इलाहाबाद नगर निगम चुनाव: महापौर पद के लिए BJP में नंदी-सिद्धार्थनाथ गुट आमने-सामने
इलाहाबाद। बीते लोकसभा चुनाव से पहले इलाहाबाद परिक्षेत्र में भाजपा अपने लिये कद्दावर चेहरे की तलाश करती थी। उसे दमदार प्रत्याशी चाहिये था जिसके सहारे वह कमल खिला सके। किसे क्या पता था कि लोकसभा चुनाव के बाद जब विधानसभा चुनाव होंगे तो इलाहाबाद पूरे यूपी के लिये भाजपा का चेहरा नजर आयेगी। उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य, कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह, कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल जैसे दिग्गज आज सिर्फ इलाहाबाद की ही नहीं पूरे यूपी या कहें कि देश में भाजपा का बड़ा चेहरा हैं। सही मायने में अब इलाहाबाद में भाजपा के बड़े-बड़े चेहरे तैयार हो चुके हैं जिन्हें किसी बात पर नकारना मुश्किल है।
नगर निगम में कमल का खिलना तय?
सियासी गणित कहती है कि लोकसभा और विधानसभा की तरह इलाहाबाद नगर निगम में भी भाजपा का जादू चलेगा, प्रचंड बहुमत से कमल खिलेगा। मानसिकता की बात करें तो माना जा रहा है जिसे कमल का चिन्ह मिला उसकी जीत लगभग तय है। ऐसे में हर बड़ा चेहरा भाजपा का टिकट चाहता है लेकिन अब समस्या यह है कि टिकट किसी मिले? शहर में सबसे बड़े दावेदार राजनैतिक घराने और बीजेपी के बड़े चेहरे हैं। एक निर्वतमान महापौर अभिलाषा गुप्ता और दूसरे राघवेंद्र सिंह।
अभिलाषा या राघवेंद्र सिंह
अभिलाषा, कैबिनेट मंत्री नंदगोपाल की पत्नी हैं। राघवेंद्र सिंह, कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह के भाई हैं। दोनों दावेदार टिकट चाहते हैं और सत्ता और संगठन में इनकी बात नकारने वाला कोई नहीं है। दोनों दावेदारों का गुट बंट चुका है। सियासी तलवार खिंच गई है चूंकि सामान्य सीट होने के कारण केशव मौर्य पहले ही वॉक आउट कर चुके हैं। ऐसे में पूरी लड़ाई इन्हीं दोनों कुनबे पर है। सिद्धार्थ नाथ सिंह का कुनबा लंबे समय से भाजपाई है। सिद्धार्थ पहले से ही भाजपा के राष्ट्रीय नेता रहे हैं। लेकिन निवर्तमान महापौर होने का फायदा अभिलाषा को मिल सकता है।
क्या करेगी भाजपा?
इन दोनों गुटों में किसी को टिकट देने पर दो समस्या भाजपा के सामने होंगी। पहली उसकी साख क्योंकि बीजेपी ने मंत्री के रिश्तेदार को टिकट न देने की बात कही है। अगर टिकट देती है। तो विपक्ष घेराव निश्चित करेगा। दूसरी समस्या है कि दोनों कद्दावर गुट हैं जिसका टिकट कटे वह विरोध कर विभीषण बन सकता है। ऐसे में यह उम्मीद हैं कि सबसे बडे दावेदार ही कहीं हाशिए पर न चले जाये। भाजपा दोनों से ही किनारा कर ले और टिकट किसी तीसरे को मिले। संभावना है कि बीजेपी किसी भी मंत्री के परिवार के सदस्य को टिकट न देने के अपने फैसले पर कायम रहे। वह परिवादवाद को बढ़ावा न देने का कारण बताकर अभिलाषा गुप्ता नंदी व राघवेंद्र सिंह के नाम को काट कर चौंकाने वाला नाम सामने दे। जैसा की विधानसभा चुनाव में हो चुका है।
दोनों गुट चुप
शहर में हर ओर दोनों गुटों का प्रचार चरम पर है। समर्थक भी बंट गये हैं। लेकिन न तो सिद्धार्थ की ओर से कोई बयान आया है, न ही नंदी कुछ बोल रहे हैं। शीत युद्ध क्या रंग लायेगा। यह तो वक्त बतायेगा लेकिन सबकी खामोशी सियासी उथल-पुथल का ही संकेत दे रही है। अंतिम फैसला संगठन को लेना है इसलिये कोई खुद कुछ न बोलकर आने वाले लोकसभा के उपचुनाव की गोट सेट कर रहा है। क्योंकि यहीं से उप चुनाव की भी गणित बीजेपी तय करना चाह रही है। पूरी संभावना है कि महापौर के दावेदार सांसद का चुनाव लड़ने की भी दावेदारी करेंगे।
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