यूपी की राजनीति में क्या है गन्ना किसानों का गणित, जानिए
लखनऊ, 21 सितंबर: उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और सियासत के केंद्र में गन्ना किसान हैं। नवंबर के आसपास गन्ना किसानों की नई फसल कटने के लिए तैयार हो जाएगी लेकिन उनके सामने समस्याएं जस की तस हैं। किसान संगठन किसानों की मांगों को लेकर जहां लगातार आंदोलन कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर सरकार की तरफ से भी तरह तरह के दावे किए जा रहे हैं। इन दावों के बीच किसान की क्या स्थिति है और आम गन्ना किसान क्या सोच रहा है और उसके सामने चुनौतियां हैं यह बड़ा सवाल है। क्या गन्ना किसानों का बकाया और SAP अगले विधानसभा चुनाव में मुद्दा बन पाएंंगे, क्या किसान ही यूपी में बनने वाली नई सरकार का भविष्य तय करेगा या इस बार भी हर बार की तरह ठगा जाएगा। इसको जानने के लिए आपको चुनाव तक इंतजार करना होगा।
दरअसल, केंद्र की एनडीए सरकार ने हाल ही में 2021-22 सीजन के लिए गन्ने के न्यूनतम मूल्य में वृद्धि की थी। गन्ना मिलों द्वारा किसानों को दिए जाने वाले उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) को 5 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 290 रुपये कर दिया गया था। हालांकि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बेल्ट में कीमतों और बकाया राशि पर अनिश्चितता जारी है, जो राज्य में सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक है, ऐसे समय में जब फसल एक महीने से भी कम समय में कटाई का इंतजार कर रही है।
क्या
है
गन्ना
किसानों
की
पीड़ा
बागपत
जिले
के
किसाान
रमेश
गुर्जर,
जो
गन्ना
किसान
हैं,
उन्होंने
कहा
कि
बिजली
और
ईंधन
की
बढ़ी
हुई
लागत
के
कारण
खेती
का
व्यवसाय
लगभग
नुकसान
में
था।
इसके
अलावा
महीनों
से
बकाया
का
भुगतान
न
करने
से
हमारे
जीवन
पर
भी
असर
पड़
रहा
है।
मिल
मालिकों
ने
अभी
तक
पिछले
सत्र
के
गन्ने
के
लिए
भुगतान
नहीं
किया
है।
एक
अन्य
किसान
मंगल
परिहार
कहते
हैं
कि,
"चुनावों
के
दौरान,
वे
हमारी
फसल
के
बेहतर
दाम
देने
के
लिए
बड़े-बड़े
वादे
लेकर
हमारे
पास
आते
हैं
लेकिन
चुनाव
खत्म
होने
के
तुरंत
बाद
गायब
हो
जाते
हैं।
हमारे
भुगतान
अभी
तक
साफ
नहीं
हुए
हैं
और
साथ
ही,
खेती
बहुत
महंगी
हो
गई
है।
लेकिन
हमारे
पास
और
कोई
विकल्प
नहीं
है।"
गन्ने
का
समर्थन
मूल्य
500
तक
करे
सरकार
किसानों
के
लिए
सबसे
बड़ी
चिंता
गन्ने
के
न्यूनतम
समर्थन
मूल्य
में
वृद्धि
को
लेकर
थी।
पश्चिमी
यूपी
के
एक
किसान
रतन
त्यागी
कहते
हैं
कि,
एक
किसान
को
जीवित
रहने
और
बेहतर
आजीविका
के
लिए
कम
से
कम
500
रुपये
प्रति
क्विंटल
की
आवश्यकता
होती
है,
जबकि
सरकार
इससे
बहुत
कम
दे
रही
है।
सम्मानजनक
जीवन
जीने
के
लिए
कम
से
कम
न्यूनतम
मूल्य
400-450
रुपये
निर्धारित
करना
चाहिए।
मंगल
यादव
ने
यह
भी
कहा
कि
अगर
मुद्दों
का
समाधान
नहीं
किया
गया
तो
किसानों
और
उनके
गुस्से
का
असर
चुनाव
पर
पड़ेगा।
पश्चिम यूपी में गन्ना किसानों के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष डॉ मसूद अहमद कहते हैं कि,
'' पश्चिमी यूपी का ही नहीं पूरे यूपी का किसान लाठी लेकर बैठा है। किसानों की जो हालत इस सरकार ने की है उसका खामियाजा तो उसे उठाना ही पड़ेगा। लोग आरोप लगा रहे हैं कि पश्चिमी यूपी में रालोद किसानों का फायदा उठा रही है। आप समझ लीजीए कि यह रालोद और किसान और गठजोड़ है। इस बार बीजेपी को सत्ता से बाहर करके ही छोड़ेगा।''
यूपी
में
2017
के
बाद
किसानों
के
लिए
नहीं
की
गई
एसएपी
की
घोषणा
हरियाणा
और
पंजाब
जैसे
कई
राज्यों
ने
भी
गन्ना
किसानों
के
लिए
राज्य
सलाहकार
मूल्य
(एसएपी)
की
घोषणा
की।
हालांकि,
उत्तर
प्रदेश
में
हालांकि
अक्टूबर
2017
से
एसएपी
में
बढ़ोतरी
की
घोषणा
की
गई
थी।
केंद्र
के
नए
कृषि
कानूनों
के
खिलाफ
दिल्ली
की
सीमाओं
पर
चल
रहे
किसानों
के
आंदोलन
ने
उत्तर
प्रदेश
में
भी
लहर
पैदा
कर
दी
है।
राज्य
के
पश्चिमी
हिस्सों
में
गन्ना
बेल्ट
के
किसान
अपने
विरोध
में
पंजाब
और
हरियाणा
के
किसानों
का
समर्थन
कर
रहे
हैं।
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत कहते हैं कि,
'' सरकार को किसानों के लिए कुछ कर नहीं रही है। इनसे अधिक तो सपा और बसपा के शासनकाल में किसानों के लिए हुआ था। सपा के सरकार में ही एसएपी बढ़ाई गई थी। इनको तो पिछली सरकारों से ज्यादा बढ़ाना चाहिए। इनको केवल किसानों का वोट चाहिए होता है लेकिन जब कुछ करने की बारी आती है तो हाथ खड़ा कर लेते हैं। गन्ना किसानों का आज भी हजारों करोड़ रुपए बकाया है। इनकी सुनवाई आज तक नहीं हुई है।''
उत्तर प्रदेश सरकार पर इस साल गन्ने का एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बढ़ाने का लगातार दबाव है। हर साल दरों में बढ़ोतरी की मांग को लेकर किसानों का विरोध प्रदर्शन होता रहता है। 2017 के विधानसभा चुनावों के बाद से गन्ने के एमएसपी में वृद्धि नहीं हुई है, जब इसे 10 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 325 रुपये कर दिया गया था। हालांकि, 2022 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए, राज्य में कृषि संगठनों ने गन्ने का एमएसपी बढ़ाने के लिए आंदोलन तेज करने की योजना की घोषणा की है।
पश्चिमी यूपी की सियासत को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र सिंह ने कहा कि,
"अब इस तथ्य को देखते हुए कि किसान पहले से ही आंदोलन कर रहे हैं और मुजफ्फरनगर में एक बहुत बड़ी सभा हुई है। एसएपी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। मुझे लगता है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में, किसान अपना आंदोलन तेज करने जा रहे हैं। एक प्रमुख मुद्दा बनने जा रहा है। यह राज्य सरकार को देखना है कि वह आंदोलनकारी किसानों से कैसे निपटती है क्योंकि गन्ना किसान न केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मौजूद हैं, बल्कि राज्य में लगभग दो-तिहाई हैं।"
मुजफ्फरनगर
दंगों
के
बाद
पहली
बार
साथ
आए
जाट,
मुसलमान
2022
के
विधानसभा
चुनावों
से
पहले
गन्ना
किसानों
द्वारा
उठाए
गए
मुद्दों
को
हल
करने
के
लिए
योगी
आदित्यनाथ
सरकार
को
अब
एक
बड़ी
चुनौती
का
सामना
करना
पड़
रहा
है।
वहीं,
विपक्षी
दल
किसान
विरोध
को
समर्थन
दे
रहे
हैं।
जाट
भूमि
2014
से
भाजपा
की
मुख्य
समर्थक
रही
है,
इससे
पहले
इसे
आरएलडी
वोट
बैंक
के
रूप
में
जाना
जाता
था।
2013
के
मुजफ्फरनगर
दंगों
के
बाद
जाट
और
मुस्लिम
वोट
अलग
हो
गए
थे।
किसान आंदोलन ने इनको फिर से एक साथ ला दिया है जिससे भाजपा में सेंध लग सकती है। सपा और रालोद गठबंधन को मौजूदा परिस्थितियों में बढ़त की उम्मीद है, यही वजह है कि भाजपा अब किसानों को परेशान नहीं करना चाहेगी। हाल ही में सरकार ने पराली जलाने के लिए किसानों के खिलाफ दर्ज सभी मामलों को रद्द करने का भी आदेश दिया था।
गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा भी पश्चिमी यूपी से ही आते हैं। विपक्ष के दावों और किसानों की स्थिति को लेकर वो कहते हैं कि,
'' योगी सरकार पहली कैबिनेट से ही किसानों के हित में फैसले उठा रही है। पहली कैबिनेट के बाद ही किसानों का 36 हजार करोड़ का बकाया माफ किया गया था। योगी सरकार ने चार साल में अब तक 1,42,311 करोड़ रुपए का भुगतान गन्ना किसानों को करने का काम किया। इस साल भी अब तक 84 फीसदी भुगतान गन्ना किसानों को कर दिया गया है। पिछले 15 सालों में कभी भी 3 सितंबर तक 84 फीसदी भुगतान नहीं किया गया था।''
गन्ना किसानों के सामने ये हैं चुनौतियां
- ईंधन की बढ़ती कीमतों से गन्ने के उत्पादन की लागत बढ़ रही है।
- आवश्यकता से अधिक बिजली शुल्क।
- उत्पादन लागत की तुलना में बहुत कम न्यूनतम समर्थन मूल्य।
- चीनी मिलों द्वारा भुगतान में देरी, कभी-कभी तो एक साल भी लग जाता है
- सरकार हमेशा चीनी मिल मालिकों का ही साथ देती है
अब
तक
1.42
लाख
करोड़
रुपये
भुगतान
का
दावा
राज्य
गन्ना
विकास
विभाग
के
अनुसार,
पूर्व
समाजवादी
पार्टी
(सपा)
सरकार
ने
पांच
वर्षों
में
किसानों
को
95,000
हजार
करोड़
रुपये
का
भुगतान
किया
था।
योगी
आदित्यनाथ
सरकार
के
तहत,
किसानों
को
1.42
लाख
करोड़
रुपये
का
भुगतान
किया
गया
है,
जो
प्रति
वर्ष
औसतन
37,000
करोड़
रुपये
है।
उत्तर प्रदेश गन्ने का भारत का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो कुल खेती वाले क्षेत्र का 51 प्रतिशत जबकि फसल का 50 प्रतिशत और चीनी उत्पादन का 38 प्रतिशत हिस्सा पैदा करता है। भारत की लगभग 520 चीनी मिलों में से 119 यूपी में हैं। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लगभग 650,000 लोगों को रोजगार देता है।
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