IPL-2022: क्या हार्दिक पांड्या बनेंगे भारत के अगले कपिल देव, ले पायेंगे इस महान खिलाड़ी की जगह
नई दिल्ली। वेस्टइंडीज के पूर्व तेज गेंदबाज इयान बिशप ने कहा है, अगर हार्दिक पांड्य इसी तरह फिट रहे तो किसी भी टीम के लिए खरा सोना हैं। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन का कहना है कि हार्दिक भविष्य के कप्तान हैं। भारत को एक-दो साल बाद जब स्थायी कप्तान की जरूरत होगी तो उसे पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कुछ समय पहले तक हार्दिक पांड्या की तुलना महान कपिल देव से की जाती थी। ये सही है अगल-अलग काल के दो खिलाड़ियों के बीच तुलना नहीं हो सकती।
लेकिन एक जैसे जुझारुपन और समपर्ण की तुलना तो हो ही सकती है। 1983 के विश्वकप में कपिलदेव ने एक कप्तान और खिलाड़ी के रूप के कालजयी प्रदर्शन किया था। 2022 के आइपीएल में भी हार्दिक ने वैसा ही विस्मयकारी खेल दिखाया। लड़ने, जूझने और जीत की भूख दोनों की एक जैसी है।
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कपिल का करिश्मा
बात शुरू करते हैं फाइनल के खेल से। 1983 विश्वकप फाइनल का टर्निंग प्वाइंट था कपिलदेल द्वारा विव रिचर्ड्स का कैच लेना। यह अद्भुत और अविश्वसनीय कैच था। भारत की टीम ने 183 का छोटा स्कोर बनाया था। वेस्टइंडीज की टीम में तब डेसमंड हेंस, गौर्डन ग्रीनिज, विवियन रिचर्ड्स, क्लाइव लॉयड जैसे दिग्गज बल्लेबाज थे। वे दुनिया के किसी भी गेंदबाज की धज्जियां उड़ाने की काबिलियत रखते थे। 50 रन के स्कोर पर हेंस और ग्रीनिज आउट हो चुके थे। क्रीज पर रिचर्ड्स और लॉयड थे। मदन लाल बॉलिंग करने आये। मदन लाल की पहली तीन गेदों पर रिचर्ड्स ने लगातार तीन चौके जड़ दिये। रिचर्ड्स की इस धुआंधार बैटिंग को देख कर लगा कि अब वेस्टइंडीज जल्द ही जीत का लक्ष्य (184) हासिल कर लेगा। फिर मदन लाल ने ऑफ स्टंप पर गुडलेंथ बॉल डाली। गेंद कमर की ऊंचाई तक आयी जिसे रिचर्ड्स ने छक्का मारने के ख्याल से हवाई शॉट खेला। गेंद हवा में थी और डीप मिड विकेट बाउंड्री की तरफ जा रही थी। कपिलदेव मिड ऑन पर खड़े थे। गेंद को हवा में देख कर वे पीछे की तरफ दौड़ने लगे। लेकिन उनकी नजर गेंद पर जमी हुई थी। करीब 22 गज उल्टा दौड़ने के बाद वे गेंद के ठीक नीचे पहुंच गये। उल्टी दिशा में रहते हुए ही उन्होंने यह कैच लपक लिया। इतनी दूर कर पीछे भाग कर यह कैच लेना किसी चमत्कार से कम न था।
कपिल की यह पारी क्रिकेट का आठवां आश्चर्य
कपिल के इस विस्मयकारी कैच को देख कर उनके प्रशंसक मैदान पर दौड़ पड़े। कपिल उनसे बचते हुए अपने साथी खिलाड़ियों की तरफ भागने लगे। इस कैच ने मैच का नक्शा बदल दिया। रिचर्ड्स आउट क्या हुए वेस्टइंडीज की बैटिंग लड़खड़ा गयी। भारतीय गेंदबाजों का मनोबल बढ़ता गया और वेस्टइंडीज की टीम 140 पर ढह गयी। 43 रन से जीत कर भारत ने इतिहास रच दिया। भारत की इस ऐतिहासिक जीत में वैसे तो पूरी टीम का योगदान था। लेकिन अगर कपिलदेव ने जिम्बाब्वे के खिलाफ 175 रनों की नाबाद पारी नहीं खेली होती तो शायद भारत इस मुकाम पर पहुंच ही नहीं पाता। कपिल की यह पारी क्रिकेट का आठवां आश्चर्य है। क्रिकेट इतिहास की यह अमूल्य थाती है। जिम्बाब्वे जैसी कमजोर टीम के खिलाफ भारत 17 रन पर पांच विकेट गंवा संकट में फंसा हुआ था। लेकिन कप्तान कपिलदेव अकेले धुआंधार बैटिंग कर रहे थे। 140 पर भारत के 8 विकेट गिर चुके थे। तब कपिलदेव ने सैयद किरमानी के साथ मिल कर 126 रन जोड़ दिये और भारत का स्कोर 266 रन तक पहुंचा दिया। कपिल ने 138 गेंदों पर 175 नाबाद रन बनाये। किरमानी ने नाबाद 24 रन बनाये थे। इसक बाद भारत ने जिम्बाब्वे को 235 रनों पर आउट कर यह मैच 31 रनों से जीत लिया। गेंदबाजी में भी कपिल ने जौहर दिखाया। उन्होंने 11 ओवर में 32 रन देकर एक विकेट लिया था। भारत की जीत के असल नायक कप्तान कपिलदेव ही थे।
हार्दिक का हल्लाबोल
आइपीएल फाइनल में टॉस जीत कर राजस्थान पहले बैटिंग कर रहा था। राजस्थान के 8 ओवर में एक विकेट पर 59 रन बने थे। क्रीज पर जॉस बटलर और संजू सैमसन थे। दोनों विस्फोटक बल्लेबाज थे और कभी भी रनों की झड़ी लगा सकते थे। तब हार्दिक ने खुद गेंदबाजी करने का फैसला लिया। यह बहुत बड़ा जोखिम था। इसके पहले अब तक के मैच उन्होंने जरूर पांच विकेट लिये थे। लेकिन उनकी गेंदबाजी ऐसी धारदार नहीं थी कि वे फाइनल मैच के इस अहम मुकाम पर बॉलिंग करें। लेकिन हार्दिक को खुद पर भरोसा था। अपने साहसिक स्वभाव की वजह से उन्होंने यह फैसला लिया। एक कप्तान के रूप में सबसे कठिन चुनौती स्वीकार की। अगर बटलर और सैमसन ने उनकी गेंदों पर रन कूट दिये होते वे खलनायक भी बन सकते थे। लेकिन इन तमाम शंकाओं को दरकिनार कर हार्दिक ने नौवें ओवर के लिए गेंद थाम ली। हार्दिक की पहली गेंद पर बटलर ने एक रन लिया। उन्होंने दूसरी गेंद ऑफ स्टंप के बाहर लेंथ बॉल डाली। संजू सैमसन ने पुल शॉट मारने की कोशिश कि लेकिन गेंद हवा में उछल गयी जिसे साईं किशोर ने दौड़ते हुए लपक लिया। मैच का यह टर्निंग प्वाईंट था।
गेंद और बल्ले से कमाल
सैमसन का विकेट लेने के बाद जैसे हार्दिक को जोश की खुराक मिल गयी। वे इतनी अच्छी लाइन पर बॉल डाल रहे थे कि रन बनाना मुश्किल था। ऊपर से उनकी रफ्तार भी अच्छी-खासी थी। वे 140 से 145 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंदबाजी कर रहे थे। नवें ओवर में एक अहम विकेट भी लिया और सिर्फ एक ही रन दिया। तब हार्दिक ने तय किया कि वे पूरे चार ओवर डालेंगे। फैसला सही साबित हुआ। 11वें ओवर में हार्दिक ने बटलर को बांध कर रख दिया और सिर्फ चार रन दिये। 12 वें ओवर में तो पांड्या ने एक तरह से मैच का नतीजा ही तय कर दिया। पूरी प्रतियोगिता में रनों का अंबार लगाने वाले बटलर हार्दिक के सामने बिल्कुल बेबस नजर आये। 12वें ओवर की पहली गेंद। हार्दिक ने रफ्तार के साथ बैक ऑफ लेंथ गेंद डाली जो बटलर के बल्ले का बाहरी किनारा लेते हुए विकटकीपर साहा के दस्ताने में समा गयी। बटलर का विकेट लेकर हार्दिक ने राजस्थान की कमर तोड़ दी। उन्होंने चार ओवरों में 17 रन दे कर 3 विकेट लिये। एक कप्तान के रूप में उन्होंने साथी खिलाड़ियों के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया। एक तेज गेंदबाज के रूप में हार्दिक ने अपनी क्षमता साबित की। जब बैटिंग की बारी आयी तो उन्होंने 30 गेंदों पर 34 रन बना कर गुजरात की जीत में अहम भूमिका अदा की। हार्दिक ने फाइनल में अपने हरफनमौला खेल से आइपीएल का नया इतिहास बनाया। क्या हार्दिक के लड़ने और जीतने की भूख, महान कपिलदेव की तरह नहीं है?