वो चोट जिसने चमका दिया करियर, पंत का वो 'दर्द' जिसने पूरे देश को बना दिया उनका हमदर्द
नई दिल्ली, 5 अप्रैल: ऋषभ पंत ने साल 2017 में इंग्लैंड के खिलाफ टी-20 मुकाबले से भारत के लिए डेब्यू किया था। अपने करियर के शुरुआती दिनों में ऋषभ पंत उतार और चढ़ाव से जूझते रहे। लोगों ने उनके ऊपर महेंद्र सिंह धोनी के उत्तराधिकारी होने का ठप्पा लगा दिया और फिर बाद में पंत को अपनी गलतियों के लिए भी काफी आलोचनाएं भी मिली। ऋषभ पंत ने खराब समय के दौरान भी अपना धैर्य नहीं खोया और कई बार अपनी गलतियों को दोहराने के बावजूद यह खिलाड़ी किसी तरह से आगे बढ़ता हुआ दिखाई दिया और धीरे-धीरे उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम की प्लेइंग इलेवन में अपनी जगह पक्की कर ली।
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ऋषभ पंत का टर्निंग प्वाइंट-
ऋषभ पंत आज इस मुकाम पर है कि वे राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के भविष्य के कप्तान के तौर पर भी देखे जाते हैं। ऋषभ पंत ने dream11 पर जेमिमाह रोड्रिग्ज से बात करते हुए अपने करियर के टर्निंग प्वाइंट के बारे में बताया है। यह वह टर्निंग प्वाइंट है जिसने उनको सभी का पसंदीदा बना दिया और भारतीय टीम की प्लेइंग इलेवन में जगह दी। पंत 2020-21 में हुई बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी को याद करते हैं जिसमें टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को 2-1 से हराने में कामयाबी हासिल की थी।
चोट के बीच चमक गया करियर-
पंत पहले टेस्ट मैच में नहीं खेले थे और भारत में मुकाबला हार गया था। दूसरे टेस्ट मैच में पंत खेले जिसको भारत जीत गया लेकिन तीसरे टेस्ट मैच में चोट लग गई इस बारे में बात करते हुए पंत कहते हैं, "मुझे दूसरे मैच में खेलने का मौका मिला जिसमें दोनों पारियों में 27-30 रन बनाए क्योंकि मैं काफी दबाव में था।। हम तीसरे टेस्ट मैच के लिए गए। हम पर काफी दबाव था क्योंकि उन्होंने हमें 400 के करीब रन दे दिए थे। पहली पारी में मुझे चोट लग गई थी गेंदबाज ने बाउंसर फेंकी और यह सीधी मेरी उंगली पर लगी जिसके चलते मैं पहली पारी में बैटिंग करने में कामयाब नहीं था। दूसरी पारी में विकेट कीपिंग भी नहीं कर पाया और रिद्धिमान साहा भाई को यह काम करना पड़ा।"
इंजेक्शन लगाकर खेली पारी-
पंत आगे कहते हैं, "उसके बाद हम स्कैन के लिए गए और मेरी हड्डी पर कुछ खरोचें पाई गई। हालांकि ये एक बड़ी चोट नहीं थी लेकिन दर्द बहुत होता था। हमने फीजियो से बात की क्योंकि मुझे बल्लेबाजी करनी पड़ी। तो हमने फैसला किया कि मैं दर्द में खेल लूंगा लेकिन इंजेक्शन लूंगा जिससे कुछ राहत मिल सके। सबसे पहले तो निश्चित तौर पर हमने नेट में ट्राई करके देखा। उसके बाद मैंने पेन किलर का इंजेक्शन लिया लेकिन नेट में भी बल्ले को पकड़ने की कोशिश करते हुए कोहनी दर्द कर रही थी। मैं अपने बल्ले को ढंग से पकड़ भी नहीं पा रहा था। और उसके बाद पैटकमिंस मिचेल स्टार्क जोश हेजलवुड जैसे तेज गेंदबाजों का सामना करना था जो कि काफी तेज गति से बॉलिंग करते।"
उस पूरी सीरीज को चोटों के बीच उमड़े जज्बे ने परिभाषित किया-
बाद में दिल्ली कैपिटल के कप्तान ने तीसरे टेस्ट मैच में 97 रनों की पारी खेली थी जिसने भारत का मुकाबला ड्रा कराने में बहुत ज्यादा मदद की। पंत ने उस पारी में पुजारा के साथ एक नाजुक साझेदारी भी पूरी की और उनके आउट होने के बाद हनुमा विहारी व रविचंद्रन अश्विन ने बहुत ही खूबसूरत प्रयास करते हुए भारत को यह मुकाबला ड्रा कराके दिया। इस दौरान विहारी और रविचंद्रन अश्विन की जोड़ी को कई बार चोट लगी। विहारी तो रन के लिए भागने में असमर्थ थे क्योंकि वे पहले से ही चोटिल थे, उसके बावजूद भारत मुकाबले को ड्रॉ कराने में कामयाब रहा।
इंजेक्शन के बाद दर्द की दवा की खानी पड़ी-
पंत कहते हैं, "मैं बस अपने आपको बताने की कोशिश कर रहा था कि हमें यह करना ही है कोई और विकल्प नहीं है। सबसे पहले जीतने की कोई कोशिश नहीं थी। पहला लक्ष्य तो मैच को ड्रा करना ही था क्योंकि यह अंतिम दिन था और हमें 400 रन चाहिए थे। उसके बाद विचार यह था कि मुझे नंबर पांच पर बल्लेबाजी कराई जाए क्योंकि मैं चोटिल था और अगर मैं आउट हो जाता हूं तो बाकी बल्लेबाज टिक सकते हैं। मेरी कोहनी अभी भी दर्द कर रही थी और मुझे दर्द की दवाइयां भी लेनी पड़ी।"
गेंद पर फोकस हुआ तो दर्द भी कम होता गया-
पंत आगे कहते हैं, "लंच से पहले रहाणे आउट हो गए और मुझे तनाव हो गया। मैं अंदर गया, दबाव बढ़ता ही जा रहा था। ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी स्लेजिंग कर रहे थे क्योंकि वह इस मैच में थे और वे उसको जीतना चाहते थे। उसके बाद गेंदबाज ने मेरे दायरे में बॉलिंग की। मिड ऑन ऊपर था और उसने मुझे वही गेंद फेंकी और मैंने उसको मैदान पर बाउंड्री के लिए भेज दिया। कुछ ओवर बाद मैंने एक गेम को छक्के के लिए भेज दिया। अगले कुछ ओवरों में लॉन्ग-ऑन दोबारा लगा दिया गया था और मैं अपना नेचुरल गेम खेल रहा था और मुझे रन मिलते जा रहे थे।
तब पुजारा और मेरे बीच में एक अच्छी साझेदारी बननी शुरू हुई जिसने खेल के रुख को पलटना शुरू किया और हम उस मैच को जीतने की स्थिति में भी आ गए। और धीरे-धीरे मेरा दर्द भी कम होना शुरू हो गया क्योंकि मैं पूरी तरह से हर एक गेंद पर अपना फोकस बना रहा था और दर्द से मेरा ध्यान हटता जा रहा था। तब मैंने 97 रन का स्कोर बनाया। मुझे बुरा लग रहा था कि मैं भारत के लिए मैच जीत सकता था। मुझे इस बात का बुरा नहीं लगा कि मैं मैंने अपने शतक को मिस कर दिया।
यह हमारे लिए एक टर्निंग प्वाइंट सीरीज साबित हुई
पंत आगे कहते हैं, "तब अश्विन आए और विहारी भी आए और जिस तरीके से उन्होंने मैच को बचाया वह काबिले तारीफ है उनके पूरे शरीर पर बाल हिट हुई थी। बिहारी को हैमस्ट्रिंग इंजरी थी वे रन के लिए भाग भी नहीं सकते थे और अब हम जीत के लिए जा भी नहीं सकते थे। ऐसे में हमारा लक्ष्य फिर से मैच को बचाना हो गया और हमने एक टीम के प्रयास के तौर पर ऐसा करने में सफलता हासिल की। यह हमारे लिए एक टर्निंग प्वाइंट सीरीज साबित हुई और मेरे लिए भी यह कैरियर बदलने वाली पारी थी।"
अगला मैच गाबा में हुआ जहां पर ऋषभ पंत ने नाबाद 89 रनों की पारी खेली थी और यह दूसरी इनिंग में आई थी जिसने भारत को ऑस्ट्रेलिया के मजबूत किले को ढहाने में मदद की और टीम इंडिया 2-1 से यह टेस्ट सीरीज जीत गई। यह क्रिकेट इतिहास में सर्वकालिक महानतम टेस्ट सीरीज वापसी और जीत की अद्भुत दास्तान में एक है।