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नहीं रहे शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती, नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर आश्रम में ली अंतिम सांस

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नरसिंहपुर , 11 सितंबर: ज्योतिष और द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का 99 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने परमहंसी गंगा आश्रम, झोतेश्वर जिला नरसिंहपुर में आज दोपहर 3.30 बजे अंतिम सांस ली। बताया गया कि वह लंबे समय बीमार चल रहे थे। हाल ही में हरतालिका तीज के दिन स्वामीजी का 99वां जन्मदिन मनाया गया था। उन्होंने देश कई हिस्सों में मंदिर और आश्रमों का निर्माण करवाया था। सनातन धर्म और संस्कृति के विकास में उनका अहम् योगदान रहा है। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन की खबर से उनके अनुयायियों में शोक व्याप्त हैं।

नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर आश्रम में ली अंतिम सांस

नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर आश्रम में ली अंतिम सांस

ज्योतिष और द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का महाप्रयाण हो गया। हिन्दुओं के सबसे बड़े धर्म गुरु माने जाने वाले स्वामी स्वरुपानंद जी का 99 वर्ष की आयु में निधन हुआ। लंबे वक्त से वह बीमार चल रहे थे। उनका कई बड़े अस्पतालों में इलाज चल रहा था। कुछ दिनों से से वह मप्र के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर आश्रम में ही ठहरे थे।

हरतालिका तीज पर मनाया गया 99 वां जन्मोत्सव

हरतालिका तीज पर मनाया गया 99 वां जन्मोत्सव

पिछले महीने जब स्वामी जी का मप्र आगमन हुआ तो वह झोतेश्वर आश्रम पहुंचे थे। जहां हरतालिका तीज पर उनका 99 वां जम्नोत्सव मनाया गया था। इस दौरान उनको शुभकामनाएं देने उनके शिष्यों की भारी भीड़ उमड़ी थी। उस वक्त भी उनकी सेहत ठीक नहीं थी। बताया जाता है कि अभी पिछले दो तीन दिनों से उनके स्वास्थ्य में ज्यादा गिरावट हुई। रविवार की दोपहर उनकी हालत और ज्यादा बिगड़ गई और दोपहर लगभग साढ़े तीन बजे उनकी सांसे थम गई।

9 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर

9 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर

मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में स्वरूपानंद सरस्वती का 2 सितंबर 1924 को जन्म हुआ था। ब्राह्मण परिवार में जन्मे स्वामी जी की बचपन से अपने धर्म के प्रति लगाव था। पिता धनपति उपाध्याय और मां गिरिजादेवी उनकी धार्मिक प्रवत्ति देख अचंभित रहते थे। तभी 9 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया और धार्मिक यात्राओं पर निकल पड़े। काशी पहुंचे तो उनकी मुलाकात स्वामी करपात्री महाराज से हुई। जहां वेद शास्त्रों की उन्होंने शिक्षा ग्रहण की। यह वह दौर था जब जब हिन्दुस्तान में आजादी का सपना देखा जा रहा था।

आजादी से लेकर राम मंदिर की लड़ाई में भूमिका

आजादी से लेकर राम मंदिर की लड़ाई में भूमिका

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी देश की आजादी की लड़ाई में भी शामिल रहे। 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ों आन्दोलन के वक्त उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए। आजादी इस लड़ाई में कई और साधू सन्यासी शामिल हुए थे, लेकिन 19 साल की उम्र में स्वामीजी की क्रांतिकारी सोच, विचारों ने उन्हें क्रांतिकारी साधू बना दिया। बताया जाता है कि आजादी की लड़ाई में वह लगभग 15 माह जेल में भी रहे। वाराणसी और एमपी की जेल में जब वह सजा काट रहे थे तो वहां भी उन्होंने हिन्दू धर्म के साथ राष्ट्र धर्म की पताका लहराई।

1981 में मिली शंकराचार्य की उपाधि

1981 में मिली शंकराचार्य की उपाधि

करपात्री महाराज ने राम राज्य परिषद् का गठन किया था। 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली। उन्होंने देश कई हिस्सों में मंदिर और आश्रमों का निर्माण करवाया था। सनातन धर्म और संस्कृति के विकास में उनका अहम् योगदान रहा है। राम मंदिर निर्माण की लंबी लड़ाई में भी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी का अहम् योगदान रहा है। कुछ सालों पहले साईं पूजा को लेकर भी विवाद गहराया था, जिसमें स्वामीजी ने साईं पूजा पद्धति को हिन्दू धर्म के खिलाफ बताया था।


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English summary
Dwarka sharda peeth Shankaracharya swami swaroopanand saraswati passed away in narsinghpur district
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