दुनियाभर के पुरुषों में स्पर्म काउंट हो रहा कम, प्रजनन क्षमता पर पड़ा गंभीर असर, रिसर्च में खुलासा
वीर्य को लेकर नया विश्लेषण 2017 में प्रकाशित एक समीक्षा रिपोर्ट का अपडेट है और इस रिपोर्ट में पहली बार मध्य और दक्षिण अमेरिका, एशिया और अफ्रीका से नया डेटा शामिल किया गया है।
Sperm counts declining globally: मेडिकल लिट्रेचर रिव्यू की एक रिपोर्ट में सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा गया है कि, पिछले 50 सालों में दुनियाभर के मर्दों में स्पर्म काउंड में 50 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो गंभीर चिंता का विषय है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, अगर इस निष्कर्ष की पूरी तरह से पुष्टि हो जाती है और अगर मर्दों के शुक्राणु की क्षमता में लगातार इसी तरह की गिरावट दर्ज की जाती है, तो फिर इसका मानव प्रजनन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया है, कि शुक्राणुओं की क्षमता में गिरावट का इंसानों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ेगा, क्योंकि क्योंकि वीर्य की गुणवत्ता पूरे शरीर को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
स्पर्म की क्षमता हो रही कमजोर
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, वीर्य को लेकर किया गया ये रिव्यू और इसके निष्कर्षों ने पुरुष प्रजनन क्षमता को लेकर मेडिकल विशेषज्ञों के बीच एक बहस छेड़ दी है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है, कि निष्कर्ष वास्तविक और जरूरी हैं, लेकिन कई विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि, फिलहाल वो इस डेटा से आश्वस्त नहीं हैं, क्योंकि समये के साथ मर्दों के शुक्राणुओं की गिनती के इतने तरीके इतने बदल गये हैं, ऐतिहासिक और आधुनिक संख्याओं की तुलना करना संभव नहीं है। लेकिन, इस बात से सभी मेडिकल विशेषज्ञ सहमत हैं, कि शुक्राणुओं की गिनती और उसकी क्षमता को लेकर अध्ययन की जरूरत है। स्टैनफोर्ड मेडिसिन के मूत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. माइकल ईसेनबर्ग ने सीएनएन से कहा कि, "मुझे लगता है कि किसी भी प्रजाति के मूलभूत कार्यों में से एक प्रजनन है। इसलिए मुझे लगता है कि, अगर कोई संकेत है, कि प्रजनन में गिरावट आ रही है, तो यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण खोज है।"
स्वास्थ्य और शुक्राणु में संबंध
डॉ. माइकल ईसेनबर्ग ने कहा कि, "एक आदमी के प्रजनन स्वास्थ्य और उसके समग्र स्वास्थ्य के बीच एक मजबूत संबंध है। तो अगर शुक्राणुओं की क्षमता कमजोर हुई है, तो फिर इसका मतलब ये हुआ, कि हम शायद अब उतने स्वस्थ नहीं हैं, जितना स्वस्थ हम पहले हुए करते थे।" हालांकि, कई और विशेषज्ञों का कहना है कि, हालांकि समीक्षा अच्छी तरह से की गई है, लेकिन वे इसके निष्कर्षों को लेकर संशय में हैं। साल्ट लेक सिटी में यूनिवर्सिटी ऑफ यूटा स्कूल ऑफ मेडिसिन के एक सर्जन और सहायक प्रोफेसर डॉ. अलेक्जेंडर पास्टुकज़क ने कहा कि, "जिस तरह से वीर्य विश्लेषण किया जाता है, वह दशकों में बदल गया है। इसमें सुधार हुआ है। यह अधिक मानकीकृत हो गया है, लेकिन पूरी तरह से नहीं।" उन्होंने कहा कि, "यहां तक कि अगर आप एक ही वीर्य का नमूना लेते हैं, और इसे 1960 और 70 के दशक के मुकाबले आज से तुलना करते हैं, और फिर उसका विश्वेषण करते हैं, तो फिर आपको दो अलग-अलग उत्तर मिलेंगे।"
वीर्य की क्षमता का विश्लेषण
वीर्य को लेकर नया विश्लेषण 2017 में प्रकाशित एक समीक्षा रिपोर्ट का अपडेट है और इस रिपोर्ट में पहली बार मध्य और दक्षिण अमेरिका, एशिया और अफ्रीका से नया डेटा शामिल किया गया है। यह ह्यूमन रिप्रोडक्शन अपडेट जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने लगभग 3,000 अध्ययनों की छानबीन की, जिन्होंने पुरुषों के शुक्राणुओं की संख्या दर्ज की। इस रिसर्च के दौरान शोधकर्ताओं ने उन मर्दों के स्पर्म को बाहर कर दिया था, जिनका इलाज बांझपन के लिए चल रहा है। बल्कि, इस रिसर्च में सिर्फ उन्हीं स्पर्म को शामिल किया गया, जो बिल्कुल स्वस्थ थे। इस रिसर्च के दौरान इस बात पर खास ध्यान दिया, कि ऐसे बहुत कम प्रतिभागी मिल रहे थे, जिनके जननांग पूरी तरह से स्वस्थ थे और किसी असमान्य बीमारी से ग्रसित नहीं थे। इस रिसर्च में स्पर्म का चुनाव एक हेमोसाइटोमीटर नामक उपकरण का उपयोग करके गिना गया था।
आंकड़ों में रिसर्च जानिए
इस रिसर्च के बाद शोधकर्ताओं ने निर्धारित किया, कि साल 1973 से साल 2018 के बीच शुक्राणुओं की संख्या प्रति वर्ष 1% से अधिक गिर रही है। अध्ययन से निष्कर्ष निकाला गया है कि, विश्व स्तर पर औसत शुक्राणुओं की संख्या 2018 तक 52% गिर गई है। जब अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने अपने विश्लेषण को कुछ वर्षों तक सीमित रखा, तो उन्होंने पाया कि, शुक्राणुओं की संख्या में गिरावट होने की रफ्तार साल दर साल बढ़ रही है और 1973 के बाद प्रति वर्ष औसतन 1.16% की रफ्तार से गिरने के बाद अब साल 2020 के बाद प्रति वर्ष 2.64% तक तेज रफ्तार से स्पर्म काउंट में कमी होती दिख रही है। ब्रौन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड कम्युनिटी मेडिसिन के एक महामारीविद और सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता अध्ययन लेखक डॉ. हागई लेविन ने कहा कि, "यह वास्तव में महत्वपूर्ण है, कि वास्तव में शुक्राणुओं की संख्या में गिरावट बढ़ रही है।" रिपोर्ट के मुताबिक, गिनती के आधार पर औसत शुक्राणुओं की संख्या 1973 से 2019 तक 104 मिलियन से घटकर 49 मिलियन प्रति मिलीलीटर हो गई है। हालांकि, सामान्य शुक्राणुओं की संख्या 40 मिलियन प्रति मिलीलीटर से मानी जाती है।
स्पर्म काउंट में कमी की वजह अज्ञात
अध्ययन के लेखकों का कहना है कि, उनके पास विभिन्न क्षेत्रों से पर्याप्त डेटा नहीं है, जो यह बता सके कि क्या कुछ देशों में दूसरों की तुलना में औसत शुक्राणुओं की संख्या कम थी या कुछ क्षेत्रों में शुक्राणुओं की संख्या तेजी से घट रही थी या नहीं। इस समीक्षा रिपोर्ट में 53 देशों के डेटा को शामिल किया गया था। लेखकों ने कहा कि, फिलहाल स्पर्म की संख्या में आने वाली गिरावट की वजह के बारे में नहीं बताया जा सकता है और इसपर गंभीर अध्ययन किए जाने की जरूरत है। डॉ. हागई लेविन ने कहा कि, कुछ सामान्य मुख्य वजहों को छोड़कर फिलहाल ये कहना मुश्किल है, कि स्पर्म काउंट में गिरावट की वजह क्या है और किन क्षेत्रों में कितना कम हो रहा है। लेकिन, उन्होंने कहा कि, स्पर्म की क्षमता और संख्या में कमी की वजह से प्रजनन स्वास्थ्य को नुकसान गर्भ में ही शुरू हो सकता है। उन्होंने कहा कि, कुछ सामान्य वजहें, जिनसे स्पर्म काउंट कम होता है, उनमें प्लास्टिक के बर्तनों दैनिक जीवन में इस्तेमाल, धूम्रपान, अलग अलग रसायनों का संपर्क, प्रदूषण शामिल हैं। इसके अलावा जीवन शैली, मोटापा और शारीरिक गतिविधियों में कमी की वजह से भी स्पर्म काउंट में कमी आती है।
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