ओमिक्रॉन-डेल्टा में भेद नहीं कर पा रहे अमेरिकी डॉक्टर्स, नहीं कर पा रहे मरीजों का इलाज, भारत भी फंसेगा?
अमेरिका में डेल्टा वेरिएंट और ओमिक्रॉन वेरिएंट, दोनों वायरस से लोग संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन डॉक्टरों के लिए अलग अलग वेरिएंट से संक्रमित मरीजों का इलाज करना काफी मुश्किल हो रहा है।
वॉशिंगटन, जनवरी 04: कोरोना वायरस ने एक बार फिर से पूरी दुनिया को परेशान करना शुरू करदिया है और पिछले एक हफ्ते में पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के एक करोड़ से ज्यादा नये मरीज मिले हैं, जिससे पूरी दुनिया में हड़कंप मचा हुआ है। कोरोना पर लगातार बढ़ती चिंताओं के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका में डॉक्टरों को एक अजीबोगरीब पहेली का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिकी डॉक्टर्स के पास कोई ऐसा तरीका ही नहीं है, जिससे वो कोरोना के डेल्टा वेरिएंट और ओमिक्रॉन वेरिएंट वाले मरीजों में अंतर कर सकें और उस मुताबिक उनका इलाज कर सकें।
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ओमिक्रॉन-डेल्टा में फंसे यूएस डॉक्टर
अमेरिकी डॉक्टरों के पास यह निर्धारित करने का कोई तैयार तरीका नहीं है, कि अस्पताल में इलाज के लिए आने वाला कोई मरीज कोरोना वायरस के किस वेरिएंट, यानि डेल्टा या ओमिक्रॉन में से किस वेरिएंट से संक्रमित है। डॉक्टरों के लिए मरीजों का इलाज करने को लेकर ये सबसे बड़ी परेशानी है, क्योंकि अमेरिका में काफी तेजी से स्थिति बिगड़ रही है और अस्पताल में मरीजों की बाढ़ आ रही है और दूसरी तरह डॉक्टर्स दोनों वेरिएंट के बीच अंतर ही नहीं कर पा रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि, दोनों वेरिएंट का अलग अलग इलाज है और अगर सही अंतर नहीं लगाया गया, तो मरीजों की स्थिति तेजी से बिगड़ सकती है।
डेल्टा-ओमिक्रॉन, इलाज में अंतर
अमेरिका में इस वक्त ओमिक्रॉन और डेल्टा, दोनों वेरिएंट के मरीज अस्पताल आ रहे हैं और डॉक्टरों का कहना है कि, डेल्टा संक्रमित मरीजों में काफी ज्यादा जोखिम होता है और ऐसे मरीजों को दो विशेष मोनोक्लोनल एंटीबॉडी उपचार से बहुत लाभ होता है, जबकि इस इलाज पद्धति से नए, लेकिन अत्यधिक ट्रांसमिसिबल ओमिक्रॉन वेरिएंट के मरीजों को कोई लाभ नहीं मिलता है और ऐसे मरीजों को तीसरे एंटीबॉडी की आवश्यकता होती है, ऐसे में जब तक दोनों तरह के मरीजों की सही पहचान ना हो जाए, उनका इलाज करना काफी मुश्किल है और इस दुविधा के बीच मरीजों की जिंदगी पर खतरा गहरा जाता है।
सरकारी स्वास्थ्य प्राधिकरण भी बेबस
सबसे खतरनाक बात ये है कि, सिर्फ डॉक्टर ही नहीं, बल्कि अमेरिकी सरकार की फेडरल हेल्थ अथॉरिटी भी ओमिक्रॉन और डेल्टा के बीच अंतर खोजने में संघर्ष कर रहे हैं और अनिश्चित अनुमानों की पृष्ठभूमि में पूरे देश के लिए फैसला लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और कई क्षेत्रों में काफी बुरी तरह से प्रभावित हैं। अमेरिकी अखबार 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, डेल्टा-संक्रमित मरीजों को जिन दो एंटीबॉडी इलाजों से लाभ होता है, वे रेजेनरॉन और एली लिली द्वारा बनाई गई दवाएं हैं, जबकि मुख्य रूप से ओमिक्रॉन वेरिएंच से संक्रमित रोगियों को एंटीबॉडी दवाओं से बहुत लाभ होगा, जिनका निर्माण ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन और वीर बायोटेक्नोलॉजी ने किया है, लेकिन असल दिक्कत ये है कि, रोगियों के बीच में अंतर का पता कैसे लगाया जाए।
टेस्टिंग की सबसे बड़ी समस्या
असल में सबसे बड़ी दिक्कत ये हो रही है कि, कोरोना वायरस के इन दोनों वेरिएंट्स के बीच के अंतर को पकड़ने वाले टेस्टिंग किट की सबसे बड़ी समस्या है और अभी तक कोई आधिकारिक टेस्टिंग किट नहीं है, जिससे दोनों वेरिएंट के बीच का अंतर साफ हो। जानकारों का कहना है कि, भारत में भी यही दिक्कत आने वाली है, लिहाजा सरकार को फौरन तैयार हो जाना चाहिए। अमेरिका में नेशनल नेटवर्क और दूसरी प्रयोगशालाएं लोगों के बीच फैले कोरोना वेरिएंट को ट्रैक करने के लिए जीनोम-सिक्वेंसिंग परीक्षणों का इस्तेमाल करती हैं, जबकि स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी 'क्षेत्रीय अनुमानों' के आधार पर यह तय करने की कोशिश करते हैं, कि क्लीनिक और अस्पतालों में कौन से एंटीबॉडी इलाज का उपयोग करना है, यानि, जिस क्षेत्र में जिस वेरिएंट के ज्यादा मरीज मिल रहे हैं, उस क्षेत्र के डॉक्टर उस वेरिएंट का अनुमान लगाकर इलाज कर रहे हैं, लेकिन इससे गलत इलाज हो रहे हैं और लोगों की जान पर बन रही है।
डेल्टा वेरिएंट का उपचार रोका गया
अमेरिका में मरीजों का इस्तेमाल करने को लेकर क्षेत्रीय प्रणाली पूरी तरह से गलत है, लेकिन जब पूरे अमेरिका में 23 दिसंबर को करीब 70 प्रतिशत से ज्यादा ओमिक्रॉन वेरिएंट के मरीज मिलने के बाद यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के कहने के बाद डेल्टा संक्रमण के लिए एंटीबॉडी उपचार को रोक दिया गया। देश में सभी कोविड-19 मामलों में से 73 प्रतिशत ओमिक्रॉन वेरिएंट के मरीज मिले थे। लेकिन, ये फौरन स्पष्ट हो गया कि, वास्तव में, अमेरिका के कई राज्यों में डेल्टा वेरिएंट अभी भी लोगों को संक्रमित कर रहा है और ऐसे में एली लिली और रेजेनरॉन एंटीबॉडी उपचार को रोकना एक गंभीर गलती होगी। बाद में, सीडीसी ने ओमिक्रॉन के प्रकोप के अपने राष्ट्रीय अनुमान को संशोधित कर 59 प्रतिशत कर दिया, और 31 दिसंबर को, संघीय अधिकारियों ने एक बार फिर सभी एंटीबॉडी उपचारों के शिपमेंट को फिर से शुरू कर दिया।
क्यों और कैसे फंसा हुआ है अमेरिका?
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, महामारी रोग विशेषज्ञ और पब्लिक हेल्थ प्रोफेशनल्स का कहना है कि, अमेरिका में जीनोम सिक्वेंसिंग के आधार पर, जिसका नतीजा परफेक्ट होता है, उसके द्वारा जिन मरीजों का टेस्ट किया जाता है, उसका परिणाम आने में एक हफ्ते से ज्यादा का समय लग रहा है, लेकिन जो मरीज डेल्टा वेरिएंट से प्रभावित होते हैं, उनके पास इलाज देर से शुरू करने का वक्त नहीं होता है और अगर रिजल्ट आने का इंतजार किया जाए, तब तक ऐसे रोगियों की स्थिति काफी खराब हो जाती है और उनकी जान खतरे में आ जाती है। लिहाजा ऐसे राज्य, जहां दोनों तरह के मरीज मिल रहे हैं, वहां की स्थिति काफी खराब हो गई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, यह संयुक्त राज्य अमेरिका को एक "होल्डिंग पैटर्न" में रखता है, जिसके दौरान रोगियों के लिए टेलरिंग ट्रीटमेंट "बेहद कठिन" होने वाला है और थोक नमूनों में वेरिएंट की पहचान करने के लिए एक तेज, अचूक तरीके के नहीं होने से भविष्य में हड़कंप मचने की संभावना है।
क्या भारत भी फंसेगा?
भारत में भी कोरोना वायरस के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और पिछले 24 घंटे में करीब 30 हजार से ज्यादा नये कोरोना संक्रमित मरीज मिले हैं, जिनमें डेल्टा वेरिएंट के अलावा ओमिक्रॉन के भी मरीज हैं, लिहाजा सवाल ये उठ रहे हैं, कि क्या जिस उलझन में अमेरिका के डॉक्टर्स हैं, क्या उसी उलझन में भारत के डॉक्टर्स भी फंसेगें और क्या भारत में इलाज नहीं कर पाने के अभाव में मरीजों की जान पर बात आएगी? लिहाजा, जरूरी इस बात को लेकर है, कि भारत सरकार भी इस तरह की दिक्कतों को वक्त रहते सुलझाने पर ध्यान दे, ताकि आने वाले वक्त में जब भारत में कोरोना की लहर आए, तो हम पहले से ही लोगों की जिंदगी बचाने के लिए तैयार रहें।
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