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नेपाल और भारत पास होकर भी इतने दूर क्यों होते जा रहे?

1996 में भारत और नेपाल के बीच हुए ऐतिहासिक महाकाली संधि में नेपाल के वर्तमान पीएम ओली की बड़ी भूमिका मानी जाती है. ओली 1990 के दशक में नेपाल में कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे. वो 2007 तक नेपाल के विदेश मंत्री भी रहे थे.

By सुरेंद्र फुयाल
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नेपाल
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लोकप्रिय चुनावी राजनीति में कोई भी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति देश की जनभावना की उपेक्षा नहीं करता है. जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद भारत ने पिछले साल नवंबर में नया नक्शा जारी किया तो नेपाल के लोगों ने उस नक्शे में कालापानी इलाक़े को देख विरोध जताया.

नेपाल के लोगों ने अपनी सरकार के ख़िलाफ़ भी ग़ुस्सा ज़ाहिर किया. पूरे विवाद में नेपाल की सरकार को सामने आना पड़ा और भारत के नक्शे पर एतराज जताया. तब से ही नेपाल की सरकार पर दबाव था कि वो भी कुछ करे.

जब लिपुलेख में भारत ने चीन तक जाने वाली सड़क का निर्माण किया तो नेपाल ने भी कुछ दिनों बाद नया नक्शा जारी कर दिया और जिन क्षेत्रों पर दावा करता उन सबको अपने मानचित्र में शामिल कर लिया. भारत ने इस पर आपत्ति जताई और दोनों देशों के बीच विवाद अब भी जारी है.

नेपाल के प्रधानमंत्री ओली के बारे में कहा जाता है कि वो विदेशी संबंधों में अपने दो बड़े पड़ोसी भारत और चीन के बीच संतुलन बनाकर रखना चाहते हैं.

ओली कभी भारत समर्थक कहे जाते थे. ऐसा माना जाता है कि नेपाल की राजनीति में उनका रुख़ भारत के पक्ष में कभी हुआ करता था.

1996 में भारत और नेपाल के बीच हुए ऐतिहासिक महाकाली संधि में ओली की बड़ी भूमिका मानी जाती है. ओली 1990 के दशक में नेपाल में कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे. वो 2007 तक नेपाल के विदेश मंत्री भी रहे थे. इस दौरान ओली के भारत से काफ़ी अच्छे ताल्लुकात थे. अब भारत में ओली के बारे में कहा जा रहा है कि वो उनका झुकान चीन की तरफ़ ज़्यादा है. हालांकि नेपाल एक संप्रभु राष्ट्र है और वो अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर स्वतंत्र है.

केपी शर्मा ओली फ़रवरी 2015 में नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे. वो तब से तीन बार भारत आ चुके हैं. वो अपने चुनावी अभियान में चीन के साथ सहयोग बढ़ाने और भारत पर निर्भरता कम करने की बात कह चुके हैं.

नेपाल के नए संविधान पर भारत के असंतोष पर नेपाल की ओली सरकार कहती रही है कि यह उसका आंतरिक मामला है. भारत और नेपाल के बीच 1950 में हुए पीस एंड फ्रेंडशिप संधि को लेकर ओली सख़्त रहे हैं.

उनका कहना है कि संधि नेपाल के हक़ में नहीं है. इस संधि के ख़िलाफ़ ओली नेपाल के चुनावी अभियानों में भी बोल चुके हैं. ओली चाहते हैं कि भारत के साथ यह संधि ख़त्म हो.

प्रचंड की राजनीति

2008 में प्रचंड ने प्रधानमंत्री बनने के बाद उस वक़्त दिल्ली को चौंका दिया था जब वह सबसे पहले दिल्ली का दौरा करने की स्थापित परंपरा को तोड़कर चीन चले गए थे.

नेपाल ने पिछले हफ़्ते अपना आधिकारिक नक्शा जारी किया है जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाक़ों को नेपाल की पश्चिमी सीमा के भीतर दिखाया है.

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली
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भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली

नेपाल के ज़्यादातर लोगों ने इसे सरकार के एक मज़बूत क़दम के तौर पर देखा है. हालांकि, ओली के आलोचक इसे देश में कोविड-19 के ख़राब प्रबंधन के लिए हो रही उनकी आलोचना से ध्यान भटकाने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं.

भारत का मानना है कि ये भूभाग उसके उत्तराखंड राज्य के तहत आते हैं. दूसरी ओर नेपाल का कहना है कि ये उसके सुदूर पश्चिम प्रांत के हिस्सा हैं. नेपाल का कहना है कि 1816 की सुगौली संधि और उसके बाद हुई सभी द्विपक्षीय संधियों में साफ़ तौर पर कहा गया है कि महाकाली (शारदा) के पूर्व में मौजूद इलाक़े नेपाल के अधीन आते हैं.

महाकाली और सुस्ता (नारायणी या गंडक नदी से लगे नवलपारसी) जैसे भारत-नेपाल सीमा विवाद पर विपक्षी नेपाली कांग्रेस और कभी राज परिवार के समर्थक रहे राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता भी एक जैसी भावनाएं ज़ाहिर कर रहे हैं. इससे ज़ाहिर हो रहा है कि इस मसले पर नेपाल की सभी पार्टियां एकमत हैं.

नेपाल नक्शा
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नेपाल नक्शा

सितंबर 2015: भारत-नेपाल सीमा की नाकाबंदी

सितंबर 2015 में ओली के भारत के ख़िलाफ़ रुख़ अख्तियार करने की वजह अघोषित नाकाबंदी भी थी. यह वह वक़्त था जब नेपाल में महज चार महीने पहले एक बड़ा भूकंप आया था.

उस वक़्त भारत ने नेपाल के नया संविधान लागू करने को लेकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की थी. ऐसा इस वजह से था क्योंकि भारत को लग रहा था नेपाल ने नए संविधान में दक्षिणी नेपाल की तराई की पार्टियों की कई मांगों को अनसुना कर दिया था.

इसके बाद तराई के नेताओं और एक्टिविस्ट्स ने पूर्व से पश्चिम तक भारत-नेपाल की सीमा को बंद कर दिया. भारत मज़बूती से इन विरोधी नेताओं के साथ खड़ा रहा था. नेपाल ने आरोप लगाया था कि भारत नेपाल की सीमाओं की नाकाबंदी कर रहा है. हालांकि, भारत लगातार इन आरोपों को ख़ारिज करता रहा था.

ये सीमाई इलाक़े तकरीबन छह महीने तक बंद पड़े रहे थे. इस वजह से नेपाल में पेट्रोल, गैस समेत कई बेहद अहम आपूर्तियां बाधित हुई थीं.

नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के साथ शी जिनपिंग
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नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के साथ शी जिनपिंग

उस वक़्त नेपाल में ओली की अगुवाई वाली बहुपक्षीय सरकार ने भी झुकने से इनकार कर दिया था और भारत के ख़िलाफ़ एक सख़्त रुख़ बनाए रखा. भारत के सामने झुकने के बजाय नेपाल ने पेट्रोलियम समेत दूसरी आपूर्तियों के लिए अपने पड़ोसी मुल्क चीन का सहारा लेना उचित समझा.

कुकिंग गैस और ईंधन की कमी के चलते नेपाल के लोगों को बड़ी मुश्किल हुई थीं. नेपाल ने ऐसे में चीन के साथ एक पूरी तरह से नई ट्रेड और ट्रांजिट डील कर दी.

तराई के एक्टिविस्ट्स के नेपाल सीमा नाकाबंदी आंदोलन को ख़त्म करने के बाद भारत ने नेपाल को होने वाली ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति फिर से शुरू कर दी थी.

भारत और नेपाल की नाराज़गी

वजह चाहे जो भी रही हो, लेकिन 1,800 किमी से भी लंबे भारत-नेपाल बॉर्डर के अहम कारोबारी बिंदुओं पर 2015 में हुई नाकाबंदी ने 1989-90 के उस बुरे दौर की याद दिला दी थी जब भारत ने दोनों देशों की सीमा के 21 में से 19 बिंदुओं को बंद कर दिया था. इस क़दम की वजह से नेपाल के लोगों को भारी आर्थिक दिक्क़तों का सामना करना पड़ा था.

1989-90 की नाकाबंदी इस वजह से हुई थी क्योंकि भारत ने नेपाल के एक अलग ट्रेड एंड ट्रांजिट डील को करने के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया था. भारत इस तरह की केवल एक डील चाहता था.

उस वक़्त भारत नेपाल के तत्कालीन राज परिवार के चीन से एंटी-एयरक्राफ्ट गन ख़रीदने के फ़ैसले से भी ख़फ़ा था.

भारत को नेपाल का भारतीय प्रवासी मज़दूरों के लिए वर्क परमिट का प्रस्ताव भी पसंद नहीं आया था.

दूसरी ओर, नेपाल भारत से जुड़ने वाले दक्षिणी तराई के ज़िलों के हज़ारों लोगों को नागरिकता देने के लिए भी राज़ी नहीं था.

लेकिन, ये सभी मामले तब जाकर शांत हो गए जब नेपाल के किंग बीरेंद्र ने अप्रैल 1990 में पहले जन आंदोलन के सामने झुकते हुए राजनीतिक पार्टियों पर 30 साल पुरानी पाबंदी को हटा लिया था. इसके बाद नई राष्ट्रीय एकता सरकार ने भारत के साथ एक नई डील पर दस्तखत किए थे.

नेपाली सेना
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नेपाली सेना

भारत के पास क्या विकल्प हैं?

तीस साल बाद और नेपाल के तराई को लेकर भारत के साथ हुए तनाव के पाँच साल बाद दोनों देश एक बार फिर से आमने-सामने आ गए हैं.

लिपुलेख विवाद ऐसे वक़्त पर सामने आया है जब हाल के दौर में कई उच्च-स्तरीय दौरों और लेन देन के ज़रिए दिल्ली-काठमांडू गलबहियां करते नज़र आने लगे थे.

लिपुलेख विवाद के बाद नेपाल और भारत दोनों जगहों पर विदेश नीति के जानकारों ने दोनों देशों के नेताओं से तत्काल एक कूटनीतिक संवाद शुरू करने का अनुरोध किया है.

कोविड-19 के चलते भारत ने कूटनीतिक पहल को होल्ड पर डाल दिया था. इन जानकारों का कहना है कि बतौर एक बड़े और शक्तिशाली पड़ोसी के नाते भारत को इस विवाद को ख़त्म करने की दिशा में पहल करनी चाहिए.

दिग्गज कूटनीतिज्ञ हालिया घटनाओं से निराश हैं. नेपाल में भारत के राजदूत रह चुके और अब दिल्ली में रह रहे जानकारों ने एक प्रमुख नेपाली न्यूज़पेपर को दिए अपने इंटरव्यू में कहा है कि इस विवाद को कूटनीतिक संवाद के सिवा किसी और तरीक़े से हल नहीं किया जा सकता है. इन पूर्व राजनयिकों ने उकसावे की किसी भी कार्यवाही से बचने की चेतावनी दी है.

नेपाल में भारत के राजदूत रहे केवी राजन ने नेपाल के कांतीपुर दैनिक के सुरेश न्योपाने से कहा, "रिश्ते इतने पुराने और मज़बूत हैं कि दोनों देशों के बीच ऐसा कोई भी मसला नहीं है जिसे नेपाल और भारत आपसी भरोसे और बातचीत से सुलझा न सकें. लेकिन, दोनों ही पक्षों को ग़ैर-ज़रूरी आम लोगों की राय को द्विपक्षीय बातचीत के रास्ते का रोड़ा नहीं बनने देना चाहिए."

धारचूला से लिपुलेख को जोड़ने वाली सड़क
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धारचूला से लिपुलेख को जोड़ने वाली सड़क

विदेश सचिव स्तर पर पहल शुरू हो

इसके लिए नेपाल भी राजी दिखाई दे रहा है. नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली कह चुके हैं कि नदी सीमा विवाद को सुलझाने के लिए द्विपक्षीय चर्चा शुरू करने के लिए नेपाली पक्ष तैयार है. उन्होंने कांतीपुर दैनिक से कहा, "अगर भारत ने नेपाल के पिछले अनुरोध (नवंबर 2019 के भारत के मैप के तुरंत बाद) पर गौर किया होता तो चीज़ें अब तक एक अच्छे मुकाम पर पहुंच चुकी होतीं."

भारत ने हाल में कहा था कि कोविड-19 से जुड़े लॉकडाउन के ख़त्म होने के बाद सीमाई मसलों को हल करने के लिए कूटनीतिक बातचीत शुरू हो जाएगी.

लेकिन, कुछ नेपाली टिप्पणीकारों का कहना है कि शुरुआत करने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए विदेश सचिव स्तर पर द्विपक्षीय बातचीत के बढ़िया नतीजे होंगे. इनका कहना है कि इस बातचीत से कॉन्फिडेंस बढ़ेगा और आपसी सहमति विकसित होगी.

विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल और भारत के बीच सदियों पुराने रिश्तों से दोनों देशों को फ़ायदा हुआ है.

खुले बॉर्डर पर बिना वीज़ा के आवाजाही करने के अपने नफ़े-नुक़सान हैं. लेकिन, इसमें अच्छी बात यह है कि बड़े स्तर पर आसानी से सीमा पार आवाजाही की इजाज़त से दोनों देशों के तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और प्रवासी मज़दूरों को बड़ा फ़ायदा हुआ है.

नेपाल और उससे लगे भारत के इलाक़े में हर साल आती है बाढ़
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नेपाल और उससे लगे भारत के इलाक़े में हर साल आती है बाढ़

कोविड-19 ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया है. दोनों देशों में प्रवासी मज़दूर अपनी-अपनी जगह पर फंस गए हैं. इसके अलावा मोदी और ओली के बीच हाल में फ़ोन पर हुई बातचीत के बाद कई मज़दूर सीमा के दोनों तरफ़ बनाए गए अस्थायी क्वारंटीन सेंटरों में भी रह रहे हैं.

अधिकारी कारोबार को खोलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन किसी को भी यह नहीं पता कि हालात कब सामान्य हो पाएंगे.

नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने इसी हफ़्ते संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में कहा था, "नेपाल और भारत के बेहतरीन रिश्ते रहे हैं. ये विशिष्ट और अच्छे हैं. हां, कुछ सीमाई मसलों को लेकर मुश्किलें भी हैं, लेकिन इन्हें सुलझाना नामुमकिन नहीं है. हम इन्हें हल करना चाहते हैं और अपने रिश्तों को और भी बेहतर बनाना चाहते हैं."

लेकिन, बड़ा सवाल अब भी कायम है - क्या भारत में मोदी सरकार और नेपाल की ओली सरकार ऐसा करने के लिए तैयार है? अगर ऐसा है तो आख़िर यह राजनयिक बातचीत कब शुरू होगी?

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English summary
Why are Nepal and India passing so far
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