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'अखिलेश-शिवपाल ड्रामा' के 6 अहम किरदार, किसका क्या रोल?

By Rajeevkumar Singh
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नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी के अंदर चाचा-भतीजे के बीच वर्चस्व की लड़ाई की कहानी की शुरुआत 2011 में हुई थी और 2016 में यह अपने क्लाइमेक्स की ओर बढ़ती नजर आ रही है।

2011 और 2016 के बीच 5 साल का अंतराल है। 5 साल के अंतराल पर ही विधानसभा चुनाव होते हैं और जीतने वाली पार्टी सत्ता में आती है। चाचा-भतीजे अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच लड़ाई की पृष्ठभूमि में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव है।

2011 में जब समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश का विधान सभा चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरी थी तो मुखिया और सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव ने चाचा-भतीजे के संघर्ष की कहानी का पहला पन्ना लिखा था।

मुलायम ही इस कहानी के लेखक भी हैं और सूत्रधार भी। 2011 से 2016 के बीच कहानी में ट्विस्ट और टर्न लाने में भी उन्होंने ही केंद्रीय भूमिका निभाई है। बाकी किरदार भी मुलायम के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं।

समाजवादी पार्टी के अंदर यह महाभारत सिर्फ चाचा-भतीजे के बीच ही नहीं है, बाप-बेटे के बीच भी है, भाई-भाई के बीच भी है और साथ में कुछ बाहरी किरदार भी अहम भूमिका में हैं।

आइए जानते हैं मुलायम की लिखी इस पटकथा के छह किरदारों के बारे में और जानिए किसकी क्या भूमिका है?

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सपा के ताकतवर किरदार

सपा के ताकतवर किरदार

2011 तक समाजवादी पार्टी में चार किरदार सबसे ताकतवर थे। मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, राम गोपाल यादव और सपा का मुस्लिम चेहरा रहे आजम खान। मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी को खड़ा किया और इसे मजबूत बनाने में बाकी चारों किरदारों ने अहम भूमिका निभाई।

शिवपाल सिंह यादव, मुलायम के सगे भाई हैं और राम गोपाल यादव चचेरे भाई। रामगोपाल यादव काफी पढ़े लिखे हैं और सपा के दिमाग माने जाते हैं, वहीं शिवपाल जमानी स्तर पर लोगों के बीच सपा को मजबूत बनाने की प्रमुख भूमिका में बने रहे। उधर आजम खान मुस्लिमों को सपा से जोड़ने की वजह से काफी ताकतवर बन गए।

2012 के यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जब सपा जुटी तो इसमें एक और किरदार ने कदम रखा। मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश सिंह यादव को न सिर्फ सपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया बल्कि उनको सीएम बनाने के लिए भी प्रोजेक्ट कर दिया।

यह बात शिवपाल और आजम खान पचा नहीं पाए क्योंकि ये दोनों ही मुलायम के बाद सपा की बागडोर संभालना चाहते थे। कहानी दरअसल यहीं से शुरू होती है। आगे जानिए अखिलेश को सपा में आगे बढ़ाने में किसकी भूमिका रही और कौन हैं अखिलेश के सबसे करीबी?

राम गोपाल यादव

राम गोपाल यादव

बताया जाता है कि सपा के राष्ट्रीय महासचिव राम गोपाल यादव ने मुलायम सिंह यादव को अखिलेश को पार्टी में आगे बढ़ाने के लिए राजी किया। 2011 में जब शिवपाल सिंह यादव और आजम खान यूपी का सीएम बनने का सपना देख रहे थे तो राम गोपाल यादव ने ही उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।

2011 से 2016 के बीच राम गोपाल यादव हमेशा अखिलेश के साथ खड़े रहे। पार्टी में शिवपाल का कद छोटा करने में राम गोपाल यादव ने बड़ी भूमिका निभाई। जब हाल में मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल का कद बड़ा करने के लिए अचानक अखिलेश यादव को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया तो राम गोपाल ने ही मुलायम के गुस्से की सूचना अखिलेश को दी।

इसके बाद अखिलेश ने शिवपाल का कद छोटा करने के लिए उससे कई महत्वपूर्ण मंत्रालय छीन लिए। आगे जानिए, अखिलेश से रार करने की भूमिका में कैसे आए शिवपाल।

शिवपाल सिंह यादव

शिवपाल सिंह यादव

मुलायम सिंह यादव के बाद उनकी विरासत को सगे भाई शिवपाल सिंह यादव संभालना चाहते थे लेकिन मुलायम ने अचानक अखिलेश यादव को अपनी विरासत सौंपने का फैसला लिया। वहीं से अखिलेश यादव और शिवपाल यादव की रार शुरू हुई।

उस समय शिवपाल ने नंबर 2 पोजिशन के लिए समझौता कर लिया था लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा बनी रही। यही वजह है कि अखिलेश और शिवपाल के बीच वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती है। आगे जानिए, किसने शिवपाल को अखिलेश के खिलाफ भड़काया।

आजम खान

आजम खान

समाजवादी पार्टी के मुस्लिम चेहरा रहे आजम खान भी यूपी का सीएम बनना चाहते थे। लेकिन अखिलेश उनके रास्ते में आ गए। कहा जाता है कि आजम खान ने इसके बाद अखिलेश के खिलाफ चाचा शिवपाल सिंह यादव को भड़काया।

शिवपाल सिंह की सीएम बनने की महत्वाकांक्षा का फायदा आजम खान ने उठाया और अखिलेश के खिलाफ उनको खड़ा किया। उधर, राम गोपाल यादव शिवपाल के खिलाफ अखिलेश का साथ देते रहे। आगे जानिए, शिवपाल-आजम की गुटबंदी से कैसे संघर्ष कर रहे हैं अखिलेश?

अखिलेश सिंह यादव

अखिलेश सिंह यादव

मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की विरासत 2011 में अपने बेटे अखिलेश सिंह यादव को सौंप दिया। 2012 के यूपी इलेक्शन में सपा को अभूतपूर्व सफलता मिली और अखिलेश सीएम बन गए। उनके सीएम बनते ही पार्टी में नंबर वन बनने का सपना देख रहे शिवपाल सिंह यादव और आजम खान को झटका लगा।

सपा में शिवपाल की पकड़ काफी मजबूत थी। अखिलेश ने धीरे-धीरे पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत बनानी शुरू की और खासतौर पर युवाओं को सपा से जोड़ने का अभियान चलाया। शिवपाल के खिलाफ मजबूती से खड़े होने में चाचा राम गोपाल यादव ने बड़ी भूमिका निभाई।

शिवपाल का कद पार्टी में छोटा करने के लिए अखिलेश ने बहुत शांति से काम लिया। 2011 में अचानक पार्टी में उभरे अखिलेश 5 साल बाद अब इतने मजबूत हो चुके हैं कि जब उनसे मुलायम ने पार्टी अध्यक्ष पद छीनकर शिवपाल को दिया तो उन्होंने भी शिवपाल का कद छोटा करने के लिए उनसे कई मंत्रालय छीन लिए।

आगे जानिए कि अखिलेश से प्रदेश अध्यक्ष पद छीनने के लिए मुलायम को किसने भड़काया?

अमर सिंह

अमर सिंह

समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कुछ दिन पहले यूपी के सीएम और बेटे अखिलेश यादव को हटाकर शिवपाल को नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया।

बताया जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव को ऐसा करने के लिए अमर सिंह ने भड़काया। इसके बाद ही अखिलेश और शिवपाल में और ज्यादा ठन गई और एक्शन का रिएक्शन होना शुरू हो गया।

अमर सिंह समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव के करीबी रहे हैं। अखिलेश और राम गोपाल यादव के गुट की उनसे नहीं बनती है। आगे जानिए सपा के सबसे प्रमुख किरदार मुलायम सिंह यादव की क्या है भूमिका?

मुलायम सिंह यादव

मुलायम सिंह यादव

सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव पार्टी की धुरी हैं। उन्हीं की वजह से पार्टी एकजुट है और वही आपसी झगड़ों को निपटाकर पार्टी को टूटने से बचाते रहे हैं। बेटे अखिलेश और भाई शिवपाल के बीच फंसे मुलायम सिंह यादव दोनों के बीच शक्ति संतुलन बनाने की कोशिशों में लगे रहते हैं।

मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश यादव को 2011 में शिवपाल के ऊपर पार्टी में तरजीह दी थी। तब शिवपाल का कद उन्होंने ही छोटा किया था। पार्टी में नंबर 2 पोजिशन के लिए शिवपाल ने समझौता कर लिया लेकिन नंबर 1 बनने की कोशिश नहीं छोड़ी।

उधर अखिलेश नंबर 1 बने रहने के लिए शिवपाल का कद छोटा करने की कोशिश में लगे रहे। इन दोनों के झगड़ों को मुलायम ही सुलझाते रहे हैं।

अखिलेश-शिवपाल ड्रामा 2016 का अंजाम

अखिलेश-शिवपाल ड्रामा 2016 का अंजाम

चाचा-भतीजे की इस बार की लड़ाई का अंजाम क्या हुआ? देखिए ग्राफिक्स।

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English summary
Political rift between Akhilesh Yadav and Shivpal Singh Yadav started in 2011 and in 2016 it is heading towards its climax.
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