जनसंख्या कानून: जब नसबंदी के लिए फायरिंग में मारे गये थे 25 लोग
लखनऊ। क्या कानून बना कर जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सकता है ? उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की तैयारी चल रही है। इसका मसौदा भी बन गया है। इस कानून का मकसद दो बच्चों की नीति को बढ़ावा देना है। जिस दम्पति को दो से अधिक बच्चे होंगे उन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा। क्या यह कानून आबादी को रोकने के लिए बनाया जा रहा है या फिर इसका कोई राजनीतिक मतलब भी है ? किसी भी कानून को जोर जबर्दस्ती से लागू करने पर गंभीर नतीजे निकलते हैं। इमरजेंसी (1975) के दौरान आबादी को रोकने के लिए नसबंदी अभियान चलाया गया था। नसबंदी के लिए इंदिरा सरकार ने ऐसे जुल्म और अत्याचार किये कि पूरा देश त्राहिमाम कर उठा था। उस समय की अमानुषिक घटनाओं को पढ़ कर आज भी रूह कांप जाती है। इमरजेंसी में मीडिया पर सेंसरशिप लागू था। लेकिन कुछ घटनाएं छन कर बाहर आ जाती थीं। पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के प्रेस सलाहकार और प्रतिष्ठित पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब (इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी') में तत्कालीन सरकार की बर्बरता का विस्तार से वर्णन किया है।
जुल्म
ढाने
की
तैयारी
तारीख
18
अक्टूबर
1975,
जिला
मुजफ्फरनगर,
उत्तर
प्रदेश।
मुजफ्फरनगर
में
कलेक्टर
की
ओर
से
एक
परिवार
नियोजन
कैंप
लगाया
गया
था।
लोगों
पर
दबाव
डाला
जा
रहा
था
कि
वे
एक
बड़ी
रकम
जमा
करें।
जो
इनकार
करते
उन्हें
मीसा
के
तहत
जेल
भेजने
की
धमकी
दी
जाती।
पुलिस
के
कई
दस्ते
रेलवे
स्टेशन
और
बस
अड्डे
के
आसपास
मंडरा
रहे
थे।
वे
इसी
ताक
में
लगे
थे
कि
कब
कहां
से
किसी
को
उठा
लें।
लोगों
को
जबरन
नसबंदी
के
लिए
कैंप
में
लाया
जा
रहा
था।
पुलिस
वाले
किसी
को
उठा
ले
रहे
थे।
वे
यह
भी
नहीं
देखते
कि
कौन
विवाहित
है
और
कौन
अविवाहित।
उन्हें
इस
बात
से
भी
मतलब
नहीं
था
कि
कौन
बच्चा
है
और
कौन
बुजुर्ग।
जिन्हें
कोई
बच्चा
नहीं
था
उन्हें
भी
नहीं
बख्शा
गया।
नसबंदी
के
लिए
फायरिंग,
25
की
मौत
पुलिस
वालों
का
अत्याचर
चरम
पर
था।
पूरी
तैयारी
के
साथ
तीन
दिनों
तक
पुलिस
लोगों
को
उठती
रही।
इसी
क्रम
में
एक
दिन
18
लोगों
को
पकड़
कर
परिवार
नियोजन
कैंप
में
लाया
जा
रहा
था।
आसपास
के
लोग
उन्हें
छुड़ाने
के
लिए
पुलिस
का
विरोध
कर
रहे
थे।
तनाव
बढ़ता
गया।
नाराज
लोगों
ने
पत्थर
बरसाने
शुरू
कर
दिये।
पुलिस
ने
बेकाबू
भीड़
को
नियंत्रित
करने
के
लिए
आंसू
गैस
के
गोले
छोड़े।
फिर
अचानक
पुलिस
ने
भीड़
पर
फायरिंग
कर
दी।
इस
गोलीबारी
में
25
लोग
मारे
गये।
अखबारों
पर
सेंसरशिप
लागू
होने
के
बावजूद
ये
बात
मुजफ्फरनगर
से
35
किलोमीटर
दूर
कैराना
तक
पहुंच
गयी।
उस
समय
विरोध
प्रदर्शनों
पर
पूरी
तरह
से
रोक
लगी
थी।
लेकिन
इस
घटना
के
विरोध
में
कैराना
के
लोग
सड़कों
पर
उतर
गये।
पुलिस
ने
उन्हें
खदेड़ा
तो
स्थिति
बिगड़
गयी।
यहां
भी
पुलिस
ने
फायरिंग
की
जिसमें
तीन
लोग
मारे
गये।
नसबंदी
को
सफल
बनाने
के
लिए
पुलिस
जल्लाद
की
तरह
पेश
आ
रही
थी।
हिंस-प्रतिहिंसा
और
फर्जीवाड़ा
नसबंदी
के
लिए
अफसर
और
पुलिसवाले
लोगों
से
जबर्दस्ती
कर
रहे
थे।
इसके
खिलाफ
जनाक्रोश
फैल
रहा
था।
उत्तर
प्रदेश
के
बस्ती
जिले
के
एक
गांव
में
प्रखंड
विकास
पदाधिकारी,
पंचायत
सचिव
और
ग्रामीण
कार्यकर्ता
नसबंदी
कराने
वाले
संभावित
लोगों
के
नाम
दर्ज
करने
पहुंचे
थे।
सरकारी
मुलाजिमों
को
देख
कर
लोग
आपे
से
बाहर
हो
गये।
एक
उन्मादी
भीड़
ने
सरकारी
कर्मचारियों
को
घेर
लिया
और
उन्हें
काट
कर
टुकड़े
टुकड़े
कर
दिये।
इस
घटना
के
बाद
पुलिस
वालों
का
गुस्सा
सातवें
आसमान
पर
पहुंच
गया।
उन्होंने
पास
के
इलाकों
में
ऐसा
दमन
चक्र
चलाया
कि
जनता
कराह
उठी।
केवल
उत्तर
प्रदेश
ही
नहीं
बल्कि
दूसरे
राज्यों
में
यही
हाल
था।
सरकारी
कर्मचारियों
को
भी
सताया
जा
रहा
था।
नसबंदी
का
टारगेट
पूर
नहीं
करने
पर
उन्हें
प्रताड़ित
किया
जा
रहा
था।
हरियाणा
के
रोहतक
जिले
में
एक
बुजुर्ग
विधवा
शिक्षिक
का
वेतन
इस
लिए
रोक
दिया
गया
क्यों
कि
उनके
टारगेट
में
दो
नसबंदी
कम
रह
गयी
थी।
उनसे
कहा
गया
कि
आप
दो
लोगों
को
खोज
कर
लाइए
और
अपना
वेतन
ले
जाइए।
बुजुर्ग
महिला
खोज-खाज
कर
थक
गयीं
लेकिन
कोई
नहीं
मिला।
अंत
में
वे
दो
पागल
भिखारियों
को
पकड़
कर
नसबंदी
कैंप
ले
आयीं।
इस
तरह
उनका
टारगेट
पूरा
हुआ
और
वेतन
मिलना
संभव
हो
सका।
बिहारः जनसंख्या नियंत्रण कानून पर सीएम नीतीश कुमार का बड़ा बयान, कहा- हम पक्ष में नहीं हैं
नसबंदी
के
लिए
बिहार
में
भी
चली
थी
गोली
बिहार
के
सरकारी
मुलाजिम
संजय
गांधी
को
खुश
करने
के
लिए
जी
जान
से
जुटे
थे।
आदिवासी
इलाकों
में
खूब
जोर-जबर्दस्ती
हुई
थी।
सिंहभूम
(अब
झारखंड
में)
के
डीसी
ने
नसबंदी
के
लक्ष्य
को
बेहतर
तरीके
से
पूरा
किया
जिसके
लिए
उन्हें
गोल्ड
मेडल
से
नवाजा
गया।
आगे
निकलने
की
होड़
में
अफसर
ज्यादतियां
करने
लगे।
राजधानी
पटना
के
पूर्वी
इलाके
(पटना
सिटी)
में
जब
जबरन
नसबंदी
की
कोशिश
हुई
तो
लोग
भड़क
गये।
हंगामा
इतना
बढ़
गया
कि
पुलिस
ने
गोली
चला
दी।
इस
गोलीबारी
में
एक
व्यक्ति
की
मौत
हो
गयी।
लेकिन
सेंसरशिप
की
वजह
से
खबर
में
केवल
प्रशासन
का
पक्ष
लिया
गया।
बाद
में
प्रशासन
ने
यह
कहा
कि
गोली
उन
लोगों
पर
चली
जो
फुटपाथ
से
कब्जा
हटाने
का
विरोध
कर
रहे
थे।
बिहार
में
नसबंदी
के
'अच्छे
काम'
से
संजय
गांधी
खुश
हो
गये।
वे
चार
बार
बिहार
का
दौरा
करने
आये।
संजय
गांधी
की
यात्रा
पर
10
लाख
रुपये
खर्च
किये
गये।
चर्चा
के
मुताबिक
इसका
आधा
बिहार
सरकार
ने
और
आधा
व्यापारी
वर्ग
के
लोगों
ने
वहन
किया।
नसबंदी
के
इस
अत्याचार
की
वजह
से
ही
1977
में
इंदिरा
गांधी
को
करारी
हार
झेलनी
पड़ी
थी।
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