराने के कानून को हाई कोर्ट में भी चुनौती दी गई थी। लेकिन हाई कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया और माना कि आंदोलन के दौरान संपत्ति का नुकसाने करने वालों से न सिर्फ उसकी भरपाई कराई जा सकती है, बल्कि उनकी तस्वीर और फोटो भी सार्वजनिक तौर पर लगाया जा सकता है, ताकि लोग जानें कि प्रदर्शनकारी कौन थे। अपराधी निजता के अधिकार का दावा करके नहीं बच सकते। उनके मुताबिक वे पीड़ितों को सरकार से मुआवजा दिलाने के खिलाफ थे, क्योंकि सरकार ने जब प्रदर्शनकारियों को प्रदर्शन के लिए नहीं बुलाया तो वह पीड़ितों को मुआवजा क्यों दे।
धर्म परिवर्तन संबंधी कानून पर
धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने संबंधी कानून के बारे में उनका कहना है कि यह कानून धर्म परिवर्तन के खिलाफ नहीं है। बल्कि, लालच देकर, धमकी देकर, झूठ बोलकर ,जबरन उगाही, वित्तीय सहायता के बदले और इस तरह से धर्म परिवर्तन के विरुद्ध है। इस तरह के कानून को लागू किया गया है और कई मामलो में आरोपियों को इन्हीं आधारों पर दोषी करार दिया गया है। प्यार की कोई सीमा नहीं हो सकती, लेकिन इसके पीछे किसी का धर्म बदलवाने का कोई छिपा हुआ एजेंडा नहीं होना चाहिए। अपने देश में विभिन्न धर्म के लोगों के बीच विवाह की अनुमति है। इसपर कोई प्रतिबंध नहीं है। हो सकता है कि राजनीतिक या दूसरी वजहों से इस कानून को गलत समझा गया हो, लेकिन यह लागू किया गया है और यूपी के कानून को कई और राज्यों ने भी अपनाया है।
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मॉब लिंचिंग संबंधीं ड्राफ्ट बिल पर
लेकिन, मॉब लिंचिंग के खिलाफ ड्राफ्ट बिल को सरकार से मंजूरी नहीं मिलने के बार में उनका कहना है कि यह बहुत बड़ा अपराध है और इसमें शामिल लोगों को सजा मिलनी ही चाहिए। वे कहते हैं यह कोई नया अपराध नहीं है। 1947 में बंटवारे के दौरान भी हुआ और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद1984 में भी। लेकिन, मौजूदा कानून में इसपर बहुत ही कम सजा का प्रावधान है, इसलिए हमने मॉब लिंचिंग पर कानून बनाने की सलाह दी थी। लेकिन, यह पूरी तरह सरकार के विवेक पर निर्भर है कि वह रिपोर्ट को स्वीकार करे या ना करे।