महाशिवरात्रि 2022: यहां घने जंगलों के बीच शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं शिवशक्ति
कोंडागांव,28 फरवरी। छत्तीसगढ़ के केशकाल में एक ऐसा स्थान है,जहां घने जंगलों के बीच भगवान शिव और माता आदिशक्ति एक साथ शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस स्थान पर बियाबान जंगलो से होते हुए पैदल ही पहुंचा जा सकता है। हालांकि इस स्थान से पहले मुख्य मंदिर के तौर पर धनोरा नाम के गांव में भगवान शिव का एक विशाल शिवलिंग भी स्थापित है। यह स्थान धार्मिक महत्त्व के साथ ऐतिहासिक महत्त्व भी रखता है।
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मुराद पूरी करते हैं भगवान शिव
बस्तर संभाग में आपको भगवान शिव के कई मंदिर मिल जायेंगे। लेकिन कोंडागांव जिले के केशकाल में धनोरा गांव के प्रवेश करते है। पूरा माहौल शिवमय नजर आता है। सबसे पहले इस गांव के प्रसिद्ध शिवलिंग के दर्शन होते हैं। स्थानीय लोग इसे गोबराहीन शिव के नाम से जानते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस शिवलिंग को अपनी बाँहों में भर लेता है ,उसकी मुराद भगवान शिव जरूर पूरी करते हैं। लेकिन शिवलिंग इतना विशाल है कि विरले लोग ही शिवलिंग को ऐसा कर पाते हैं।
गोबराहीन विशालकाय शिवलिंग के हो जायेंगे दर्शन
इस शिवलिंग तक पहुंचने के लिए आपको केशकाल नगर से करीब 2 किलोमीटर दूर नेशनल हाइवे पर पड़ने वाले गोबराहीन का प्रवेश द्वार से मुड़ना पड़ेगा। कुछ दूर बाद ही आपको अपने दाएं हाथ की तरफ विशालकाय शिवलिंग के दर्शन हो जायेंगे,यह शिवलिंग खुले आसमान के नीचे विराजमान है। लोग मानते हैं कि भगवान शिव घने जंगलों के बीच कुदरत की गोद ऐसे की रहना पसंद करते है , शायद इसलिए कभी शेड बनाने की कोशिश भी नहीं की गई। शिवलिंग सालों पुराने इस शिवलिंग का दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं। हर साल महाशिवरात्रि के दिन यहां मेला भी आयोजित होता है। माना जाता है कि मार्कण्डेय ऋषि ने इस स्थान पर तपस्या की थी।
घने जंगलों के बीच शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं शिवशक्ति
अधिकांश लोग गोबराहीन में भगवान शिव के विशाल शिवलिंग के दर्शन करके लौट जाते हैं, लेकिन यहां से कुछ दूरी पर ही घने जंगलो के बीच एक अलौकिक नजारा देखने को मिलता है। स्थानीय ग्रामीण जंगल के बीच विराजे एक और देवस्थान को बेहद ख़ास मनाते हैं। जहां जंगल में पैदल चलकर ही जाया जा सकता है, लेकिन सुनसान खतरों से भरे जंगल में कुछ किलोमीटर भीतर तक घुसते ही एक मिट्टी से बनी कुटिया दिखाई देती है।,इसी कुटिया के पास भगवान शिव और माता आदिशक्ति एक साथ शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं।
इसी तरह धनोरा पास में ही टाटामारी में भी भगवान शिव की अर्धनारीश्वर प्रतिमा की पूजा अर्चना की जाती हैं। यहां श्रद्धालु ने अपने दाहिने हाथ को भगवान के दाहिने हाथ को छूकर कराकर मनोकामना करते हैं , ग्राम नारना में भी पांचवी से छठवीं शताब्दी का एक शिवलिंग है,जहां दूध, दही और शक्कर लेकर शिवरात्रि की रात मंदिर पहुंच पूजा अर्चना कर मनोकामना मांगी जाती है।
मुख्य केंद्र गोबराहीन महादेव ही हैं
धनोरा को महाभारत काल से जोड़कर देखा जाता है। धार्मिक और ऐतिहासिक शोधकर्ता इसे कर्ण की राजधानी मानते है। धनोरा में 5 और 6 वीं सदी के प्राचीन मंदिर विष्णु मंदिर के अवशेष मिले हैं। इस स्थान पर खुदाई के दौरान टीलों में कई शिव मंदिरों मिले हैं ,जो खंडित हो चुके हैं। इसलिए लोगों की आस्था का मुख्य केंद्र गोबराहीन महादेव ही हैं। अगर आप कभी रायपुर से जगदलपुर की यात्रा पर निकलें हों तो रास्ते में इस स्थान पर जरूर जाइये।
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