ELECTION SPECIAL: पूर्वांचल में पार्टियों की कठिन परीक्षा
छठे चरण में शनिवार को पूर्वांचल क्षेत्र में होनेवाले चुनाव के लिए पार्टियों ने पूरी ताक़त झोंक रखी है.
उत्तर प्रदेश में शनिवार चार मार्च को होने वाला छठे चरण का चुनाव कई कारणों से महत्वपूर्ण है.
समाजवादी पार्टी के सामने इस चरण में गंभीर चुनौती होगी. 2012 में सपा ने यहाँ की 49 सीटों में से 27 सीटें जीती थीं, यानी आधी से भी ज़्यादा.
बाकी सीटों में से नौ बसपा, सात बीजेपी, चार कांग्रेस और दो अन्य की झोली में गए थे.
इस चरण में कथित तौर पर ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाली दो राजनीतिक हस्तियों की भी परीक्षा होने वाली है.
एक हैं योगी आदित्यनाथ और दूसरे हैं जेल की सज़ा काट रहे मुख्तार अंसारी.
यूपी चुनाव: पांचवें चरण के पांच बड़े चेहरे
हिंदुत्व कार्ड की परीक्षा
पूर्वांचल का यह इलाका बीजेपी के लिहाज़ से काफी अहम है क्योंकि इस इलाके में उनके हिंदुत्व ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ का एक तरह से आधिपत्य है.
यहां की धार्मिक संस्थाओं पर उनका नियंत्रण है.
योगी आदित्यनाथ बीजेपी के साथ या ख़िलाफ़?
इस इलाके में वो कितना उम्दा प्रदर्शन करते हैं, इस पर बीजेपी के हिंदुत्व के दावे की परीक्षा होने वाली है.
इसका लेकिन एक दूसरा पहलू भी है. वो ये कि हिंदू दक्षिणपंथी ताकतों की ओर से यहां हिंदू युवा वाहिनी भी कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की मंशा जाहिर कर चुकी थी.
इस संगठन पर योगी आदित्यनाथ का नियंत्रण है.
यूपी चुनाव में इसलिए दांव पर है मोदी की साख
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आदित्यनाथ को लगा कि उम्मीदवारों के चयन में उनको नज़रअंदाज़ किया गया है.
वहीं उनके समर्थक चाहते थे कि आदित्यनाथ को बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए.
इसके बदले पार्टी ने दलबदलुओं को टिकट देने में तरजीह दी है.
यहां भी बीजेपी की दास्तां महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के तर्ज पर लिख दी गई.
कुछ हिंदू युवा वाहिनी के लोग अपने उम्मीदवार शिवसेना के चुनाव चिह्न पर उतारे हैं.
दबाव बना रहे हैं योगी आदित्यनाथ?
आदित्यनाथ ने ख़ुद को इन विद्रोहियों से किनारा कर लिया है लेकिन अब कुछ लोग इस लड़ाई में मौजूद हैं.
उनका कहना है कि उन्होंने इन विद्रोहियों को बाहर निकाल दिया है और वो बीजेपी के लिए मैदान में हैं.
उन्हें ज़मीनी स्तर पर पर्याप्त समर्थन हासिल है. इसलिए बीजेपी को इस दौर में लाभ होने की उम्मीद लगती है.
हालांकि क्या होगा यह कहना अभी मुश्किल है.
आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कब्रिस्तान और श्मशान वाले बयान को पकड़ लिया.
उन्होंने कहा, "समाजवादी पार्टी सत्ता में लौटती है तो हर कहीं सिर्फ़ कब्रिस्तान होंगे और मुसलमानों को उनके त्यौहारों के मौके पर डीजे बजाने की अनुमति होगी लेकिन हिंदू दुर्गा पूजा में गाना तक नहीं बजा पाएंगे."
वो हमेशा राम मंदिर का मुद्दा उठाते रहते हैं.
मु ख़्तार अंसारी और उनका परिवार
बाहुबली मुख्तार अंसारी चुनाव प्रचार तो नहीं कर सके लेकिन वो मऊ से उम्मीदवार हैं और उनकी स्थिति मज़बूत बताई जा रही है.
इस इलाके में उनकी रॉबिनहुड वाली इमेज है.
वो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच हुए मतभेदों की एक वजह भी रहे हैं.
समाजवादी पार्टी ने उन्हें उस सीट से टिकट देने से मना कर दिया था. जहां से वो पिछली बार जीते थे.
इसके बाद उन्हें तुरंत बसपा ने अपना टिकट देने का फ़ैसला ले लिया. उनके अलावा उनके परिवार के दो और सदस्य है जो चुनावी मैदान में हैं.
मुख्तार अंसारी और उनके बेटे अब्बास अंसारी के क्षेत्र में इसी दौर में मतदान होने वाले हैं. अब्बास अंसारी घोसी विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार हैं.
वहीं उनके भाई सिबग़ातुल्लाह अंसारी मोहम्मदाबाद से उम्मीदवार हैं और उनके क्षेत्र में सातवें चरण में आठमार्च को चुनाव होने वाला है.
अंसारी का दावा है कि उनकी पार्टी क़ौमी एकता दल हिंदू-मुसलमान सदभाव के लिए काम करती है और वो आदित्यनाथ की तरह असंयमित भाषा का इस्तेमाल नहीं करते हैं.
हालांकि उनकी छवि इस तरह की है जिसकी बदौलत बीजेपी ध्रुवीकरण की राजनीति कर सकती है.
अगर बीजेपी छठे चरण में बेहतर करती है तो इसका श्रेय सिर्फ़ ध्रुवीकरण की राजनीति को नहीं दिया जाना चाहिए.
इसकी एक वजह यह भी है कि मतदाताओं को अब धीरे-धीरे लग रहा है कि बीजेपी को वोट देने से सिर्फ़ वोट बर्बाद नहीं होंगे.
सोशल इंजीनियरिंग
जिस तरह की सोशल इंजीनियरिंग की कोशिश बिहार में की गई थी लेकिन हो नहीं पाई थी वैसी कुछ हद तक पूर्वांचल में होती दिखती है.
इस क्षेत्र में एक जाति के दलितों को छोड़कर और गैर-यादवों के वोट समाजवादी पार्टी और बसपा से अलग विकल्पों पर विचार कर रहे हैं.
यह रुझान जितना बढ़ेगा उतना ही बीजेपी को फ़ायदा होगा.
हालांकि यह बात भी सही है कि हर सीट पर यहां की तस्वीर अलग-अलग दिखती है. इस हिसाब से यह एक पेचीदा चुनाव होने जा रहा है.
लहर जैसी कोई बात नहीं है लेकिन जोड़-तोड़ है. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अभी भी कायम है और नोटबंदी ने बीजेपी को उखाड़ नहीं फेंका है जैसा कुछ लोग अनुमान लगा रहे थे.
छठे चरण में मुख्तार अंसारी की मौजूदगी इस बात को निश्चित करती है कि उत्तर प्रदेश के इस हिस्से में बसपा को सपा से ज्यादा मुसलमानों के वोट मिलेंगे.
मायावती मुख्तार अंसारी को पहले ही समाजसेवी कह चुकी है. मऊ में हुए मायावती के चुनावी रैली में दलित वोटरों के अलावा मुसलमानों की भी बड़ी तादाद थी जो कि मुख्तार अंसारी की वजह से थी.
यूपी चुनाव से कहाँ ग़ायब हैं स्मृति इरानी?
आज़मगढ़ में भी इस चरण में चुनाव होने वाले हैं. यह मुलायम सिंह यादव का लोकसभा क्षेत्र है.
2012 के चुनाव में यहां के दस में से नौ सीटें सपा के पास गई थी लेकिन इस चुनाव में मामला इतना आसान नहीं लग रहा.
लगभग हर सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है. अखिलेश ने यहां की सभाओं में अपने पिता के नाम का भी भरपूर इस्तेमाल किया है.
पीढ़ी तो बदल गई है लेकिन क्या राजनीति भी बदल पाएगी?