UP Results: खतरे में चरण सिंह की विरासत, अब रालोद पर जाटों का भरोसा नहीं
लखनऊ, 12 मार्च। उत्तर प्रदेश के किसान और जाट जिस चरण सिंह को अपना नेता मानते थे अब उन्होंने उनकी विरासत से मुंह मोड़ लिया है। चरण सिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे जयंत चौधरी जाट समुदाय पर अपनी पकड़ खो चुके हैं। 2022 के चुनावी नतीजे इस बात की तस्दीक करते हैं। विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल को 33 में से सिर्फ 8 सीटों पर ही जीत मिली। ये सीटें तब मिलीं जब सपा ने उसका समर्थन किया।
जयंत चौधरी और अखिलेश यादव की जोड़ी चौधरी चरण सिंह की पहचान वाली बागपत सीट भी नहीं बचा पायी। बागपत में भाजपा के योगेश धामा ने रालोद के अहमद हमीद को करीब साढ़े छह हजार वोटों से हराया। यानी इस सीट पर जाट मुसलमान का गठजोड़ फेल हो गया। इससे यह भी साबित होता है कि जाट अब रालोद के कोर वोटर नहीं रहे। जयंत और अखिलेश किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी को भी अपने हक में नहीं भुना सके।
जाट-मुस्लिम समीकरण फेल
2022 के विधानसभा चुनाव में रालोद ने चार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। दो जीते, दो हारे। शामली जिले के थान भवन सीट पर रालोद के अशरफ अली ने योगी सरकार के मंत्री सुरेश राणा को हराया। मेरठ जिले के शिवालखास सीट पर रालोद के गुलाम मोहम्मद को जीत मिली। उन्होंने भाजपा के महेन्द्र पाल को हराया। लेकिन रालोद के मुस्लिम उम्मीदवार बागपत और बुलंदशहर (हाजी यूनुस) में हार गये। बुलंदशहर में भाजपा के प्रदीप चौधरी को जीत मिली। उन्होंने हाजी यूनुस को 25 हजार से भी अधिक वोटों से हराया। इन दो सीटों पर हार से ये पता चलता है कि रालोद को मुस्लिम समुदाय का वोट तो मिला लेकिन जाट समुदाय ने एकजुट हो कर उसका समर्थन नहीं किया। जयंत चौधरी ने चुनाव प्रचार के दौरान किसान मुद्दे को खूब उछाला था। भाजपा को किसान विरोधी बताने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन तीन कृषि कानूनों को वापस लिये जाने के बाद किसानों की सोच बदलने लगी थी। 2013 के दंगों का दर्द कहीं न कहीं साल रहा था। शांति और सुरक्षा को उन्होंने प्राथमिकता दी। जयंत चौधरी ने अपने लिए वही 33 सीटें मांगी थीं जो जाट बहुल थीं। लेकिन जाट समुदाय ने उन्हें समर्थन नहीं दिया।
6 सीटों पर रालोद 55 हजार से अधिक वोटों से हारा
33 सीटों में से रालोद 19 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहा था। पांच सीटों पर वह तीसरे स्थान पर रहा। जिन पांच सीटों पर वह तीसरे स्थान पर रहा वहां दूसरा स्थान बसपा को मिला। यानी रालोद कुछ सीटों पर बसपा से भी नीचे चला गया। खैरगढ़ की सीट पर रालोद चौथे पायदान पर रहा। इस सीट पर भाजपा को जीत मिली। रालोद की यह स्थिति इस इस बात का संकेत है कि जाट समुदाय के बहुसंख्यक वोटर अब उससे नाता तोड़ कर भाजपा के साथ चले गये हैं। 6 सीटों पर रालोद 55 हजार से अधिक वोटों से हारा है। इन सभी सीटों पर भाजपा को जीत मिली और जीत का अंतर बहुत अधिक था। इससे उसके आधार मतों में जबर्दस्त गिरावट को समझा जा सकता है। मेरठ कैंट सीट पर रालोद की मनीषा अहलावत को भाजपा के अमित अग्रवाल ने 1 लाख 18 हजार 72 वोटों से हराया।
रालोद की जीत में भविष्य के खतरे का संकेत
2017 को विधानसभा चुनाव में रालोद को एक सीट मिली थी। बाद में वह सीट भी खत्म हो गयी थी क्यों रालोद विधायक भाजपा में शामिल हो गये थे। विधानसभा में रालोद का खाता जीरो हो गया। लोकसभा में पहले से खाता खाली है। यह रालोद की राजनीति का सबसे बुरा दौर था। तब जयंत चौधरी ने ने अपनी खत्म हो रही राजनीति को खड़ा करने के लिए सपा से हाथ मिलाया। रालोद खुश हो सकता है वह जीरो से 8 पर पहुंच गया। लेकिन इस जीत में भविष्य का एक बड़ा नुकसान भी छिपा हुआ है। अगर जाट समुदाय ही उसके साथ नहीं रहेगा तो उसकी राजनीति किस बैसाखी पर खड़ा रहेगी। कुछ नाराजगी रही लेकिन जाट समुदाय ने भाजपा को ही समर्थन दिया। सपा से गठबंधन के बाद भी रालोद को 8 सीट ही मिली। जब कि रालोद ने 2007 के विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ कर 10 सीटें जीती थी। 2002 में रालोद के पास 15 सीटें थीं। इस लिहाज से 2022 में सपा से गठबंधन पर रालोद बहुत फायदे में नहीं रहा। जयंत चौधरी और अखिलेश यादव की जोड़ी वह कमाल नहीं कर सकी जिसकी उम्मीद लगायी गयी थी।
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