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पंजाब से संकेत, नेपथ्य में जा रही कांग्रेस की पुरानी पीढ़ी

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नई दिल्ली, 23 जुलाई। 79 साल के कैप्टन अमरिंदर सिंह, 74 साल के कमल नाथ और 70 साल के अशोक गहलोत को जब कांग्रेस पार्टी ने 2017 और 2018 में पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के रूप में चुना तो इसे पार्टी आला कमान की ओर से एक संकेत माना गया कि उसका विश्वास अभी भी नई पीढ़ी की जगह पुरानी पीढ़ी के नेताओं में हैं.

पंजाब में राजस्थान और मध्य प्रदेश से तस्वीर थोड़ी अलग थी. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट के रूप में अगली पीढ़ी के नेता विकल्प के रूप में मौजूद थे. पंजाब में कैप्टन का कोई विकल्प नहीं था. इसके अलावा वो बड़ी संख्या में विधायकों का समर्थन दिखा कर अपने प्रतिद्वंदी प्रताप सिंह बाजवा के खेमे के मुकाबले में अपने वर्चस्व का प्रदर्शन कर चुके थे.

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नतीजतन राज्य में पार्टी की पूरी बागडोर उनके हाथ में सौंप दी गई. उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया और उनके ही विश्वासपात्र सुनील जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष. लेकिन अब सिद्धू को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर पार्टी आला कमान ने कैप्टन को बदलते हालात को स्वीकार कर लेने का संकेत दिया है.

प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद सिद्धू ने 21 जुलाई को कुछ वैसा ही शक्ति-प्रदर्शन किया जैसा कैप्टन ने 2017 में किया था. उनके बुलावे पर कैप्टन के मंत्रिमंडल के चार मंत्रियों सहित कई विधायक अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में माथा टेकने पहुंचे. सिद्धू के खेमे का दावा था कि कुल 62 विधायक वहां जमा हुए थे. इन दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पाई है, लेकिन बड़ी संख्या में विधायक वहां मौजूद थे.

कैसे आगे आए सिद्धू

साफ है कि सिद्धू कैप्टन को चुनौती देने की स्थिति में हैं लेकिन आखिर यह हुआ कैसे? 12 साल बीजेपी में रह कर सिर्फ चार साल पहले कांग्रेस से जुड़ने वाले सिद्धू पंजाब कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को चुनौती देने की स्थिति में आखिर पहुंचे कैसे. जानकार इसके पीछे दो मुख्य कारण बताते हैं.

पहला कारण सीधे पंजाब से जुड़ा है. अक्टूबर 2015 में पंजाब के कई हिस्सों में सिखों की पवित्र किताब गुरु ग्रन्थ साहिब की प्रतियों के फटे हुए पन्ने मिलने लगे, जिसे पूरे राज्य में काफी आक्रोश फैल गया. 14 अक्टूबर को फरीदकोट के बरगारि गांव में विरोध प्रदर्शनों में पुलिस की गोली से दो लोगों की जान चली गई. तत्कालीन अकाली सरकार को भी इस आक्रोश का खामियाजा उठाना पड़ा और 2017 के चुनाव में वो सत्ता से बाहर हो गई.

कैप्टन ने मुख्यमंत्री बनने के बाद पुलिस का एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित किया जिसने अपनी रिपोर्ट 2021 में पेश की. नौ अप्रैल 2021 को पंजाब और हरियाणा के हाई कोर्ट ने इस एसआईटी के तरीकों पर ऐतराज जाहिर करते हुए इस रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया. यही कैप्टन के भविष्य लिए एक नया मोड़ था.

हाई कोर्ट की फटकार के बाद पंजाब कांग्रेस में उथल पुथल मच गई. बातें होनी लगी कि इतने भावनात्मक मुद्दे पर अदालत से फटकार मिलना राज्य सरकार और पार्टी के लिए शर्मिंदगी की बात है. सिद्धू ने प्रदेश में पार्टी के अंदर पनप रहे इस असंतोष को सार्वजनिक तौर पर आवाज दी और मुख्यमंत्री को खुलेआम इस असफलता के लिए जिम्मेदार ठहराया.

सिद्धू ने कई महीनों तक कैप्टन पर खुल कर हमला किया, यहां तक कि उन पर बादल परिवार के साथ मिलीभगत के आरोप भी लगाए. इसी रणनीति की मदद से सिद्धू कैप्टन के खिलाफ अपने आप में शक्ति का एक केंद्र बन गए.

आला कमान के उद्देश्य

कांग्रेस पार्टी पिछले कई सालों से राष्ट्रीय स्तर पर दो धड़ों में बंटी हुई है - पुरानी पीढ़ी जिसके सदस्य सोनिया गांधी की अध्यक्षता में पार्टी में और पार्टी की सरकारों में वरिष्ठतम पदों पर रहे और नई पीढ़ी जिसके सदस्य अब राहुल गांधी के नेतृत्व में वही दर्जा हासिल करना चाहते हैं जो पुरानी पीढ़ी के नेताओं का था. नई पीढ़ी के इन सदस्यों से बात करने पर पार्टी नेतृत्व की मौजूदा सोंच के कुछ संकेत मिलते हैं.

नाम ना जाहिर करने की शर्त पर राहुल गांधी की टीम के एक सदस्य ने डीडब्ल्यू को बताया कि पार्टी में अब आक्रामक तेवरों वाले नेताओं को पसंद किया जाता है. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों में नियुक्त किए गए प्रदेश अध्यक्षों को देखें तो उन सब में आक्रामकता का यह गुण मिलेगा. इस क्रम में उन्होंने सिद्धू से पहले महाराष्ट्र और तेलंगाना में प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किए गए नाना पटोले और रेवंथ रेड्डी का नाम लिया.

सिद्धू की ही तरह ये दोनों भी पुराने कांग्रेसी नहीं हैं. पटोले कई बार कांग्रेस छोड़ कर जा चुके हैं. 2018 में कांग्रेस में फिर से शामिल होने से पहले वो बीजेपी सांसद थे. रेवंथ रेड्डी भी 10 सालों तक टीडीपी में रहने के बाद 2017 में कांग्रेस में शामिल हुए थे. कांग्रेस सूत्र ने बताया कि पार्टी आला कमान को इस बात से कोई तकलीफ नहीं है कि जिससे जिम्मेदारी सौंपी जा रही है वो पुराना कांग्रेसी है या हाल में कोई दूसरी पार्टी छोड़ कर आया है. महत्वपूर्ण यह है कि वो आक्रामक हो और कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने में विश्वास रखता हो.

हाल ही में खुद राहुल गांधी का ही एक वीडियो संदेश सामने आया था जिसमें उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी को निडर लोगों की जरूरत और ऐसे कई लोग जो पार्टी से बाहर हैं उन्हें पार्टी में लाने की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी के अंदर कई लोग हैं जो डरते हैं और ऐसे लोगों को पार्टी से निकाल देना चाहिए.

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राहुल गांधी से नजदीकी

हालांकि गुणों के अलावा एक और कारण है जिसकी वजह से सिद्धू, पटोले और रेड्डी जैसे नेता पार्टी में उभर कर आए हैं और वो है राहुल गांधी से नजदीकी. कांग्रेस सूत्र ने भी बताया कि इन सभी नेताओं का "राहुल गांधी से सीधा संपर्क है और उन्हें इनकी शैली पसंद है." सिद्धू के भी सभी प्रयास तभी रंग लाए जब वो दिल्ली आए और उनकी राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाकात हुई. संभव है कि इसके बाद भी कैप्टन को मनाना मुश्किल रहा होगा क्योंकि इस बैठक के बाद कैप्टन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिले और तब जा कर सिद्धू की नियुक्ती की आधिकारिक घोषणा हुई.

राहुल गांधी से सीधा संपर्क रखने वाले नेताओं का पार्टी में आगे बढ़ना भी इसी बात की तरफ इशारा करता है कि पार्टी के अंदर पुरानी पीढ़ी अब नेपथ्य में जा रही है और नई पीढ़ी आगे आ रही है. इन दोनों पीढ़ियों के टकराव का नतीजा अभी तक अच्छा नहीं रहा है. मध्य प्रदेश में सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में चले जाने से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ही गिर गई और पूरा संगठन हिल गया.

राजस्थान में भी व्यापक रूप से पायलट खेमे की तरफ से बगावत का एक दौर हो चुका है. इसके अलावा गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे बड़े राज्यों में भी पार्टी संगठन में नेतृत्व को लेकर काफी असंतोष है. जुलाई 2019 में पार्टी अध्यक्ष के पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से एक तरह से पूरी पार्टी ही पशोपेश में है.

ऐसे में राहुल गांधी से नजदीकी नेताओं को पार्टी में आगे बढ़ाया जाना महत्वपूर्ण है. देखना यह होगा कि यह रणनीति चुनावों की कसौटी पर खरी उतरती है या नहीं. शुरुआत होगी 2022 में होने वाले पंजाब विधान सभा चुनावों से.

Source: DW

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