'गोविंदा' करवाएंगे देश के सबसे अमीर निगम पर कब्जा ? बीजेपी-शिंदे के इस कदम से फंस गए उद्धव!
मुंबई, 21 अगस्त: महाराष्ट्र में खासकर मुंबई और ठाणे जैसे महानगरों में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर दही हांडी के कार्यक्रमों की बहुत ही ज्यादा प्रधानता है। यह जाति और कई बार धर्मों से भी ऊपर उठकर ऐसा उत्सव बन जाता है, जिससे अपना नाम जोड़ने के लिए राजनीतिक पार्टियां और नेता लालायित रहते हैं। क्योंकि, गोविंदाओं की टोली के बीच की लोकप्रियता चुनावों में बहुत बड़े समर्थन की गारंटी बन जाती है और वह भी बिना ज्यादा मेहनत और पैसे खर्च किए हुए। अभी तक इस कोर वोट बैंक पर शिवसेना का बोलबाला रहा है। लेकिन, अब शिवसेना दो गुटों में बंट ही चुकी है, ऊपर से एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना और बीजेपी सरकार ने उनके लिए ऐसे लोकलुभाव घोषणाएं की हैं, जिससे ठाकरे गुट का जनाधार खिसकने का डर पैदा हो गया है। सबसे बड़ा खतरा, उसकी राजनीति के आधार यानी बीएमसी पर है, जिसके चुनाव आने वाले हैं।
'गोविंदा' करवाएंगे देश के सबसे अमीर निगम पर कब्जा ?
महाराष्ट्र में लोकप्रिय दही हांडी उत्सव को एडवेंचर स्पोर्ट के तौर पर मान्यता देने की मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की जहां एक खास वर्ग की ओर से खूब आलोचना हो रही है। लेकिन, प्रदेश की राजनीति को जमीनी स्तर पर समझने वाले लोगों को लगता है कि शिंदे-बीजेपी सरकार के इस कदम से बीएमसी चुनाव में उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना के जनाधार में सेंध लग सकती है। घोषणा के मुताबिक दही हांडी को खेल का दर्जा मिलने की वजह से इसमें हिस्सा लेने वाले 'गोविंदा' अब स्पोर्ट कोटे से सरकारी नौकरियों में कोटे के लिए योग्य हो जाएंगे। इस कदम का जहां कुछ ऐक्टिविस्ट और राजनीतिक चिंतक खिल्ली उड़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन विरोधी राजनीतिक दलों को जैसे सांप सूंघ चुका है। वह तत्काल कुछ प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं।
बीजेपी-शिंदे के इस कदम से फंस गए उद्धव!
सबसे प्रमुख विपक्षी दल यानी शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट तो इस फैसले से अजीब दुविधा में फंस चुका है। तथ्य यह है कि गोविंदाओं की टोली मुख्य तौर पर लोअर-मिडिल क्लास मराठी बोलने वालों लोगों में से आती है, जो कि परंपरागत तौर पर शिवसेना का जनाधार रहे हैं। सीएम शिंदे शिवसेना में जमीनी स्तर की राजनीति करके मुंबई से सटे ठाणे से उठकर जून के आखिर में उद्धव ठाकरे से बगावत करके नई सरकार बनाने तक की हैसियत में पहुंचे हैं। उन्हें समाज में गोविंदाओं के असर का पूरा अंदाजा है और यही वजह है कि उन्होंने अपना दांव चल दिया है। शिंदे-बीजेपी सरकार के इस फैसले से उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना गुट के सामने सबसे बड़ी चुनौती बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव में खड़ी हो गई है, जो देश का सबसे धनाढ्य निगम है और उद्धव की अगुवाई वाले गुट के लिए इसपर कब्जा बरकरार रखना, राजनीतिक रूप से जीवन और मरण का सवाल है। बीएमसी पर वर्षों से शिवसेना का कब्जा है और एक तरह से ऐसा लगता है जैसे कि उसकी राजनीति को इसी से प्राण वायु मिलती है।
'राजनीतिक दलों के लिए संपत्ति की तरह हैं गोविंदा'
यूं तो पूरे महाराष्ट्र में कृष्ण जन्माष्टमी पर्व की पहचान दही हांडी उत्सव है, लेकिन मुंबई और ठाणे जैसे महानगरों में तो यह बहुत बड़ा राजनीतिक दबदबे का भी प्रतीक है। स्थानीय स्तर पर इसपर अपना प्रभाव छोड़ने के लिए राजनेता लालायित रहते हैं। एक राजनीतिक विश्वेषक ने कहा, 'किसी इलाके में अपना प्रभाव बनाने के लिए गोविंदा एक राजनीतिक दल के लिए एक संपत्ति की तरह हैं। किसी राजनेता या पार्टी के लिए इसकी फंडिंग करना बहुत ज्यादा खर्चीला नहीं है। लेकिन, चुनाव के समय यह बहुत काम आते हैं। लंबे वक्त से शिवसेना ने इनके बीच अपनी वफादारी कायम रखी है और इनके जरिए सड़क की राजनीति में अपना प्रभुत्व जमाए रखा है।'
गोविंदाओं पर दबदबे को शिवसेना को मिला है खूब फायदा
राजनीतिक विश्लेष का कहना है कि जैसे ग्रामीण महाराष्ट्र में पार्टियां कोऑपरेटिव चीनी मिलों, क्रेडिट सोसाइटी, बैंकों और शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से अपना प्रभुत्व कायम किए रहती हैं, 'उसी तरह से गोविदाओं की टोलियों और गणेश मंडलों के विशाल नेटवर्क के माध्यम से शिवसेना ने मुंबई और ठाणे में अपना प्रभुत्व कायम किए रखा है। इस नियंत्रण का मतलब इसका अराजक मूल्य भी है और शिवसेना ने इसका भरपूर इस्तेमाल किया है।'
उद्धव गुट की ओर से भी फैसले को मिल रहा समर्थन
लेकिन, अब शिंदे सरकार के फैसले से ठाकरे सेना के जनाधार में सेंध लगने का खतरा पैदा हो गया है। शिवसेना के एक चर्चित एमएलए और उद्धव गुट के नेता ने कहा, 'उन्हें मेडिकल (बीमा) सुरक्षा दी जा रही है और स्पोर्ट कोटा के माध्यम से सरकारी नौकरियां मिलने की संभावनाएं भी पैदा हुई हैं।' उन्होंने कहा कि इसका बीएमसी चुनावों पर असर पड़ेगा। विधानसभा में ठाकरे गुट के सुनील प्रभु ने शिंदे सरकार के फैसले की सराहना की और कहा कि 'लंबे समय से हमारी यह मांग थी कि गोविंदा की टोलियों को मेडिकल सुरक्षा दी जाए और दही हांडी को खेल का दर्जा मिले।'
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बीजेपी के लिए साबित होगा गेमचेंजर!
महाराष्ट्र बीजेपी के एक पूर्व प्रवक्ता ने कहा कि उनकी पार्टी का मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग में विशाल जनाधार था, लेकिन निम्न मध्यम वर्ग में नहीं था। उन्होंने कहा, 'कम आय वाले लोग, जिनके पास अक्सर मुंबई में अपना घर नहीं होता, छोटे-मोटे काम करते हैं और शिक्षा भी सीमित होती है, उन्हें मुख्यतौर पर शिवसेना ने अपने साथ कर रखा था। शिंदे जो कि सेना को अंदर से बाहर तक जानते हैं, उन्होंने पाला बदल लिया है और यह बीजेपी के लिए बहुत बड़ा गेमचेंजर साबित होगा।' उन्होंने कहा कि 'दही हांडी वाली घोषणा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पहली बार बीएमसी चुनाव में बीजेपी बनाम सभी होने वाला है। पार्टी की योजना सेना (उद्धव की अगुवाई वाली) को उखाड़ फेंकने की है।.......इस फैसले के चलते मुंबई में निश्चित तौर पर गोविंदाओं की टोली जो परंपरागत रूप से सेना के साथ थी, वह पाला बदल लेंगे।' (इनपुट-पीटीआई)