वुसअतुल्लाह ख़ान का ब्लॉग: इस बार पाकिस्तानी चुनाव शीशे की तरह साफ़ हैं लेकिन...
गाली गलौज तक तो ठीक था लेकिन इस बार पाकिस्तान में आम चुनावों से पहले ही नया फ़ैशन शुरू हो गया है यानी नवाज़ शरीफ़ पर किसी ने लाहौर के एक मदरसे में जूता उछाल दिया, मुस्लिम लीग के भूतपूर्व रक्षामंत्री ख़्वाजा आसिफ़ के चेहरे पर किसी ने जलसे में कालिख़ फेंक दी, भूतपूर्व गृहमंत्री अहसन इक़बाल पर उन्हीं के शहर नारोवाल में किसी ने गोली चला दी, गोली बाज़ू में लगी.
गाली गलौज तक तो ठीक था लेकिन इस बार पाकिस्तान में आम चुनावों से पहले ही नया फ़ैशन शुरू हो गया है यानी नवाज़ शरीफ़ पर किसी ने लाहौर के एक मदरसे में जूता उछाल दिया, मुस्लिम लीग के भूतपूर्व रक्षामंत्री ख़्वाजा आसिफ़ के चेहरे पर किसी ने जलसे में कालिख़ फेंक दी, भूतपूर्व गृहमंत्री अहसन इक़बाल पर उन्हीं के शहर नारोवाल में किसी ने गोली चला दी, गोली बाज़ू में लगी.
कल ये भी हो गया कि पीपुल्ज़ पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो की गाड़ी पर कराची के इलाक़े लियारी में कुछ लोगों ने पथराव किया. इस इलाक़े से बिलावल इलेक्शन लड़ रहे हैं. उनसे पहले लियारी बिलावल की माता बेनज़ीर भुट्टो और नाना ज़ुल्फ़ीक़ार अली भुट्टो का चुनाव क्षेत्र रहा है और पिछले पचास बरस से पीपुल्ज़ पार्टी का गढ़ माना जाता है.
इसलिए यहां बिलावल की गाड़ी पर पथराव ऐसा ही है जैसे अमेठी में राहुल गांधी या अहमदाबाद में नरेंद्र मोदी की गाड़ी पर पत्थर पड़ जाएं.
पिछले आम चुनावों में तालिबान ने आवामी नेशनल पार्टी और पीपुल्ज़ पार्टी के उम्मीदवारों पर हमले करके उन्हें चुनाव अभियान से बाहर कर दिया था. इस बार नवाज़ शरीफ़ के हामी उम्मीदवारों को घेरने या उनकी वफ़ादारी तब्दील करवाने या चुनावी दौड़ से बाहर रखने की कोशिश हो रही है.
कई उम्मीदवारों ने आम वोटरों के अलावा गुप्तचर कर्मचारियों पर मारपीट और धमकियां देने के आरोप लगाए हैं. पंजाब में बहुत से उम्मीदवारों ने मुस्लिम लीग नवाज़ का टिकट वापस करके आज़ाद हैसियत में चुनाव लड़ने का भी ऐलान किया है.
साथ ही साथ तकरीबन सभी टीवी चैनलों पर न जाने जादू की क्या छड़ी फिर गई है कि सभी नवाज़ शरीफ़ की निंदा और इमरान ख़ान की सराहना में लगे हुए हैं. जो एक-आध अख़बार जैसे अंग्रेज़ी पेपर 'डॉन' बग़ैरह निष्पक्ष पत्रकारिता में यक़ीन रखते हैं उनके डिस्ट्रीब्यूशन और विज्ञापन रोके जा रहे हैं.
देश के कई इलाक़ों में डॉन न्यूज़ चैनल या तो ग़ायब है. नज़र आता भी तो कभी आवाज़ ग़ायब कभी तस्वीर गुम. ऐसा क्यों हो रहा है और कौन कर रहा है. नेताओं से लेकर आम वोटर तक हर क़ोई खुलकर नाम भी लेना नहीं चाहता.
कोई एस्टेबलिशमेंट कहता है, कोई ख़लाई मख़लूक तो कोई जिन्न-भूत. ताज़ा उदाहरण ये है कि मुल्तान में मुस्लिम लीग नून के एक उम्मीदवार इक़बाल सिराज को कुछ लोगों ने थप्पड़ मारे, उनके गोदाम पर छापा मारा गया और कहा गया कि अगर तुमने मुस्लिम लीग नून का टिकट वापस नहीं किया तो तुम्हारा कारोबार तबाह हो जाएगा.
इक़बाल ने मीडिया कैमरों के सामने खुलकर कहा कि उनके साथ ये काम एक ख़ुफ़िया एजेंसी के लोगों ने किया है. मगर इसके थोड़ी ही देर बाद उन्होंने कहा कि मुझे ग़लतफ़हमी हो गई थी, मुझे किसी एजेंसी वाले ने नहीं बल्कि एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के कर्मचारियों ने थप्पड़ मारे और धमकियां दी.
मेरा दोस्त अब्दुल्ला पान वाला कहता है कि इस बार चुनाव बिलकुल शीशे की तरह साफ़ हैं. हर वोटर आरपार देख सकता है मगर उंगली नहीं उठा सकता, कहीं कोई उठा ही न ले.
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