'एडसवाला' बने अनुपम बोहरे, मुहीम रंग लाई, मरीज तो बढ़े, लेकिन मौतें 60 फीसदी कम हो गई
सागर में एड्सवाला कहलाने वाले अनुपम बोहरे की मुहीम और मेहतन रंग लाई। बीते पांच सालों में एचआईवी के पॉजीटिव केस तो बने,लेकिन संक्रमितों की संख्या घटकर आधी से भी कम हो गईं।
'भोलाराम' एक ऐसी शॉर्ट फिल्म है, जिसे सागर संभाग के रेड लाइट एरिया और एचआईवी पॉजीटिव मरीजों के लिए संवेदनशील एरिया में दिखाई जाती है। यह फिल्म लोगों को एड्स और एचआईवी जैसी जानलेवा बीमारियों से बचाव को लेकर लोगों को जागरुक करती है। सबसे अहम बात यह फिल्म स्थानीय भाषा में तैयार की गई है और फिल्म के मुख्य पात्र भोला का रोल सागर के बीएमसी के एआरटी सेंटर के परामर्शदाता अनुपम बोहरे ने निभाया है। ठेट देहाती अंदाज में उन्होंने बड़े ही सहज-सरल अंदाज में मजाक-मजाक में लोगों को जागरुक करने भूमिका अदा की है।
HIV/AIDS के प्रति समाज को जागरुक करने के लिए शासन कई तरह के प्रोग्राम और प्रोजेक्ट चला रही है। यहां जांच, इलाज के साथ-साथ परामर्श भी दिया जाता है। लेकिन मप्र के सागर में बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के एआरटी में पदस्थ वरिष्ठ परामर्शदाता अनुपम बोहरे अपनी तरह से अलग तरीके से ही प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने भोलाराम टाइटल से एक फिल्म बनाई थी। इसमें भोलाराम नाम का मुख्य किरदार भी अनुपम ने ही निभाया है। इसमें भोलाराम अपने इलाके में एचआईवी और एड्स मरीजों को बहुत ही रोचक ओर सरल तरीके से लोगों को मैसेज देकर जागरुक करते नजर आते हैंं। अनुपम ने बहुत ही भावपूर्ण तरीके से भोला के किरदार को निभाया था। उनकी फिल्म जगह-जगह दिखाई जाती है, जो लोगों को मजाक-मजाक में जानलेवा बीमारी से बचाव के लिए मैसेज देती है।
कोरोना काल में घर-घर जाकर दवाएं उपलब्ध कराईं
समाज को एचआईवी से बचाव के प्रति जागरुक करने के लिए वरिष्ठ परामर्शदाता अनुपम बोहरे जुनून की हद तक जाकर मेहनत करते हैं। कोरोना काल में जब पूरा जिला, संभाग, प्रदेश और देश बंद था, उस दौरान अनुपम बोहरे ने एआरटी में दर्ज एड्स पॉजीटिव मरीजों को उनके घर-घर जाकर दवा पहुंचाई थी। वे अपने खर्चे पर मोटर साइकल से दवाएं लेकर मरीजों के घर पहुंचे थे। किसी भी मरीज को उन्होंने कोरोना काल में दवाओं का टोटा नहीं होने दिया।
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मौतों
की
संख्या
में
साल-दर-साल
कमी
आई
है
एआरटी
सेंटर
के
आंकड़े
जहां
एचआईवी
पॉजीटिव
मरीजों
की
संख्या
साल-दर-साल
बढ़ने
को
लेकर
चिंतित
करते
हैं
तो
वहीं
लगातार
संक्रमितों
की
मौतों
में
आई
गिरावट
राहत
देती
है।
इसके
लिए
एआरटी
सेंटर
के
अनुपम
बोहरे,
उनकी
टीम,
शहर
सहित
जिले
के
संवेदनशील
इलाकों
में
शासन
और
एनजीओ
द्वारा
की
जा
रही
मेहनत
का
सकारात्मक
असर
दिख
रहा
है।
बता
दें
कि
जहां
साल
2016
में
149
मरीज
दर्ज
हुए
थे
तो
इनमें
से
66
मरीजों
की
मौत
हो
गई
थी।
इसके
विपरीत
साल
2022
में
214
मरीज
सामने
आए,
बावजूद
इसके
मुकाबले
केवल
19
एड्स
मरीजों
की
मौतें
दर्ज
हुई
हैं।
आंकड़े
बताते
हैं
कि
जिस
गति
से
मरीज
बढ़ते
जा
रहे
हैं,
उसके
मुकाबले
मौतों
की
संख्या
साल-दर-साल
घटती
जा
रही
है।