पंजाब में दलित को सीएम बनाने का कांग्रेस का दांव UP में कितना होगा कारगर, जानिए पूरा समीकरण
लखनऊ, 22 सितंबर: उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले दलितों को साधने के लिए कांग्रेस ने पंजाब में दलित समुदाय से जुड़े चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाया है। अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए कांग्रेस का यह फैसला कई मायनों में अहम माना जा रहा है। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में कांग्रेस अपना वजूद बचाने के लिए जूझ रही है। एक समय दलित समुदाय को कांग्रेस का कोर वोटर माना जाता था लेकिन समय के साथ ही परिस्थितियां बदलती चली गईं। पंजाब से ही आने वाले कांशीराम ने दलितों को लेकर एक संगठन बनाया और बाद में उसने राजनीतिक रूप ले लिया। इसी के सहारे मायावती के रूप में यूपी को पहला दलित सीएम मिला था। लेकिन क्या कांग्रेस का यह कदम यूपी में उसे दलितों से कनेक्ट कर पाएगा यह देखना दिलचस्प होगा।
पंजाब में मुख्यमंत्री के रूप में चन्नी के शपथ लेने के बाद यूपी में इसका कितना असर पड़ेगा यह अभी कह पाना संभव नहीं है। हालांकि, पंजाब में सत्ता बनाए रखने की चुनौती का सामना कर रही कांग्रेस की अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों पर भी नजर रहेगी। कांग्रेस के पदाधिकारियों का मानना है कि दलित समाज को प्रतिनिधित्व देना कांग्रेस की बड़ी सोच है। एक प्रदेश सचिव कहते हैं कि,
'' निश्चिततौर पर चरणजीत सिंह चन्नी का सीएम बनना एक अच्छा संकेत है लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव में इसका कितना प्रभाव पड़ेगा यह कहना कठिन है। लेकिन एक बात तो तय है कि इससे दलित समुदाय और जनता के बीच एक अच्छा संदेश गया है। पार्टी को इसी तरह के चौकाने वाले फैसलों की जरूरत है। पार्टी पहले से ही दलितों और आदिवासियो के बीच अपना अभियान चला रही है और आने वाले समय में इसे और तेज किया जाएगा।''
मायावती
ने
दी
थी
चन्नी
को
बधाई,
लेकिन
कसा
था
तंज
लंबे
समय
से
दलितों
के
नेता
माने
जाने
वाली
बहुजन
समाज
पार्टी
(बसपा)
प्रमुख
मायावती
ने
सोमवार
को
पंजाब
का
मुख्यमंत्री
बनने
पर
चरणजीत
चन्नी
को
तुरंत
बधाई
दी
थी।
संयोग
से,
पंजाब
में
बसपा
की
स्थापना
दलित
नेता
कांशी
राम
ने
की
थी,
जो
उस
राज्य
में
पैदा
हुए
थे।
मायावती
ने
ट्विटर
पर
हुए
कहा,
"बेहतर
होता
कि
कांग्रेस
उन्हें
(चरणजीत
चन्नी)
पूरे
पांच
साल
के
लिए
नियुक्त
करती।
उन्हें
कम
समय
के
लिए
पंजाब
का
मुख्यमंत्री
नियुक्त
करना
दिखाता
है
कि
यह
उनकी
(कांग्रेस
की)
चुनावी
हथकंडा
है
और
कुछ
नहीं।"
मायावती की तीखी प्रतिक्रिया उन टिप्पणियों की पृष्ठभूमि में आई, जिसमें कहा गया था कि पंजाब के सीएम के रूप में चन्नी का कांग्रेस का चुनाव पंजाब में कांग्रेस के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के साथ बसपा के गठबंधन को बेअसर करने का एक प्रयास है। बसपा को पंजाब में केवल दो-पांच प्रतिशत वोट मिले हैं, जाट और सवर्ण सिखों की पार्टी मानी जाने वाली शिअद का मायावती का समर्थन 2022 के विधानसभा चुनाव में एक नई सोशल इंजीनियरिंग साबित हो सकता है।
मायावती
ने
कांग्रेस
के
साथ
बीजेपी
पर
भी
किया
था
वार
मायावती
ने
अंबेडकर
का
जिक्र
करते
हुए
पंजाब
में
कांग्रेस
और
अन्य
जगहों
पर
प्रतिद्वंद्वियों
पर
एक
साथ
निशाना
साधने
की
कोशिश
की।
उन्होंने
भारतीय
जनता
पार्टी
(भाजपा)
पर
निशाना
साधते
हुए
आरोप
लगाया
कि
उसका
"पिछड़े
वर्गों
के
लिए
चुनाव
पूर्व
प्यार"
एक
बहाना
था।
मायावती
ने
मांग
की
है
कि
भाजपा
के
नेतृत्व
वाली
केंद्र
सरकार
को
दशकीय
जनगणना
के
साथ-साथ
जातिगत
जनगणना
करानी
चाहिए।
केंद्र
सरकार
ने
पिछले
संसद
सत्र
के
दौरान
कहा
था
कि
जातीय
जनगणना
कराने
की
कोई
योजना
नहीं
है।
दलितों
के
सहारे
सत्ता
हासिल
करती
रही
है
कांग्रेस
दलितों
और
सवर्ण
जातियों
का
संयोजन
अतीत
में
कई
जीतने
वाली
पार्टियों
या
गठबंधनों
के
लिए
एक
सफलता
का
सूत्र
रहा
है।
उत्तर
प्रदेश
में
अपने
सुनहरे
दिनों
के
दौरान,
कांग्रेस
ने
इस
जाति
के
हिसाब
से
सत्ता
हासिल
की।
बाद
में
इसी
सोशल
इंजीनियरिंग
के
बहाने
ही
बसपा
को
सफलता
मिली
है।
भाजपा
भी
चुनाव
जीतने
के
लिए
उच्च
जाति
और
अन्य
पिछड़ा
वर्ग
(ओबीसी)
को
अपने
पक्ष
में
लाने
में
सफल
रही।
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले दोहराने का प्रयास किया, जहां उभरते हुए दलित नेता चंद्रशेखर रावण ने यूपी के कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से भी मुलाकात की। लेकिन कांग्रेस के प्रयासों को सफलता नहीं मिली। पंजाब में, हालांकि, कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में अपनी जीत में ओबीसी और दलित सिखों दोनों का समर्थन मिला है।
क्या
है
यूपी
में
दलित
वोटों
की
गणित
दलित
उत्तर
प्रदेश
की
आबादी
का
लगभग
21
प्रतिशत
हैं।
भाजपा
के
प्रति
उनके
झुकाव
ने
पार्टी
को
उत्तर
प्रदेश
में
काफी
लाभ
पहुंचाया
है।
एक
सर्वेक्षण
के
अनुसार,
2009
के
लोकसभा
चुनाव
से
पहले
भाजपा
को
केवल
10-12
प्रतिशत
दलित
वोट
मिले
थे।
2014
के
मोदी-लहर
चुनाव
में,
दलित
वोटों
में
भाजपा
की
हिस्सेदारी
बढ़कर
लगभग
24
प्रतिशत
और
2019
में
34
प्रतिशत
हो
गई।
इसी
बीच
2017
का
उत्तर
प्रदेश
विधानसभा
चुनाव
आया।
इस
तेजी
के
बदलाव
ने
भाजपा
को
उत्तर
प्रदेश
विधानसभा
की
403
सीटों
में
से
312
सीटों
पर
पहुंचा
दिया।
काशी विद्यापीठ में राजनीति विज्ञाान के पूर्व प्रोफेसर कमल सिन्हा कहते हैं कि,
''भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के इस कदम को लेकर और उसके संभावित प्रभाव से सावधान है। मायावती भी दलित-ब्राह्मण गठजोड़ की मदद से ही उत्तर प्रदेश में फिर से सत्ता में वापसी के लिए प्रयासरत हैं। कांग्रेस, उत्तर प्रदेश की राजनीति में कमजोर होने के बावजूद, भाजपा के लिए खेल बिगाड़ने की संभावना तलाश रही है क्योंकि उसकी पूर्व सहयोगी समाजवादी पार्टी (सपा) का लक्ष्य 20 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपना आधार मजबूत करने में जुटी है।''