क्या कोविड की वजह से मचा बवाल ? कुछ शवों को नदियों में बहाना यूपी के इन गांवों की परंपरा है
लखनऊ, 16 मई: पिछले दिनों उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ जिलों में गंगा में लावारिस शवों के बहने और उन्हें रेत में दफनाने की घटना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि पर बट्टा लगाया है। लेकिन, अगर तथ्यों की गहराई से पड़ताल करें तो इसकी संख्या भले ही मौजूदा हालात के लिए जिम्मेदार हो, लेकिन उत्तर प्रदेश के दूर-दराज के गांवों में कुछ खास स्थिति में ये परंपराएं नई नहीं हैं। बता दें कि जितनी बड़ी संख्या में नदियों में शव बहते हुए देखे गए थे और रेत में उन्हें दफनाया जा रहा था, उससे आशंका पैदा हुई थी कि गांवों में कोविड से मरने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है, जिसके चलते लोगों को ऐसा करना पड़ रहा है। लेकिन, तथ्य ये सामने आई है कि हालात ने तस्वीरों को जरूर भयावह बनाया है, लेकिन ये कोई नई परंपरा नहीं हैं।
नदी में शवों को देखकर मचा था बवाल
गंगा में शवों के बहाए जाने की खबर फैलने के बाद यूपी के ही उन्नाव जिले में सैकड़ों शवों को रेत में दफाने की खबर ने खूब सनसनी मचाई थी। इस जिले के रुझियाई गांव के उदल फौजी ने ईटी से बातचीत में माना है कि 2 मई से वो 5 शवों को अंतिम संस्कार के लिए वहां के बक्सर घाट तक ले जा चुके हैं। 38 साल के फौजी की पत्नी अमीता सिंह गांव की नई प्रधान बनी हैं। उन्होंने कहा है कि उन्होंने 5 में से दो शवों का दाह संस्कार और तीन को दफनाने में मदद की है। बता दें कि स्थानीय मीडिया के मुताबिक स्थानीय बक्सर घाट के बाद नदी के किनारे कई जगहों पर शवों के मिलने पर बवाल मच गया था। चिंता इस बात को लेकर उठी है कि अगर इतनी ज्यादा तादाद में शव कोविड मरीजों के थे तो इसका मतलब गांवों में इस बीमारी ने भारी तबाही मचा रखी है, जो कि सरकारी आंकड़ों में सामने नहीं आ पा रही?
रेत में दफनाने की परंपरा नई नहीं- स्थानीय
जिस तरह से गंगा में शवों के बहाने को लेकर सवाल उठाए गए, उसी तरह से रेत में उन्हें बड़ी संख्या में दफनाने पर भी खूब कोहराम मचा। लेकिन, उदल फौजी ने जो कुछ कहा है उसपर शायद अभी तक इलाके के लोगों से बाहर किसी की नजर नहीं पड़ी थी। उन्होंने कहा, 'यह कोई नई बात नहीं है। वर्षों से लोग, न सिर्फ उन्नाव के बल्कि फतेहपुर और राबरेली से भी यहां अपने परिजरों के अंतिम संस्कार के लिए आते हैं और पारंपरिक तौर पर दाह संस्कार के अलावा, कुछ लोग रेत में भी दफन करते हैं- कई बार पारिवारिक/सामुदायिक परंपरा की वजह से ऐसा करते हैं....' उन्होंने ये भी कहा कि, 'हालांकि, महामारी के चलते लगता है कि दफन करना कई गुना बढ़ गया है, शायद लोगों को मौत के कारण को लेकर असमंजस हो रही है और उन्हें संक्रमित होने का डर होता है....'वैसे दाह संस्कार की जगह रेत में दफनाने की मुख्य वजह लकड़ियों की कीमतों में इजाफा होने का भी दावा किया जा रहा है।
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'खास मामलों में दाह संस्कार का रिवाज नहीं'
फौजी के मुताबिक 2 मई के बाद से करीब 3,000 की आबादी वाले गांव में सात लोगों की मौत हो चुकी है। उन्हें कुछ दिनों तक बुखार हुआ और फिर मौत हो गई। उनमें से ज्यादातर लोग 70 साल से ज्यादा के थे और दो को तो कई और बीमारियां भी थीं, इसलिए गांव वालों ने इसे ज्यादा तबज्जो नहीं दिया। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह कोई नहीं जानता कि क्या उनमें से किसी को कोरोना हुआ था। वहीं गंगा में शवों को बहाने के बारे में गाजीपुर के डीएम एमपी सिंह ने बहुत बड़ी जानकारी दी है। उनका कहना है कि इसके पीछे परंपरा का बहुत बड़ा रोल है। गौरतलब है कि गाजीपुर में कम से कम 25 शव नदी से बाहर निकाले गए थे। उन्होंने शुक्रवार की एक घटना बताई। उन्होंने बताया कि एक परिवार इसलिए शव का दाह संस्कार करने के लिए तैयार नहीं हुआ, क्योंकि मौत सांप काटने के चलते हुई थी। ऐसे मामलों में दाह संस्कार करना रिवाज के खिलाफ है।