यूपी की चुनावी लड़ाई में लौट चुकी है BSP! जानिए किसको हो सकता है नुकसान ?
लखनऊ, 23 जनवरी: यूपी में इस बार के विधानसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती जिस तरह से शांत बैठी हुई थीं, उसको लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे। कई राजनीतिक विश्लेषकों ने तो बसपा को पूरी तरह से चुनावी रेस से ही बाहर मान लिया था। लेकिन, बीएसपी ने जब 109 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है तो लगता है कि बीएसपी को चुनावी मैदान से आउट समझने में शायद जल्दीबाजी की जा रही थी। पार्टी ने चुनाव को त्रिकोणीय बनाने के लिए अपना पासा फेंक दिया है।
यूपी की चुनावी लड़ाई में लौट चुकी है बसपा!
बीएसपी ने पहले दो चरण के चुनावों के लिए जिन 109 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है, उनमें 39 मुसलमान हैं। यह आंकड़ा 2017 के विधानसभा चुनावों के लगभग बराबर ही है। पार्टी के एक नेता के मुताबिक, 'पहले चरण में बीएसपी ने 16 मुसलमानों को टिकट दिया है और दूसरे चरण में 23 मुस्लिम उम्मीदवारों को। 2017 के चुनावों में पार्टी ने पहले दौर में 18 और दूसरे में 25 मुस्लिमों को अपनी टिकट पर चुनाव लड़ने का मौका दिया था।' राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से इलाके में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बन गई है। पार्टी के एक सूत्र के मुताबिक, 'एंटी-इंसंबेंसी और किसानों के मुद्दों की वजह से यह बीजेपी के लिए आसान लड़ाई नहीं होगी; और इसलिए सही उम्मीदवारों को उतारने से और बसपा के अपने कोर वोट बैंक की एकजुटता की वजह से पार्टी को नकारना मुश्किल है।'
सटीक उम्मीदवारों को चुनकर बीएसपी ने रोचक बनाया मुकाबला
बसपा के प्रवक्ता धर्मवीर चौधरी कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश मुख्य रूप से पहले दो चरणों में ही कवर हो रहा है, जिसमें तीन समुदायों की बहुतायत है। सबसे ज्यादा 22% दलितों की आबादी है, फिर 20% जाट हैं और करीब 19% मुसलमान हैं। शनिवार को पार्टी ने जिन 51 उम्मीदवारों की घोषणा की है, उनमें 23 मुसलमानों के अलावा 13 ओबीसी, 10 दलित और 5 ऊंची जातियों के प्रत्याशी भी शामिल हैं। लेकिन, ओबीसी में अधिकतर उम्मीदवार जाट हैं; और इसे सपा-रालोद के समीकरण पर चोट माना जा रहा है। क्योंकि पार्टी ने दलितों के साथ ही जाट और मुसलमान चेहरों पर भरोसा जताकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।
एसपी-आरएलडी गठबंधन में कुछ सीटों पर शुरुआती उलझन
एक राजनीतिक विश्लेषक ने बसपा के 109 उम्मीदवारों की लिस्ट पर गौर फरमाने के बाद कहा है कि, 'सपा-रालोद गठबंधन में टिकट बंटवारे को लेकर जिस तरह की आंतरिक कलह देखने को मिल रही है, बसपा ने पश्चिम यूपी में उसमें एक मौका देखा है। क्योंकि, 2017 की तरह भाजपा के पक्ष में लहर जैसा नहीं है।' पश्चिमी यूपी में कुछ सीटों पर रालोद-सपा गठबंधन में सीटों को लेकर स्थानीय स्तर पर बहुत ही उलझन की स्थिति देखी गई है। कुछ सीटों पर तो दोनों दलों ने उम्मीदवार उतार दिए हैं। ऐसे में बीएसपी की रणनीति से पार्टी के नेता उत्साहित नजर आ रहे हैं।
पहले दो चरणों में 39% सीटों पर खुद को मजबूत मानती है बसपा
पश्चिमी यूपी में कई सीटें ऐसी हैं, जहां पर सपा-रालोद गठबंधन और बसपा दोनों के ही उम्मीदवार मुसलमान हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि ऐसी सीटों पर भाजपा को फायदा मिलेगा। क्योंकि, 2017 में ऐसा हुआ भी था। लेकिन, बीएसपी के एक बड़े नेता का मानना है कि 'यह उस सीट पर निर्भर करेगा जहां दोनों दलों ने अल्पसंख्यक समुदाय को टिकट दिया है। बीएसपी ने इस ग्राउंड पर उम्मीदवार चुने हैं, जहां उस प्रत्याशी के समुदाय का वोट पार्टी के मौजूदा आधार दलिट वोटों से मिल जाए। पहले चरण में पार्टी 30 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी और दूसरे चरण में करीब 12 सीटों पर। अगर बीजेपी का वोट बंटता है तो इस फॉर्मूले के आधार पर बीएसपी के पास पहले दोनों चरणों में 39% सीटों पर जीतने की क्षमता है।'
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ओवैसी भी बढ़ा रहे हैं गठबंधन की मुश्किल
बीएसपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-रालोद गठबंधन से ज्यादा बीजेपी को निशाने पर रख रही है तो उसके पीछे उसकी रणनीति साफ है। ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार और दलित वोट बैंक का अबतक उसके पीछे एकजुट रहने की वजह से उसका हौसला बुलंद हो रहा है। ऊपर से मुजफ्फरनगर जैसे संवेदनशील इलाकों में सपा ने मुसलमान प्रत्याशियों से परहेज करके बसपा को एक और आधार दे रखा है, बाकी की कमी असदुद्दीन ओवैसी पूरी कर रहे हैं। उन्होंने सपा पर आरएसएस बैकग्राउंड के प्रत्याशी को टिकट देने का आरोप लगाकर उसकी राह मुश्किल करनी शुरू कर दी है। एआईएमआईएम चीफ का कहना है कि सपा ने अमरोहा की हसनपुर सीट पर मुखिया गुर्जर को उम्मीदवार बनाया है, जिनका बैकग्राउंड आरएसएस से जुड़ा है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा है, 'सपा एक वॉशिंग मशीन है, जिसमें संघी सेक्युलर बन जाते हैं। मरहूम कल्याण सिंह, हिंदू युवा वाहिनी के सुनील, स्वामी प्रसाद मौर्य और अब ये। '