UP Election 2022: पश्चिमी यूपी के युवाओं के मन में क्या है, महंगाई-रोजगार या कुछ और ?
मेरठ, 25 अक्टूबर: यूपी विधानसभा चुनाव में अब मुश्किल से चार महीने ही बच गए हैं। उत्तर प्रदेश जनसंख्या के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य है, इसलिए यहां के किसी एक इलाके के मतदाताओं के मूड के आधार पर पूरे प्रदेश के बारे में कोई अनुमान लगाना बहुत ही मुश्किल है। यही वजह है कि किसान आंदोलन के केंद्र के रूप में उभरे पश्चिमी यूपी के युवा क्या सोच रहे हैं, उससे पूर्वांचल के बारे में कोई राय नहीं बनाई जा सकती। लेकिन, तथ्य यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के युवा वोटरों के मन में चुनावों को लेकर जो मुद्दे हैं, वह राजनीतिक पंडितों के दिमाग को चकरा सकता है। क्योंकि, लगता है कि किसान आंदोलन का चुनाव के लिहाज से युवा वोटरों पर कोई असर नहीं पड़ा है। उनके मुद्दे बहुत ही अलग और वास्तविकता की धरातल से जुड़े हुए लग रहे हैं।

महंगाई-किसान आंदोलन युवाओं के लिए मुद्दा नहीं
करीब एक साल से चल रहे किसान आंदोलन पर पंजाब के बाद अगर कहीं सबसे ज्यादा प्रभाव नजर आता है तो पश्चिम यूपी ही है। दिल्ली की सीमा पर आंदोलन का एक केंद्र पिछले साल 30 नवंबर से गाजियाबाद के यूपी गेट पर ही बना हुआ है। किसानों के प्रदर्शन और किसान महापंचायतों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का काफी दबदबा है। लेकिन, जब बात वोट देने की आती है तो इस इलाके के युवाओं पर इस आंदोलन का ज्यादा प्रभाव नहीं नजर आ रहा है। यानी चुनाव के लिए उनके मन में जो मुद्दे चल रहे हैं, उसपर इस आंदोलन का प्रभाव नहीं लग रहा है। दूसरी बात जो इस समय पूरे देश को प्रभावित कर रही है, वह है बेतहाशा महंगाई। खासकर पेट्रोल-डीजल की कीमतें सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं। लेकिन, पश्चिम यूपी के युवाओं पर इसका भी उतना असर नहीं नजर आ रहा है।

युवाओं के लिए रोजगार जरूर एक मुद्दा है
अलबत्ता पश्चिमी यूपी के युवा वोटरों के मन में रोजगार एक बड़ा मुद्दा जरूर है, क्योंकि यह सबके जिंदगी को प्रभावित करने वाला विषय ही नहीं है, यह उनकी आवश्यकता है। तथ्य यह है कि पार्टी चाहे कोई भी हो वह युवाओं के मसले को दरकिनार नहीं कर सकती। 2019 के लोकसभा चुनाव में ही प्रदेश में 16.7 लाख फर्स्ट टाइम वोटर्स जुड़ गए थे, जो कि पश्चिम बंगाल के बाद से सबसे ज्यादा हैं। 2022 तक फर्स्ट-टाइम वोटरों की एक और बड़ी खेप मतदाता सूची में शामिल होने के लिए तैयार है। पिछले लोकसभा चुनाव में फर्स्ट टाइम-वोटर रहे अभिजीत सिरोही नाम के एक युवा ने ईटी से बातचीत में कहा है कि उनके जैसे गैर-तकनीकी छात्रों के लिए रोजगार के मौके बढ़ने चाहिए और सरकार को और ज्यादा रिक्तियों की घोषणा करनी चाहिए।

'यूपीएससी और टीचिंग लाइन पर है युवाओं का फोकस'
सिरोही चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी (सीसीयू) में पॉलिटिकल साइंस में एमए में दाखिले के लिए बागपत से मेरठ आए हैं। यूनिवर्सिटी में इसी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर जयवीर राणा का कहना है कि सरकारें आमतौर पर चुनावों के नजदीक आने पर रिक्तियों का ऐलान करती हैं। उन्होंने कहा कि 'सरकार अपने अंतिम वर्ष में ही नई रिक्तियों की घोषणा की करती है। जब तक प्रक्रिया शुरू होती है, तब तक चुनाव आचार संहिता लागू हो जाती है; और सब कुछ चुनाव के बाद की स्थिति पर निर्भर करता है।' उन्होंने बताया कि उनके ज्यादातर स्टूडेंट या तो यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं या फिर पढ़ाई खत्म करने के बाद उनकी टीचिंग लाइन में जाने की इच्छा है।

कानून और व्यवस्था सब चीजों से ऊपर
रोजगार की तो सबको जरूरत है, लेकिन पश्चिम यूपी के युवाओं का जोर इससे भी ज्यादा बेहतर कानून और व्यवस्था पर है। अभिजीत सिरोही जिनकी ऊपर चर्चा की गई है, उनका कहना है, 'क्राइम रेट कम हुआ है और अब लोग इस क्षेत्र में कहीं भी किसी भी समय बेहिचक आ-जा सकते हैं।' वो कहते हैं, 'योगी सरकार के कार्यकाल के दौरान यह बहुत बड़ा बदलाव हुआ है।' ऐसा सोचने वाले वे अकेले नहीं हैं। युवा महिलाओं के लिए यह और भी महत्वपूर्ण मुद्दा है। बड़ौत की रहने वाली मनीषा शर्मा (21 साल) भी चरण सिंह यूनिवर्सिटी की ही स्टूडेंट हैं और पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एमए कर रही हैं। वो कहती हैं, 'जब मैंने इंटरमीडिएट किया था और परिवार वालों से ग्रेजुएशन करने की बात कही थी तो उन्होंने मना कर दिया था। लड़कियों के लिए यहां का माहौल सुरक्षित नहीं था।' उन्होंने आगे जो कुछ कहा वह इलाके के युवाओं के मन की बात जाहिर कर देती है। उन्होंने बताया कि 'एक साल पहले जब मैंने उनसे (परिवार वालों से) पूछा कि क्या मैं सीसीयू में मास्टर्स के लिए दाखिला ले सकती हूं, तो वे तैयार हो गए क्योंकि जमीनी हालात सुधर चुकी है। मैं मेरठ में एक होस्टल में रहती हूं और मेरे परिवार वाले मेरी सुरक्षा को लेकर अब चिंतित नहीं रहते हैं।'
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पश्चिमी यूपी के युवा कानून और व्यवस्था से बेहद खुश
पश्चिमी यूपी में ऐसे युवाओं की कमी नहीं है, जो कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधरने से काफी खुश नजर आ रहे हैं। सिवालखास विधानसभा क्षेत्र के इकरी गांव के 18 साल के मुकुल त्यागी भी बीए के क्लास के लिए मेरठ आए हैं। उन्होंने कहा है, 'पहले हम शाम के बाद अपने गांव के बाहर नहीं जा सकते थे। वहां अक्सर हत्याएं, अपहरण और स्नैचिंग की वारदातें होती रहती थीं। अब, हमारे गांव की लड़कियां भी पढ़ने के लिए बाहर जाती हैं।' मुकुल की तरह ही थाना भवन विधानसभा क्षेत्र के सिक्का गांव के फर्स्ट-टाइम वोटर अंशु कश्यप (18 साल) का कहना है कि कानून और व्यवस्था से ही उनके वोट का फैसला होगा। उनका कहना है, 'हम योगी सरकार के साथ हैं और इसे वापस आना चाहिए। महंगाई को लेकर थोड़ा मुद्दा है। लेकिन, मेरे लिए कानून और व्यवस्था सब चीजों से ऊपर है। ' (तस्वीरें- सांकेतिक)