Ruma Devi Barmer : बाल विवाह का दंश झेलने वालीं रूमा देवी की मुफलिसी से मिसाल बनने तक की पूरी कहानी
बाड़मेर। राजस्थान में फर्श से अर्श सफर तय करने के मामले में अगर महिला का जिक्र करना हो तो जेहन में सबसे पहला नाम रूमा देवी का आता है। राजस्थान के सरहदी जिले बाड़मेर से ताल्लुक रखने वालीं रूमा देवी कभी बेइंताह मुफलिसी में जीती थीं। पाई-पाई को मोहताज थीं। इन्हें बाल विवाह तक का दंश झेलना पड़ा, मगर आज ये कई देशों में भारत का मान बढ़ा चुकी हैं।
रूमा देवी का साक्षात्मकार
आज रूमा देवी के शादी की सालगिरह है। खुद रूमा देवी ने अपने फेसबुक पेज पर शादी वाली पुरानी तस्वीर शेयर कर यह जानकारी दी है। इस मौके पर वन इंडिया हिंदी से बातचीत में रूमा देवी ने अपने संघर्ष के दिनों से लेकर 22 हजार महिलाओं को रोजगार मुहैया करवाकर आत्मनिर्भर बनाने का पूरा सफर बयां किया।
झोपड़ी से यूरोप तक का सफर, कभी पाई-पाई को थीं मोहताज, फिर 22 हजार महिलाओं को दी 'नौकरी'
17 की उम्र में हुई रूमा देवी की शादी
बाड़मेर जिले के गांव रावतसर निवासी खेताराम व इमरती देवी के घर नवम्बर 1988 को रूमा देवी ने जन्म लिया। इनके छह बहन और एक भाई पैदा हुआ। बचपन में ही मां को खो देने वाली रूमी देवी आठवीं कक्षा तक ही पढ़ पाई। फिर महज 17 साल की उम्र में 3 फरवरी 2006 को रूमा देवी की बाड़मेर जिले के ही गांव मंगल बेरी के टिकुराम के साथ शादी कर दी गई है। इनके एक बेटा है, जिसका लक्षित है। वह स्कूल में पढ़ रहा है।
कौन हैं रूमा देवी, क्या है इनकी कामयाबी ?
बता दें कि राजस्थान हस्तशिल्प को दुनियाभर में नई पहचान दिलाने का श्रेय रूमा देवी को जाता है। इनके समूह की महिलाएं बाड़मेर, जैसलमेर व बीकानेर जिले में साड़ी, बेडशीट, कुर्ता समेत अन्य कपड़े तैयार करती हैं, जो विदेशों में भी भेजा जा रहा है। इनके समूह द्वारा तैयार किए गए उत्पादों का लंदन, जर्मनी, सिंगापुर और कोलंबो के फैशन वीक्स में भी प्रदर्शन हो चुका है।
रूमा देवी ने कैसे दी 22 हजार महिलाओं को 'नौकरी' ?
साल 1998 में बाड़मेर में ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान (जीवीसीएस) नाम से एनजीओ बना। जीवीसीएस एनजीओ का मकसद राजस्थान के हस्तशिल्प उत्पादों के जरिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना था। वर्ष 2008 में रूमा देवी भी इस संस्थान से जुड़ी और जमकर मेहनत की। हस्तशिल्प उत्पादों के नए-नए डिजाइन तैयार किए। बाजार में मांग बढ़ाई। वर्ष 2010 में इन्हें इस एनजीओ की कमान सौंप दी गई। अध्यक्ष बना दिया गया। एनजीओ का मुख्य कार्यालय बाड़मेर में ही है। एनजीओ के तीनों सरहदी जिलों की करीब 22 हजार महिलाओं को रोजगार उपलब्ध हो रहा है।
क्या काम करता है रूमा देवी का एनजीओ?
ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान के सचिव विक्रम सिंह बताते हैं कि ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान से जुड़ी महिलाओं को कच्चा माल उपलब्ध करवाया जाता है, जिससे वे अपने घरों पर ही रहकर हस्तशिल्प उत्पाद तैयार करती हैं। फिर तैयार माल की मार्केटिंग व उसे बेचने का काम एनजीओ के माध्यम से विदेशों तक में होता है। सभी 22 हजार महिलाओं के कामकाज का सालाना टर्न ओवर करोड़ों में है।
रूमा देवी का परिवार व संघर्ष
बता दें कि किसी जमाने में रूमा देवी की जिंदगी झोपड़ियों में बीता करती थीं। बचपन में इन्हें बैलगाड़ी में बैठकर दस किलोमीटर दूर से पीने का पानी लेकर आना पड़ता था। फिर अपनी मेहतन के दम पर रूमा देवी ने अलग ही मुकाम हासिल कर लिया है। कई देशों के दौरे कर चुकी हैं। रूमा देवी के पति टिकूराम नशा मुक्ति संस्थान जोधपुर के साथ मिलकर काम करते हैं। रूमा देवी ने बाड़मेर में मकान बना रखे हैं।
रूमा देवी की सफलता
राजस्थान की महिलाओं में रूमा देवी संघर्ष, मेहनत और कामयाबी का दूसरा नाम है। इन्हें भारत में महिलाओं के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'नारी शक्ति पुरस्कार 2018' से सम्मानित किया जा चुका है। 15 व 16 फरवरी 2020 को अमेरिका में आयोजित दो दिवसीय हावर्ड इंडिया कांफ्रेस में रूमा देवी को भी बुलाया गया था। तब इन्हें वहां अपने हस्तशिल्प उत्पाद प्रदर्शित करने के साथ-साथ हावर्ड यूनिवर्सिटी के बच्चों को पढ़ाने का मौका भी मिला। इसके अलावा रूमा देवी 'कौन बनेगा करोड़पति' में अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट पर भी नजर आ चुकी हैं।
KBC में पहुंचीं 8वीं तक शिक्षित रूमा देवी, ये कभी 10 किमी दूर बैलगाड़ी से लाती थीं पीने का पानी