SP-RLD और BSP ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर दोहराया 2017 वाला फंडा, क्या होगा भाजपा को फायदा ?
लखनऊ, 21 जनवरी: पश्चिमी यूपी में पहले चरण में ही वोट डाले जाएंगे। इस चरण में मुस्लिम वोट खासे मायने रखते हैं। क्योंकि, सपा और बसपा इस वोट बैंक पर अपना दावा जताती रही है और बीजेपी पर ध्रुवीकरण करके गैर-मुस्लिम वोट अपने हक में झटकने के आरोप लगते रहे हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 80 बनाम 20 वाले बयान को कुछ विश्लेषकों ने उन्हीं कोशिशों से जोड़कर देखा है। लेकिन, बावजूद इसके सपा और रालोद गठबंधन और बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए सीटों का जिस तरह से चुनाव किया है, वह लगभग उसी तरह से है या जैसे कि पिछले चुनावों में। 2017 में पश्चिमी यूपी की सात सीटों पर सपा गठबंधन और बसपा दोनों ने ही मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट थमा दिया था। भाजपा के खाते में वो सातों सीटों चली गई थीं। इस बार ऐसी सीटों की संख्या बढ़कर 8 हो चुकी है।
पहले चरण में गठबंधन और बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार
उत्तर प्रदेश में 10 फरवरी को पहले चरण में 58 सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन ने 13 मुसलमान उम्मीदवारों का टिकट दिया है और बहुजन समाज पार्टी ने उनसे भी ज्यादा 17 मुस्लिम प्रत्याशियों को। तथ्य यह है कि पश्चिमी यूपी में मुसलमानों की आबादी काफी है। यानी सपा-रालोद ने पहले चरण में लगभग 22% टिकट मुसलमानों को दिए हैं और बसपा ने करीब 29%. यह आंकड़े तीनों दलों की ओर से जारी उम्मीदवारों के आधिकारिक नामों और चुनाव आयोग के अनुसार नामांकन दर्ज किए जाने पर आधारित हैं।
2017 वाला समीकरण बना तो भाजपा को हो सकता है फायदा
बीजेपी ने यूपी के लिए जिन 109 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है, उसमें एक भी मुसलमान उम्मीदवार नहीं है। अगर पहले चरण के चुनाव की बात करें तो 8 सीटें ऐसी हैं, जिसमें सपा-रालोद गठबंधन और बीएसपी दोनों के उम्मीदवार मुसलमान हैं। माना जा रहा है कि अगर ऐसी स्थिति में मुस्लिम वोट गठबंधन और बीएसपी में विभाजित हुए तो सीधा फायदा भाजपा के उम्मीदवार को मिल सकता है। अगर 2017 के चुनाव से तुलना करें तो इन 58 सीटों में से सिर्फ 7 ही सीटें ऐसी थीं, जहां तब सपा-कांग्रेस गठबंधन और बीएसपी दोनों ने ही मुस्लिम चेहरों पर दांव लगाया था। तथ्य यह है कि वो सातों सीटें भारतीय जनता पार्टी जीती थी।
इन 8 सीटों पर गठबंधन और बसपा ने उतारे मुस्लिम उम्मीदवार
इस बार के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिन 8 सीटों पर अखिलेश यादव-जयंत चौधरी के गठबंधन और मायावती की पार्टी ने मुस्लिमों को टिकट दिया है, वे विधानसभा क्षेत्र हैं- थाना भवन, सिवालखास, मेरठ, मेरठ दक्षिण, धौलाना, बुलंदशहर, कोल और अलीगढ़। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो '80 बनाम 20' वाली टिप्पणी की है, उसका मकसद तो समझा जा सकता है। लेकिन, अगर सपा-रालोद गठबंधन को यह लगता है कि सीएम योगी की टिप्पणियों से उन्हें ही मुस्लिम वोटों की गोलबंदी में फायदा मिलेगा तो इसके बारे में ताल ठोककर दावा नहीं किया जा सकता। क्योंकि पश्चिमी यूपी में बसपा को भी मुसलमानों का समर्थन मिलता रहा है। 2017 के चुनाव में भी पहले दो चरणों में माना जाता है कि काफी मुसलमानों का समर्थन बीएसपी को भी मिला था।
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मुजफ्फरनगर जिले की सीटों से सपा-रालोद ने मुसलमानों को रखा दूर
2017 की तरह गठबंधन ने इस बार भी मुजफ्फरनगर की 6 विधानसभा सीटों पर मुसलमान उम्मीदवार उतारने से परहेज किया है। क्योंकि, यहां 2013 के दंगों का भूत अभी भी गया नहीं है। सपा-रालोद गठबंधन किसी भी सूरत में जाटों का समर्थन पाने की उम्मीद नहीं खोना चाहता। अलबत्ता इस बार मुसलमानों के एक वर्ग में इस रणनीति के खिलाफ नाराजगी भी सामने आ चुकी है। हालांकि, मुजफ्फरनगर की भरपाई करने के लिए गठबंधन ने मुसलमानों को मेरठ जिले में चार सीटें जरूर दी हैं और कैराना से नाहिद हसन को उम्मीदवार बनाया है। लेकिन, नाहिद हुसैन के मसले को बीजेपी ने इस तरह से उछाला है कि कांग्रेस से सपा में आए विवादित मुस्लिम नेता इमरान मसूद की उम्मीदों पर अखिलेश यादव को पानी फेरना पड़ गया है।