यूपी चुनाव: थाली के बैंगन बने नेता, 6 दिन में दो बार पार्टी बदली
लखनऊ, 28 जनवरी। उत्तर प्रदेश चुनाव में नेता थाली के बैंगन की तरह हो गये हैं। जिधर थाली झुकी, बैंगन उधर ही लुढ़क गया। नेता भी टिकट की आस में बैंगन की तरह इधर उधर लुढ़क रहे हैं। रामपुर जिले की चमरौआ सीट पर तो गजब हो गया।
कांग्रेस ने जिसे अपना कैंडिडेट घोषित किया था वह एक दिन बाद ही सपा में चला गया। जब सपा में टिकट नहीं मिला तो वह छह दिन बाद फिर कांग्रेस में लौट आया। छह दिन में ही इन्होंने दो बार पलटी मारी। अब इस नेता जी ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में नामांकन पत्र भी खरीद लिया है। पता नहीं, कांग्रेस इन पर कितना भरोसा करेगी। वैसे दल बदल का इनका पसंदीदा शौक है। इनका नाम है युसूफ अली। ये पूर्व विधायक हैं।
छह दिन में दो बार मारी पलटी
रामपुर, उत्तर प्रदेश का एतिहासिक शहर है। यह रामपुर जिले का मुख्यालय है। चमरौआ, रामपुर जिले का एक खास गांव है। चमरौआ ब्लॉक भी है और विधानसभा क्षेत्र भी। 2008 में परिसीमन के बाद चमरौआ नया विधानसभा क्षेत्र बना था। पहली बार यहां 2012 में विधानसभा का चुनाव हुआ था। चमरौआ अपने विकास के कारण पूरे जिले में खास पहचान रखता है। इस गांव की सड़कें शहर से चौड़ी हैं। यहां प्राइमरी स्कूल से इंटर तक पढ़ने की सुविधा है। यह एक मुस्लिम बहुल इलाका है। यहां करीब 40 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में युसूफ अली ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और विधायक बने थे। उन्होंने सपा के नसीर अहमद खान को करीब दो हजार वोटों से हराया था। लेकिन 2017 में युसूफ चुनाव हार गये। इस बार सपा के नसीर ने बाजी मारी। चुनाव हारने के बाद युसूफ ने बसपा छोड़ दी। वे कांग्रेस में शामिल हो गये। कांग्रेस ने 2022 विधानसभा चुनाव के लिए जो पहली सूची जारी की थी उसमें युसूफ को चमरौआ से प्रत्याशी बनाया गया था। कहा जाता है कि युसूफ इस बार अपनी जीत पक्की करना चाहते थे। इसलिए वे सपा की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे थे। उनका दावा है कि सपा ने उन्हें टिकट देने का वायदा किया था। इसी लोभ में वे कांग्रेस का टिकट ठुकरा कर सपा में चले गये थे। लेकिन सपा वे उन्हें टिकट देने की बजाय अपने सीटिंग विधायक नसीर अहमद पर ही भरोसा जताया।
टिकट ही नहीं जीत के लिए भी दर-बदर
चौबे गये छब्बे बनने और दूबे बन कर लौटे। युसूफ अली की भी हालत कुछ ऐसी ही है। अब वे अपने किये के लिए माफी मांग रहे हैं और खुद को कांग्रेस का सच्चा सिपाही बता रहे हैं। अब सवाल ये है कि युसूफ अली ने आखिर कांग्रेस क्यों छोड़ी थी ? क्या उन्हें कांग्रेस के जीतने का भरोसा नहीं था ? कुछ दिन पहले कांग्रेस छोड़ कर सपा में शामिल होने वाले इमरान मसूद ने कहा था, फिलहाल कांग्रेस भाजपा से लड़ने में सक्षम नहीं है। हाल ही में कांग्रेस के करीब दस बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ी है। यह प्रियंका गांधी के लिए बड़ा झटका है। प्रियंका गांधी ने काफी होमवर्क के बाद उम्मीदवार तय किये थे। लेकिन उनका यह आकलन सटीक नहीं दिख रहा। टिकट मिलने के बाद तीन उम्मीदवारों का पाला बदलना, प्रियंका गांधी की बड़ी रणनीतिक चूक बतायी जा रही है। स्वार सीट पर कांग्रेस ने हैदर अली को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन वे भाजपा के सहयोगी अपना दल में शामिल हो गये। अब वे अपना दल के टिकट पर स्वार से चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह बरेली कैंट से कांग्रेस उम्मीदवार बनायीं गयीं सुप्रिया एरन सपा में शामिल हो गयीं। यानी नेता टिकट के साथ-साथ जीत की तलाश में भी पाला बदल रहे हैं।
चौबे गये छब्बे बनने और दूबे बन कर लौटे
उत्तर प्रदेश में ऐसे नेताओं की लंबी पेहरिस्त है जो छब्बे बनने के फेर में दूबे बन गये। इमराम मसूद ने यह सोच कर कांग्रेस छोड़ी थी कि सपा उन्हें इस बार टिकट देगी। मुस्लिम नेता के रूप में उनकी पहचान भी थी। लेकिन उन्हें सपा ने टिकट नहीं दिया। सपा की वादाखिलाफ पर उनका एक तथाकथित बयान चर्चा में है.... "मुझे कुत्ता बना दिया।" अब वे मन मार कर सपा के अन्य प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार कर रहे हैं। इसी तरह स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने बेटे उत्कृष्ट मौर्य को टिकट दिलाने के विवाद में भाजपा छोड़ी थी। वे बेटे को रायबरेली की ऊंचाहार सीट से भाजपा का टिकट चाहते थे। स्वामी सपा में तो आ गये लेकिन बेटे को ऊंचाहार से सपा का टिकट नहीं दिला पाये। जब कि वे कुशवाहा समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। उत्कृष्ट मौर्य ऊंचाहार से दो बार चुनाव हार चुके हैं। 2012 में वे बसपा और 2017 में भाजपा के टिकट पर हारे थे। दोनों ही बार उत्कृष्ट को सपा के मनोज पांडेय ने हराया था। जब ऊंचाहार में सपा के सीटिंग विधायक मौजूद हों तब दल बदल कर आने वाले उत्कृष्ट के लिए कोई गुंजाइश नहीं बची थी। अखिलेश यादव ने जता दिया कि स्वामी प्रसाद मौर्य इतने बड़े नेता नहीं कि उनके बेटे के लिए वे सीटिंग विधायक का टिकट काट दें। ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य चाह कर भी अपने बेटे के लिए दबाव नहीं बना सके। स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं से भाजपा की सांसद हैं। लेकिन कहा जा रहा है कि बेटे को विधायक बनाने की जिद में वे उल्टा दांव खेल बैठे।
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