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Mehdi Hassan: झुंझुनूं के गांव लूणा से आती है मेहदी हसन की खुशबू, 8 साल से नहीं लग पा रही यह मूर्ति

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नई दिल्ली। शहंशाह-ए-गजल मेहदी हसन की आज 13 जून 2020 को आठवीं पुण्यतिथि है। वर्ष 2012 में आज ही के दिन मेहदी हसन दुनिया से रुख्सत हुए थे। पाकिस्तान के कराची स्थित आगा खान विश्वविद्यालय के अस्पताल में मेहदी हसन ने अंतिम सांस ली थी। गजल सम्राट मेहदी हसन भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, मगर राजस्थान के झुंझुनूं जिला मुख्यालय से 11 किलोमीटर दूर मलसीसर रोड पर स्थित गांव लूणा की मिट्टी से हमेशा मेहदी हसन की खुशबू आती रहेगी। 18 जुलाई 1927 को मेहदी हसन का जन्म लूणा गांव में ही हुआ था। यहां बचपन बीता और जवानी के दिनों में भारत विभाजन के वक्त परिवार समेत पाकिस्तान चले गए थे।

आइए जानते हैं मेहदी हसन की पुण्यतिथि के मौके पर होने वाले कार्यक्रम और उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।

40 कलाकार होंगे लाइव, हसन साहब के बेटे-पोते भी देंगे प्रस्तुति

40 कलाकार होंगे लाइव, हसन साहब के बेटे-पोते भी देंगे प्रस्तुति

कोरोना महामारी के चलते मेहदी हसन की पुण्यतिथि पर इस बार कोई सार्वजनिक जगह पर महफिल की बजाय सोशल मीडिया के जरिए कार्यक्रम होंगे। भारत, पाकिस्तान, यूएई, अमेरिका, बांग्लादेश के 40 कलाकार फेसबुक पेज गजल प्लेटफॉर्म और यूट्यूब चैनल गुंजनखाना पर शाम को प्रस्तुति देंगे। मेहदी हसन पर पीएचडी करने वाले राजस्थान के भीलवाड़ा के दीपेश विश्नावत की प्रस्तुति शाम छह बजे से होगी। इनके अलावा गजल प्लेटफार्म पर उस्ताद मेहदी हसन के बेटे इमरान मेहदी व खान साब के पोते मोहम्मद मेहदी और उनके भतीजे डॉ. रोशन भारती सहित कुलदीप राव और पीयूष भी प्रस्तुति देंगे।

गांव लूणा में लगवाने चाहते हैं मेहदी हसन की मूर्ति

गांव लूणा में लगवाने चाहते हैं मेहदी हसन की मूर्ति

दुनियाभर में मेहदी हसन की याद में काफी कुछ है, मगर उनके पैतृक गांव झुंझनुं के लूणा में उनकी प्रतिमा नहीं लग पा रही है। आईएएस अखिलेश झा मेहदी हसन के अन्य प्रशंसकों के साथ पिछले आठ साल से इस प्रयास में हैं कि गांव लूणा में मेहदी हसन की मूर्ति लगवाई जाए। इसके लिए वर्ष 2012 में अखिलेश झा ने लखनऊ के कलाकार जमालुद्दीन अंसारी से उनकी मूर्ति तैयार करवा रखी है, जो वर्तमान में अखिलेश झा के दिल्ली स्थित घर पर रखी है। मेहदी हसन जिस अंदाज में बैठकर गलज प्रस्तुत किया करते थे। उसी अंदाज में मूर्ति बनवाई गई है, मगर समस्या यह है कि ग्राम पंचायत स्तर पर इस दिशा में कोई सहयोग नहीं मिल पाया। इसलिए अभी तक मूर्ति नहीं लग पा रही है।

हम जगह देने को तैयार हैं-लूणा सरपंच

हम जगह देने को तैयार हैं-लूणा सरपंच

लूणा के सरपंच महिपाल ढूकिया बताते हैं कि हमे गर्व है कि दुनियाभर में गजल को नई पहचान दिलाने वाले मेहदी हसन हमारे गांव में पैदा हुए। करीब आठ साल पहले दिल्ली से आईएएस अखिलेश झा और उनकी टीम गांव में आई थी। वे यहां मेहदी हसन की मूर्ति लगवाने चाहते थे। उसके बाद मूर्ति क्यों नहीं लग पाई। इसकी वजह पता नहीं। अगर उन्हें गांव में जमीन या हमारा अन्य किसी भी तरह का सहयोग चाहिए तो हम देने को तैयार हैं। गांव लूणा में सरकारी स्कूल, मस्जिद या कब्रिस्तान के आस-पास की सरकारी जगह भी मूर्ति के लिए आवंटित कर सकते हैं। गांव में जिस जगह मेहदी हसन पैदा हुए थे। उस जगह निर्माण कार्य हो चुका है। उसके आस-पास मूर्ति लगवाने के लिए जगह उपलब्ध करवाने को तैयार हैं।

 कौन हैं आईएएस अखिलेश झा

कौन हैं आईएएस अखिलेश झा

यूं तो दुनियाभर में मेहदी हसन की गायकी के लाखों दीवाने हैं। भारत में उनके सबसे बड़े दीवानों में विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय नई दिल्ली में कार्यरत सीनियर आईएएस अखिलेश झा भी शामिल हैं। मूलरूप से बिहार के मधुबनी के गांव राजनगर के रहने वाले अखिलेश झा महज 13 साल की उम्र में ही मेहदी हसन साहब की गजलों के दीवाने हो गए थे और वो दीवानगी आज भी बरकरार है।

 अखिलेश झा ने लिखी 'मेरे मेहदी हसन'

अखिलेश झा ने लिखी 'मेरे मेहदी हसन'

हुआ यूं था कि अखिलेश झा अपने घर पर रेडियो सुन रहे थे तब गलती से पाकिस्तान का रेडियो ट्यून हो गया। रेडियो पर मेहदी हसन की गजल आ रही थी। उस दिन से लेकर आज तक मेहदी हसन की गजलें अखिलेश झा के दिल को बेहद सुकून दे रही हैं। 2009 में मेहदी हसन की तबीयत नासाज हुई तो उनसे मिलने अखिलेश झा पाकिस्तान गए थे। उसके बाद अखिलेश झा ने मेहदी हसन पर इकलौती किता​ब 'मेरे मेहदी हसन' लिखी। अखिलेश झा के पास मेहदी हसन की सैकड़ों गजलों की रिकॉर्डिंग हैं, जिनका ये लूणा गांव में म्यूजियम भी बनाना चाहते हैं।

मेहदी हसन की जीवनी

मेहदी हसन की जीवनी

1.मेहदी हसन ने संगीत की तालीम अपने पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा उस्ताद इस्माइल खान से ली थी। दोनों ही ध्रुपद गायन में माहिर थे। 2.मेहदी हसन बहुत कम उम्र में संगीत में निपुण हो गए थे। तभी वे बचपन से ही अपने भाई पंडित गुलाम कादिर के साथ परफॉर्म करने लगे थे। 3.उनके गाए गजल जैसे- रंजिश ही सही, बात करनी मुझे मुश्किल, गुलों में रंग भरे आदि बेहद मशहूर हुए। इन्हीं के दम पर वो एक उभरते हुए गजल गायक के तौर पर सामने आएं।

4.मेहदी हसन के टैलेंट को देखते हुए उन्हें जल्द ही मूवीज के भी आफर मिल गए। साल 1962 में उनके गाए गजल जिस ने मेरे दिल को दर्द दिया, बहुत मशहूर हुआ। यहां से उनकी जिंदगी बदल गई। उन्होंने करीब 300 मूवीज में साउंड ट्रैक दिया। साथ ही कई उम्दा नगमें भी पेश किए। ट्रैक्टर मैकेनिक के रूप में भी काम किया
5.अपने देश को छोड़ते ही मेहदी को अपना करियर संवारने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने परिवार का खर्चा चलाने के लिए गाना छोड़कर मैकेनिक के तौर पर काम करना पड़ा। उन्होंने सबसे पहले एक साइकिल की दुकान में नौकरी की थी।
6.इसके बाद उन्होंने कार और ट्रैक्टर मैकेनिक के रूप में भी काम किया। इस बीच उन्हें कई तरह की आर्थिक दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा। मगर उन्होंने हार नहीं मानी इसलिए नौकरी के साथ वे घर पर रियाज भी करते रहे।

 कराची में क्लासिकल गाना गाने का मौका मिला

कराची में क्लासिकल गाना गाने का मौका मिला

7.साल 1952 में उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें रेडियो कराची में क्लासिकल गाना गाने का मौका मिला। उन्होंने अपने दिलकश अंदाज और गायकी से जल्द ही लोगों का दिल जीत लिया था।

8.मेहदी हसन ने दो शादियां की थी। उनके 14 बच्चे थे। मेंहदी ने अपने करियर में बहुत नाम कमाया। उन्हें किंग ऑफ गजल और शहंशाह-ए-गजल के नाम से जाना जाता है।
9.भारत में उनके परिवार ने अच्छी प्रतिष्ठा बना ली थी। मेहदी हसन का करियर भी अच्छा चल रहा था, मगर सन् 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे ने उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदलकर रख दी। उन्हें 20 साल की उम्र में अपने परिवार के साथ भारत छोड़कर पाकिस्तान जाना पड़ा था।
10. लूणा गांव में मेहदी हसन की मां जोया और दादा इमाम की मजार बनी हुई है। पाकिस्तान जाने के बाद वर्ष 1987 में अपने पैतृक गांव लूणा राजकीय मेहमान बनकर आए थे। तब पूरे गांव में चर्चा हो गई थी कि 'मेहदियो आयग्यो...मेहदिया आयग्यो'
11. गांव लूणा के नारायण सिंह शेखावत, अर्जुन जांगिड़, श्योकरण जांगिड़, मुराद खां और हनुमान शर्मा मेहदी हसन के जिगरी दोस्त थे। इनमें से वर्तमान में सिर्फ नारायण सिंह शेखावत ही जिंदा हैं।

मेहदी हसन को ठुमरी से मिली पहचान

मेहदी हसन को ठुमरी से मिली पहचान

पूरी दुनिया से मेहदी हसन पर एकमात्र पीएचडी करने वाले
दीपेश कुमार विश्नावत के अनुसार एक गायक के तौर पर मेहदी हसन को पहली बार 1957 में रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक पहचान मिली। उसके बाद मेहदी हसन ने मुड़कर नहीं देखा। फिर तो फिल्मी गीतों और गजलों की दुनिया में वो छा गए।

-वर्ष 1957 से 1999 तक सक्रिय रहे मेहदी हसन ने गले के कैंसर के बाद गाना लगभग छोड़ दिया था। फेफड़ों के संक्रमण से उनकी मौत हुई। -उनकी अंतिम रिकॉर्डिंग वर्ष 2010 में सरहदें नाम से आई, जिसमें फऱहत शहज़ाद की लिखी "तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है" की रिकार्डिंग उन्होंने 2009 में पाकिस्तान में की और उस ट्रेक को सुनकर 2010 में लता मंगेशकर ने अपनी रिकार्डिंग मुंबई में की। इस तरह यह युगल अलबम तैयार हुआ।

 मेहदी हसन को सम्मान और पुरस्कार

मेहदी हसन को सम्मान और पुरस्कार

मेहदी हसन को गायकी के लिए दुनिया भर में कई सम्मान मिले। हजारों गज़़लें उन्होंने गाईं, जिनके हजारों अलबम दुनिया के अलग-अलग देशों में जारी हुए। पिछले 40 साल से भी अधिक समय से गूंजती शहंशाह-ए-गज़़ल की आवाज की विरासत अब बची हुई है। कई मंचों पर सम्मान व पुरस्कार भी मिले। इन्हें किंग ऑफ गजल और शहंशाह-ए-गजल के नाम भी जाना जाता है।

 मेहदी हसन की खास गजलें

मेहदी हसन की खास गजलें

1. रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ...
2. 'गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले' 3. अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें...
4. मुहब्बत करने वाले कम न होंगे, तेरी महफिल में लेकिन हम न होंगे... 5. दुनिया किसी के प्यार में जन्नत से कम नहीं...

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English summary
Mehdi Hassan mehdi hassan biography in Hindi he was Born in Luna village of Jhunjhunu
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