राजा भैया के बाहुबल के आगे सभी बड़ी पार्टियों ने टेके घुटने
यूपी विधानसभा चुनाव में एक ऐसा संसदीय क्षेत्र जहां कोई भी राजा भैया के खिलाफ प्रचार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में चौथे चरण का मतदान गुरुवार को होना है, जिसमें इलाहाबाद, अमेठी और रायबरेली काफी अहम हैं, इन जिलों में ना सिर्फ भाजपा, कांग्रेस, सपा बल्कि बसपा भी अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। लेकिन इन इलाहाबाद से रायबरेली के बीच प्रतापगढ़ की सियासत बाकी जगहों से काफी अलग है, एक तरफ जहां आप तमाम जगहों पर हर पार्टी के पोस्टर और बैनर देखेंगे तो वहीं जब आप प्रतापगढ़ के कुंडा में पहुंचते हैं तो यहां सिर्फ एक ही पोस्टर और एक बैनर नजर आता है वह है रघुराज प्रताप सिंह यानि राजा भैया का, इसकी एक बड़ी वजह तो यह है कि स्थानीय लोग रघुराज प्रताप के लिए एक मुहावरा कहते हैं कुंडा का गुंडा राजा भैया, लेकिन दूसरी वजह यह भी है कि दूसरे दल के किसी भी नेता ने राजा भैया के खिलाफ लड़ने का ऐलान नहीं किया है।
1993 से आजतक नहीं हारे राजा भैया
कुंडा में किसी भी बड़े दल का कोई नेता चुनावी मैदान में नहीं है, यहां हमेशा एक ही निर्दलीय उम्मीदवार 1993 से चुनाव जीतता आ रहा है और अब उसने सपा का दामन थाम लिया है। रघुराज प्रताप सिंह को 1993 से कभी भी 60 फीसदी वोट से कम नहीं हासिल हुआ है। 2003 में राजा भैया को सबसे अधिक 82 फीसदी वोट मिले थे और वह 81000 वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे, जहां कुल 1.07 लाख मतदाताओं ने वोट किया था। उस वक्त उन्होंने सपा के मोहम्मद शामी को हराया था, उसके बाद से सपा ने कभी भी वहां से कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है।
डर और रसूख का दूसरा नाम राजा भैया
कुंडा में सिर्फ और सिर्फ राजा भैया के पोस्टर लगे हैं, हालांकि वह हमेशा अपनी कूबत से चुनाव जीतते आए हैं लेकिन सपा उनका समर्थन करती है और उन्हें अपनी कैबिनेट में मंत्री का भी पद दिया था, लेकिन राजा भैया के इस रसूख को भी समझने की जरूरत है। राजा भैया ने यह रसूख डर और समर्थन के दम पर खड़ा किया है। राजा भैया के क्षेत्र के लोग हर हफ्ते उनके घर पर उनसे मुलाकात करते हैं, जहां राजा भैया एक जज की भूमिका में ग्रामीणों के मुद्दे का निपटारा करते हैं, एक बार राजा भैया ने यहां से जो फैसला दे दिया उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता है, उनके फैसले को दोनों पक्षों को मानना पड़ता है। कई लोगों का मानना है कि राजा भैया की यह प्रणाली पुलिस की प्रणाली से काफी तेज है और वह जल्द ही फैसले सुना देते हैं, लोगों का मानना है कि वह प्रशासन से जल्दी फैसले देते हैं और प्रशासन उनके ही हाथों में है।
समाजसेवा का काम करते हैं राजा भैया
राजा भैया यूथ ब्रिगेड के एक सदस्य की मानें तो राजा भैया सभी जरूरतमंदों की मदद करते हैं, वह उन्हें स्वास्थ्य में शादी में हर तरह से मदद करते हैं, वह हर साल 100 जोड़ों का विवाह कराते हैं, वह इन लोगों के दहेज को भी देते हैं, हालांकि वह कार नहीं देते हैं बल्कि जरूरत की सभी चीजें देते हैं। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि वह इसके लिए पैसा कहां से पाते हैं तो वह कहते हैं कि वो राजा हैं, यहां के मतदाताओं का कहना है कि राजा भैया के परिवार का कई बिजनेस है। युवा ब्रिगेड के सदस्य कहते हैं कि हर गांव के लोग राजा भैया का पोस्टर अपने गांव के प्रवेश पर लगाते हैं, जिसमें लिखा होता है कि यहां के ग्रामीण राजा भैया के हैं, यहां किसी भी अन्य दल के लोग प्रचार नहीं करें। यूथ ब्रिगेड के सदस्य का कहना है कि हालांकि राजा भैया ने इन पोस्टर को हटवा दिया है क्योंकि उन्हें इस तरह की चीजें पसंद नहीं है।
राजा भैया के खिलाफ बोलने का डर
ऐसा नहीं है कि कुंडा के सभी लोग राजा भैया का समर्थन करते हैं, यहां के कुछ लोग इस शर्त पर अपना विरोध दर्ज कराने को तैयार होते हैं कि उनके नाम और तस्वीर को कहीं नहीं उजागर किया जाएगा। उनका कहना है कि राजा भैया सभी प्रशासनिक विभाग पर अपना कब्जा रखते हैं, जिसमें पुलिस भी शामिल है। इनका कहना है कि राजा भैया के समर्थक ही गांवों में इस तरह के पोस्टर लगाते हैं कि यह गांव राजा भैया का है नाकि ग्रामीण।
40 आपराधिक मामले दर्ज हैं राजा भैया पर
एक समय था जब राजा भैया के खिलाफ कुल 40 आपराधिक मामले दर्ज थे, जिसमें अपहरण का मामला भी शामिल है। पूर्व विधायक ने राजा भैया के खिलाफ कुंडा के डीएसपी की हत्या का मामला दर्ज कराया था, कई कोर्ट में वह अपराधी भी घोषित हुए। 2002 मे मायावती की सरकार में वह जेल भी गए, उनके पिता और चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह ने उनके लिए प्रचार किया, गुंडा के बाबागंज में भाजपा उम्मीदवार पवन कुमार ने आरोप लगाया था कि राजा भैया के समर्थक उन्हें धमकी देते हैं और उनके साथ मारपीट करते हैं। कुंडा के एक स्थानीय वोटर का कहना है कि कोई भी राजा भैया के खिलाफ नहीं जाना चाहता है, जब बड़ी बड़ी पार्टियों के नेता यहां प्रचार नहीं कर रहे हैं तो हम कौन हैं।