क्या अब हिंदुवादी छवि से प्रियंका जीतेंगी 2022 का उत्तर प्रदेश का रण?
प्रयागराज। क्या प्रियंका गांधी जानबूझ कर अपनी छवि एक हिंदूवादी नेता के रूप में बना रही है ? वे उत्तर प्रदेश में सक्रिय हैं और लगातार पूजा-पाठ में हिस्सा ले रही हैं। क्या वे हिंदुत्व के बल पर 2022 में योगी आदित्यनाथ को चुनौती देंगी? हाल ही में प्रियंका ने सहारनपुर में माता शाकंभरी देवी की पूजा की। फिर मौनी अमावस्या पर प्रयागराज के संगम में स्नान किया। जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से आशीर्वाद लिया। सहारनपुर की सभा में संतों को अपने मंच पर जगह दी। अब वे 23 फरवरी को मथुरा में सभा करने के पहले मंदिरों में पूजा-अर्चना करने वाली हैं। क्या ऐसा करने से प्रियंका गांधी को चुनावी लाभ मिलेगा ? 2017 में गुजरात चुनाव के पहले और 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले राहुल गांधी ने भी कई मंदिरों में पूजा की थी। उस समय दिल्ली स्थिति कांग्रेस मुख्यालय के बाहर एक होर्डिंग लगी थी जिसमें राहुल गांधी को पंडित राहुल गांधी के रूप में दर्शाया गया था। गुजरात में कांग्रेस ने 80 सीटें लाकर शानदार प्रदर्शन किया। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश (बाद में भाजपा) में कांग्रेस ने सरकार बनायी। हालांकि इस जीत के कई कारण थे लेकिन नरम हिंदुत्व भी उनमें एक था। तो क्या अब प्रियंका गांधी 2022 में उत्तर प्रदेश के लिए ये तैयारी कर रही हैं?
प्रियंका गांधी की धार्मिक आस्था
प्रियंका गांधी ने शादी के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया है। उनके पति रॉबर्ट वाड्रा हिंदू पिता और ईसाई मां के पुत्र हैं। निजी जीवन में धर्म को लेकर प्रियंका गांधी उदारवादी रही हैं। उन्होंने शिमला में एक नया घर बनवाया है। 2019 में वे अपने पति के साथ शिमला गयीं थीं और नये घर में कुछ दिन ठहरी थीं। उस समय प्रियंका और रॉबर्ड वाड्रा ने रामलोक मंदिर में एक साथ पूजा की थी। कांग्रेस खुद को धर्मनिरपेक्षता का सबसे बड़ा झंडाबरदार मानती है। लेकिन अब राजनीतिक मजबूरियों ने उन्हें हिंदुत्व की तरफ मोड़ दिया है। दिनोंदिन कमजोर हो रही कांग्रेस ने अब पुनर्जीवन के लिए हिंदुत्व का सहारा लिया है। माना जा रहा है कि प्रियंका 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस का चुनावी चेहरा हो सकती हैं। योगी आदित्यनाथ जैसे गेरुआधारी राजनीतिज्ञ से मुकाबला करने के लिए प्रियंका की छवि को नये सांचे में ढाला जा रहा है।
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प्रियंका गांधी बौद्ध हैं या हिन्दू?
प्रियंका ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बनारस में बाबा विश्वनाथ की पूजा की थी। तब उन्होंने चंदन का त्रिपुंड लगा कर भगवान शंकर का जलाभिषेक किया था। 2019 में जब प्रियंका को शिमला के अपने नये घर में जाना था तह उन्होंने हिंदू रीति रिवाजों के मुताबिक शुभ मुहुर्त की प्रतीक्षा की थी। अक्टूबर में नवरात्रि के समय गृहप्रवेश के लिए पूजा करायी गयी थी। पूजा के लिए दक्षिण भारत से विद्वान पंडितों को बुलाया गया था। दो दिन पहले जब 16 फरवरी को पूरे देश में धूमधाम से सरस्वती पूजा हुई तो प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर अपना अनुभव साझा किया था। प्रियंका ने बताया था कि जब बचपन में वे सरस्वती पूजा के दिन स्कूल जाती थीं तो उनकी दादी इंदिरा गांधी उनकी जेब में पीला रुमाल डाल देती थीं। मेरी मां (सोनिया गांधी) आज भी उस परम्परा को निभा रहीं हैं। सरस्वती पूजा के दिन वे सरसो के पीले फूल मंगा कर घर को सजाती हैं। प्रियंका ने सरस्वती पूजा के संबंध में अपने विचार प्रगट कर बताया था कि वे मूर्ति पूजा में विश्वास रखती हैं। अब प्रियंका गांधी के विरोधियों का कहना है जब उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया है तब फिर वे कैसे हिन्दू कर्मकांड का पालन करती हैं ? क्या राजनीतिक फायदे के लिए यह सब कर रही हैं?
अचानक पूजा-पाठ में क्यों बढ़ी आस्था?
प्रियंका गांधी किसान आंदोलन के समर्थन में उत्तर प्रदेश के शहरों में सभाएं कर रही हैं। इन कार्यक्रमों में शामिल होने के पहले वे पूजा-पाठ करती हैं। फिर वे नरेन्द्र मोदी सरकार के विरोध के भाषण करती हैं। माना जा रहा है 2022 के लिए प्रियंका ने एक साल पहले से ही तैयारी शुरू कर दी है। कांग्रेस 2020 से उत्तर प्रदेश में संगठन सृजन कार्यक्रम चला रही है। अब यह कार्यक्रम रफ्तार पकड़ चुका है। इस कार्यक्रम के तहत प्रियंका गांधी की तस्वीरों वाले 10 लाख कैलेंडर घर- घर बांटे जाने हैं। जनवरी 2021 से यह काम शुरू हो चुका है। इस कैलेंडर में बारह पेज हैं लेकिन किसी में राहुल गांधी या सोनिया गांधी की तस्वीर नहीं है। सिर्फ प्रियंका गांधी की तस्वीरें हैं जो उनके विभिन्न राजनीतिक कार्यक्रमों से जुड़ी हैं। सोनभद्र जिले के उभ्भा गांव में नरसंहार की घटना हो या हाथरस मामला हो, प्रियंका ने एक जुझारू नेता के रूप में अपनी छवि बनायी। इस कैलेंडर में दिखाया गया है कि कैसे प्रियंका अपने कार्यकर्ताओं को पुलिस की लाठियों से बचा रही हैं। जाहिर है वे इस कैलेंडर के जरिये आम लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रही हैं। यानी हिंदुत्व और जनसरोकर के मेल से प्रियंका नये राजनीतिक विकल्प के रूप में स्थापित होना चाहती हैं।