पाकिस्तान पर भारत और अमेरिका में वाकयुद्ध, जयशंकर के 'मूर्ख मत समझो' बयान पर आया US का जवाब
इस महीने की शुरुआत में, बाइडेन प्रशासन ने पाकिस्तान को 450 मिलियन डॉलर के एफ-16 फाइटर जेट फ्लीट मेंटेनेंस प्रोग्राम को मंजूरी दी है और पिछले ट्रम्प प्रशासन के उस फैसले को उलट दिया है...
वॉशिंगटन, सितंबर 27: पाकिस्तान को लेकर भारत और अमेरिका एक दूसरे के सामने खड़े हो गये हैं और इस बार भारत ने भी तय कर लिया है, कि वो अमेरिकी दोमुंहेपन का करारा जवाब देगा। अमेरिका ने पाकिस्तान को लड़ाकू विमान एफ-16 पैकेज देने का फैसला किया है, जो 450 मिलियन डॉलर का है, जिसको लेकर भारतीय विदेश मंत्री ने अमेरिका को तीखा जवाब दिया है और भारत और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गये हैं। वहीं, अब अमेरिका ने कहा है कि, वो भारत और पाकिस्तान, अलग अलग प्वाइंट्स पर वो दोनों अमेरिका के साझेदार हैं। अमेरिका का ये बयान भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं है।
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पाकिस्तान पर भारत बनाम अमेरिका
'भारत और पाकिस्तान दोनों अलग-अलग बिंदुओं पर अमेरिका के साझेदार हैं', बाइडेन प्रशासन ने सोमवार को ये जवाब तब दिया है, जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस्लामाबाद को अमेरिकी एफ -16 सुरक्षा पैकेज के पीछे तर्क पर सवाल उठाया। अमेरिकी एफ-16 पैकेज पर सवाल उठाते हुए भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि, "हर कोई जानता है कि एफ -16 लड़ाकू विमानों का उपयोग कहां और किसके खिलाफ किया जाता है। भारतीय-अमेरिकियों के साथ बातचीत के दौरान एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि, "आप ये बातें कहकर किसी को बेवकूफ नहीं बना रहे हैं।"
अमेरिका ने क्या कहा?
वहीं, भारतीय विदेश मंत्री के बयान के बाद अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि, "हम पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को नहीं देखते हैं, और दूसरी तरफ, हम भारत के साथ भी अपने संबंधों को नहीं देखते हैं, एक दूसरे के संबंधों के साथ।" उन्होंने कहा कि, "ये दोनों हमारे साझेदार हैं, जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग बिंदुओं पर जोर दिया गया है"। आपको बता दें कि, अमेरिका पहले भी पाकिस्तान को भारत के खिलाफ हथियार देता रहा है और अमेरिकी हथियारों के दम पर पाकिस्तान कश्मीर में आतंक फैलाता रहा है। वहीं, 1971 की भारत पाकिस्तान लड़ाई में तो अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद के लिए अपनी सैन्य मदद भेज दी थी, जिसके बाद रूस ने भारत को मदद भेजी थी और अब एक बार फिर से अमेरिका अपना दोमुंहा रवैया दिखा रहा है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि, "हम दोनों को साझेदार के रूप में देखते हैं, क्योंकि हमारे पास कई मामलों में साझा मूल्य हैं। हमारे कई मामलों में साझा हित हैं। और भारत के साथ हमारे संबंध अपने आप में हैं। पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध अपने आप में हैं।"
पाकिस्तान को पैकेज दे रहा अमेरिका
आपको बता दें कि, इस महीने की शुरुआत में, बाइडेन प्रशासन ने पाकिस्तान को 450 मिलियन डॉलर के एफ-16 फाइटर जेट फ्लीट मेंटेनेंस प्रोग्राम को मंजूरी दी है और पिछले ट्रम्प प्रशासन के उस फैसले को उलट दिया है, जिसमें इस्लामाबाद को अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के लिए सुरक्षित पनाहगाह प्रदान करने के लिए सैन्य सहायता को निलंबित कर दिया गया था। डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सभी सैन्य सहायता रोक दी थी, लेकिन अब एक बार फिर से बाइडेन प्रशासन ने पाकिस्तान को हथियारों के लिए पैकेज का ऐलान किया है। वहीं, अब अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि, "हम यह भी हर संभव करने की कोशिश करते हैं, और जहां तक संभव होता है, करते हैं, कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंध रचनात्मक हो, और एक ये भी प्वाइंट है, जिसपर हम ध्यान देते हैं"। वहीं, एक अन्य सवाल के जवाब में प्राइस ने कहा कि अफगानिस्तान में अस्थिरता और हिंसा को देखना पाकिस्तान के हित में नहीं है।
पाकिस्तान से अफगानिस्तान पर बात
अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि, "अफगानिस्तान के लोगों तक मददज पहुंचाने के लिए हम नियमित तौर पर अपने पाकिस्तानी सहयोगियों से चर्चा करते हैं और हमारी कोशिश है, कि अफगान लोगों के जीवन और आजीविका और मानवीय स्थितियों में सुधार हो, और यह देखने की कोशिश करते हैं, कि क्या तालिबान ने जो वादे किए थे, क्या वो अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा कर रहा है। नेड प्राइस ने कहा कि, इनमें से कई समान प्रतिबद्धताओं में पाकिस्तान शामिल है। आतंकवाद विरोधी प्रतिबद्धताएं, सुरक्षित मार्ग के लिए प्रतिबद्धताएं, अफगानिस्तान के नागरिकों के लिए प्रतिबद्धताएं, इनपर हम पाकिस्तान से बात करते हैं। उन्होंने कहा किस, "इन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए तालिबान की ओर से अनिच्छा या अक्षमता का पाकिस्तान के लिए भी महत्वपूर्ण प्रभाव होगा"। प्राइस ने कहा, "इसलिए, इस कारण से, हम पाकिस्तान के साथ कई हितों को साझा करते हैं, क्योंकि उसका पड़ोसी अफगानिस्तान है।" उन्होंने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका उस तबाही पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान के बड़े क्षेत्रों को तबाह करने वाली भीषण बाढ़ से कई लोगों की जान चली गई है।
भारतीय एक्सपर्ट ने उठाए थे सवाल
भारतीय एक्सपर्ट ब्रह्मा चेलानी ने प्रोजेक्ट सिंडिकेट के लिए लिखे गये अपने एक लेख में इस बात का जिक्र करते हुए कहा है कि, जो बाइडेन भी पाकिस्तान के साथ प्यार की पिंगे पढ़ने में व्यस्त हैं, जबकि उनसे पहले के सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने पाकिस्तान की दुष्ट इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस एजेंसी (आईएसआई) के साथ अमेरिका की लंबी साझेदारी ने पाकिस्तान को इस काबिल बना दिया, कि वो अपने पड़ोसी देशों के खिलाफ एक कम तीव्रता वाले युद्ध और पड़ोसी देशों में सशस्त्र जिहादियों की तैनाती कर वहां आतंकवाद को संस्थागत बना सके। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा है कि, पाकिस्तान ने हमेशा एक शासन स्थापित करके अफगानिस्तान को उपनिवेश बनाने की कोशिश की है, जिसे वो अपने तरह से नियंत्रित करना चाहता है। इसलिए आईएसआई ने 1990 के दशक की शुरुआत में तालिबान का निर्माण किया। फिर आईएसआई द्वारा अफगानिस्तान में अमेरिका की अपमानजनक हार के बाद तालिबान के नियंत्रण में वापस आने के बाद, पाकिस्तान ने अपनी इच्छा पूरी कर ली है।
अमेरिका का डबल गेम
इससे पहले भी अमेरिका ने इस सौदे को उचित ठहराते हुए कहा था कि, पाकिस्तान के एफ-16 को अत्याधुनिक एवियोनिक्स से लैस करने का मकसद आतंकवाद का मुकाबला करना है। लेकिन, अमेरिका की ये दलील समझ से इसलिए बाहर है, क्योंकि भला फाइटर जेट से कब और कैसे आतंकवाद का मुकाबला किया गया है, खासकर जब आतंकवादी अपने ही देश में हों। वहीं,आज तक पाकिस्तान ने आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई मे एफ-16 को नहीं शामिल किया है। वहीं, अमेरिका ने बिना भारतीय अधिकारियों से बात किए पाकिस्तान के साथ ये डील की है, लिहाजा भारतीय अधिकारियों के मन में अमेरिका को लेकर संदेह और भी गहरा होगा, जो भारत और अमेरिका के रिश्ते के लिए सही नहीं है। इसके साथ ही बाइडेन प्रशासन ने आज तक भारत और चीन सीमा पर चल रहे विवाद के बारे में कुछ नहीं कहा है और बाइडेन के विदेश विभाग ने दोनों देशों से इस तनाव का शांतिपूर्ण समधान निकालने की ही अपील की है, यानि अमेरिका ने भारत और चीन विवाद में तटस्थ रहना चुना है, लेतिन ब्रह्रा चेलानी का मानना है, कि चीन के ग्राहक पाकिस्तान के एफ-16 विमान को अत्याधुनिक बनाकर अमेरिका ने भारत के साथ संबंधों को खराब करने का विकल्प चुना है।
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