विधानसभा सत्र में इस बार होगी नेता प्रतिपक्ष अखिलेश की अग्निपरीक्षा, जानिए इसके पीछे की वजहें
लखनऊ, 13 मई: उत्तर प्रदेश विधानमंडल सत्र का बजट सत्र 23 मई से बुलाया गया है। यानी कि अब से ठीक 10 दिनों बाद समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव को विधानसभा के भीतर नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपनी पारी शुरू करनी है। अखिलेश को साबित करना होगा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में ही सियासत करने का जो निर्णय लिया है, वह सही है। वह नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में प्रदेश सरकार की बातों का माकूल जवाब देने में हुए उसे घेरने में सक्षम हैं। राजनीतिक पंडितों की माने तो अखिलेश यादव ऐसे समय में नेता प्रतिपक्ष बने हैं जब सदन से सपा के कई वरिष्ठ नेता गायब हैं। चाहें वह आजम खां हों या पिछली सरकार में नेता प्रतिपक्ष रहे रामगोविंद चौधरी हों। इन नेताओं की गैरमौजूदगी अखिलेश को जरूर खलेगी।
ऐसे समय में नेता प्रतिपक्ष बने जब सपा में मची है खलबली
आजम खां और शिवपाल के मुद्दे को लेकर वैसे ही सपा के भीतर घमासान मचा हुआ है। ऐसे माहौल को देखते हुए ही अब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है। कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव को अपने पिता की तरह सबको जोड़ने की राजनीति नहीं आती। मुलायम सिंह ने तो काशीराम, कल्याण सिंह को अपने साथ जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया था। उनकी मदद से सरकार चलाई थी लेकिन अखिलेश यादव तो ना आजम खान को मना पा रहे हैं और ना ही पार्टी ने अन्य नाराज नेताओं से बात कर रहे हैं।
अगले आम चुनाव तक सपा को मजबूत बनाने की चुनौती
इसलिए अब यह कहा जा रहा है कि अब अखिलेश यादव को पांच साल नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहना है। वर्ष 2027 तक जब भी विधानसभा बैठेगी योगी आदित्यनाथ व अखिलेश यादव आमने-सामने होंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अखिलेश अब तक सड़क पर जनसभाओं में और मीडिया के जरिए एक दूसरे पर हमला करते रहे हैं। सदन में एक ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ होंगे जो अपने धारदार भाषण के जरिए विपक्ष हमला करेंगे तो दूसरी ओर अखिलेश यादव के लिए नेता सदन की बातों का माकूल जवाब देने का पूरा मौका होगा। लेकिन अखिलेश के पास उन्हें सलाह देने वाले नेताओं की कमी जरूर खलेगी।
बड़े फैसले लेते समय बड़े नेताओं को किया नजरअंदाज
23 मई से शुरू होने वाले बजट सत्र में वह कोई छाप छोड़ पाएंगे? इसकी उम्मीद उनकी पार्टी के नेताओं को भी नहीं है। पार्टी नेताओं का कहना है, विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से अब तक अखिलेश यादव ने एक भी ऐसा बयान नहीं दिया जिसका संज्ञान जनता ने लिए हो। ऐसे में विधानसभा सत्र के दौरान अखिलेश कोई सियासी चमत्कार करेंगे, ऐसी उम्मीद करना ठीक नहीं है। पार्टी के सीनियर नेताओं का कहना है कि सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन अखिलेश यादव नेता नहीं बन पाए। नेता वह होता है जो हर परिस्थिति में पार्टी का नेतृत्व करे। सीनियर नेताओं की राय लेकर फैसले ले और सबको साथ लेकर चलते।
टीम अखिलेश में जनाधार वाले नेताओं की कमी
टीम अखिलेश में एक भी नेता ऐसा नहीं है जो जनाधार वाला हो. जनाधार वाले नेता रेवतीरमन, अवधेश प्रसाद, बलराम यादव, अरविंद सिंह गोप, राम प्रसाद चौधरी, अंबिका प्रसाद, ओम प्रकाश, शाहिद मंजूर आदि को अखिलेश यादव से मिलने के लिए इन्तजार करना पड़ता है जबकि राजेंद्र चौधरी हर दम अखिलेश के साथ साए की तरह रहते हैं. अखिलेश यादव के ऐसी ही वर्किंग से शिवपाल सिंह यादव जिन्होंने अखिलेश यादव को पढ़ाई का इंतजाम वर्षों तक देखा था को अब अपनी अलग राह लेनी पड़ी है।
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