Pentagon: जानिए क्या है पेंटागन, जहां भारत को मिली बेरोकटोक एंट्री का अधिकार, क्या हैं इसके मायने?
अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी के पास वर्जीनिया में अर्लिंग्टन काउंटी के स्थित एक पांच कोना इमारत है, जहां से अमेरिका अपने रक्षा मामलों के हर फैसले करता है।
वॉशिंगटन, अगस्त 17: अमेरिका ने भारत को वो दुर्लभ विशेषाधिकार दिया है, जो वो अपने अत्यंत करीबी सहयोगियों को देता है और अमेरिका के इस फैसले के बाद अब ये साफ हो गया है, कि अमेरिका अब भारत को अपना सबसे करीबी सहयोगियों में से एक मानता है। अमेरिका ने अपने रक्षा के नर्भ सेंटर, यानि पेंटागन में भारत की एंट्री बेरोकटोक कर दी है, यानि, जिस बिल्डिंग में बड़े बड़े अमेरिकी अधिकारी भी नहीं जा सकते हैं, उस बिल्डिंग में भारत की एंट्री बेरोकटोक कर दी है, जो करीबी सहयोगियों को दिया जाने वाला एक दुर्लभ विशेषाधिकार है।
भारत को मिला बड़ा विशेषाधिकार
अमेरिकी वायु सेना के सचिव फ्रैंक केंडल ने भारत के स्वतंत्रता दिवस को स्पेशल बनाने के लिए वाशिंगटन में एक बड़ी घोषणा की है। अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें बोलते हुए फ्रैंक केंडल ने कहा कि, भारत हमारा सबसे करीबी रक्षा भागीदार है, लिहाजा अब भारतीय रक्षा अताशे को पेंटागन में बिना रोकटोक एंट्री मिलेगी। आपको बता दें कि, रक्षा अताशे किसी भी देश की सैन्य विशेषज्ञ टीम को कहा जाता है, जिनका संबंध डिप्लोमेटिक मिशन से होता है और पेंटागन में भारतीय रक्षा अताशे को बेरोकटोक एंट्री देने का ये फैसला काफी दुर्लभ है। पेंटागन में जाना किसी अमेरिकी अधिकारी के लिए भी कितना दुर्लभ होता है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं, कि खुद फ्रैंक केंडल ने कहा कि, उन्हें भी पेंटागन जाने के लिए एस्कॉर्ट किया जाता है, यानि पेंटागन में जाने के लिए उनके साथ ही पेंटागन के सुरक्षा अधिकारी मौजूद होते हैं। लेकिन, अमेरिकी सरकार के इस फैसले के बाद अब भारतीय रक्षा अताशे, बिना एस्कॉर्ट के ही पेंटागन जा सकेंगे और उन्हें कहीं पर भी रोका नहीं जाएगा।
पेंटागन में एंट्री पाना सबसे ज्यादा कठिन
आपको बता दें कि, अमेरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय का जो बिल्डिंग है, उसे पेंटागन कहा जाता है, जिसे वाशिंगटन तक पहुंचने के लिए सबसे कठिन स्थानों में से एक माना जाता है। यहां तक कि अमेरिकी नागरिकों को भी इमारत में प्रवेश करने के लिए उच्च स्तरीय सुरक्षा मंजूरी की आवश्यकता होती है। लेकिन, अब भारत को ये विशेषाधिकार दे दिया गया है। वहीं, आपके लिए जानना जरूरी है, कि अमेरिका ने साल 2016 में भारत को "प्रमुख रक्षा भागीदार" के रूप में नामित किया था। इसके बाद, अमेरिका ने साल 2018 में भारत को "रणनीतिक व्यापार प्राधिकरण टियर 1 स्थिति" तक बढ़ा दिया था, जिसके बाद अब भारत एक रेंज तक अमेरिकी सेना और अमेरिकी वाणिज्य विभाग द्वारा विनियमित सैन्य और डुएल यूज टेक्नोलॉजी को बिना लाइसेंस के ही हासिल कर सकता है। वहीं, फ्रैंक केंडल ने कहा कि, "इस फैसले से यह पता चला है कि, भारत वह देश है, जिसके साथ हम किसी भी अन्य देश की तुलना में सबसे ज्यादा संयुक्त अभ्यास करते हैं और हमारे बीच एक लंबा घनिष्ठ संबंध है और हम क्षेत्रीय शांति के लिए वर्षों से एक दिशा में काम कर रहे हैं।'
क्या है अमेरिका का डिफेंस नर्व पेंटागन?
अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी के पास वर्जीनिया में अर्लिंग्टन काउंटी के स्थित एक पांच कोना इमारत है, जहां से अमेरिका अपने रक्षा मामलों के हर फैसले करता है। अमेरिका की तीनों सेनाएं इसी इमारत से काम करती हैं और सैन्य संबंधित तमाम बड़े फैसले यहीं से लिए जाते हैं। पेंटागन को अमेरिका में साल 1941 से 1943 के बीच बनवाया गया था और इसे बनाने का मकसद युद्ध विभाग के कार्यालयों को मजबूत करना था। उससे पहले अमेरिकी रक्षा विभाग अलग अलग 17 जगहों पर फैला हुआ था। अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने पहले सलाह दी थी, किसी भी हमले से बचने के लिए इस इमारत में एक भी खिड़की ना बनाया जाए, लेकिन इंजीनियरों ने कहा था, कि ऐसा करना सही नहीं होगा। लिहाजा, इंजीनियरों ने इस बिल्डिंग को पांच कोना बनाने का फैसला लिया।
कैसे हुआ था पेंटागन का निर्माण?
जिस वक्त पेंटागन का निर्माण किया गया था, उस वक्त वो क्षेत्र रेत और दलदल से भरा इलाका था, लिहाजा क्षेत्र को समतल करने के लिए और दलदल को खत्म करने के लिए करीब 5.5 मिलियन क्यूबिक गज (4.2 मिलियन क्यूबिक मीटर) गंदगी को यहां पर डाला गया था और फिर इमारत की नींव को मजबूत करने के लिए 41,492 कंक्रीट के ढेर लगाए गए थे। हालांकि, नेशनल कब्रिस्तान का व्यू ब्लॉक ना हो, इसलिए इसकी ऊंचाई सिर्फ 77 फीट ही रखी गई। दिसंबर 1941 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के हमले के बाद अमेरिका का मजबूरन प्रवेश करना पड़ा, उसके बाद इस बल्डिंग का निर्माण कार्य काफी तेजी से शुरू कर दिया गया और 13 हजार से ज्यादा मजदूरों ने दिन-रात काम किया था। उस वक्त पेंटागन का जल्द से जल्द निर्माण करना, अमेरिकी सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गई थी। करीब आठ महीनों की दिन-रात मेहनत के बाद तत्कालीन अमेरिकी युद्ध सचिव हेनरी स्टिमसन ने अपने कार्यालयों को नई बिल्डिंग में ट्रांसफर कर दिया।
1943 में लगा था 83 मिलियन डॉलर
साल 1943 में पेंटागन पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया था और उस जमाने में इसे बनाने में 83 मिलियन डॉलर खर्च हुए थे। पेंटागन का निर्माण 29 एकड़ की जमीन पर हुआ था और ये उस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी कार्यालय भवन था। पेंटागन में पांच एकड़ में सेन्ट्रल कोर्ट का निर्माण हुआ था, जिसमें एक साथ 25 हजार लोग जमीन पर बैठ सकते हैं। हालांकि, द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद इस बात पर फैसला किया जा रहा था, कि पेंटागन को किसी अस्पताल में बदल दिया जाए, लेकिन इसी बीच अमेरिका और रूस के बीच शुरू हुए शीत युद्ध की वजह से ये इरादा छोड़ दिया गया, क्योंकि उस वक्त ऐसा लग रहा था, कि अमेरिका और रूस के बीच युद्ध हो सकता था। हालांकि, पेंटागन के भीतर 28 किलोमीटर के गलियारे हैं, लेकिन इसका निर्माण इस अंदाज में किया गया है, कि बल्डिंग के अंदर एक गलियार से दूसरे गलियारे तक पहुंचने में सिर्फ 7 मिनट का ही वक्त लगता है।
काफी विशालकाय बिल्डिंग है पेंटागन
पेंटागन में एक साथ 25 हजार कर्मचारी काम कर सकते हैं और इसका पार्किंग स्थल 67 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें एक साथ 8700 गाड़ियां रखी जा सकती हैं। पेंटागन के कर्मचारियों के लिए एक शॉपिंग सेंटर वाले विशाल समूह के नीचे बस और टैक्सी टर्मिनल स्थित हैं और इसके कर्मचारी काफी आसानी से मेट्रो तक पहुंच सकते हैं। वहीं, साल 1956 में पेंटागन को हेलीपोर्ट से भी जोड़ दिया गया था। वहीं, साल 2001 में, जब पेंटागन निर्माण के 60 साल पूरे हो रहे थे, उसी साल अमेरिका पर अलकायदा से सबसे भीषण आतंकवादी हमला किया था और उस दौरान एक विमान को पेंटागन से भी टकराया गया था, जिससे इमारत के दक्षिण-पश्चिम की ओर का हिस्सा नष्ट हो गया, और आतंकवादियों सहित 189 लोग मारे गए थे। हालांकि, एक साल के भीतर काफी हद तक क्षति की मरम्मत की गई थी। लेकिन, एक्सपर्ट्स का कहना है, कि अपनी बनावट की वजह से ही पेंटागन को ज्यादा नुकसान नहीं हो पाया, जबकि वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दोनों टॉवर जमींदोज हो गये थे।
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