क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

चीन के 'आदेश' पर संविधान को ताक पर रख फैसले ले रही नेपाली राष्ट्रपति, सरकार के लिए बनीं सिरदर्द

नेपाल में सत्ताधारी गठबंधन के लिए राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से निपटना मुश्किल भरा कदम साबित हो रहा है। बिद्या देवी भंडारी ने आम चुनाव से ठीक पहले नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले इस गठबंधन को गहरे असमंजस में डाल दिया

Google Oneindia News

काठमांडू, 23 सितंबरः नेपाल में सत्ताधारी गठबंधन के लिए राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से निपटना मुश्किल भरा कदम साबित हो रहा है। बिद्या देवी भंडारी ने आम चुनाव से ठीक पहले नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले इस गठबंधन को गहरे असमंजस में डाल दिया है। नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नागरिकता बिल 2006 दोनों सदनों से दोबारा पारित होने के बावजूद मंजूरी देने से इनकार कर दिया। सांविधानिक रूप से बिद्या देवी भंडारी गलत हैं ऐसे में उनके फैसले को चुनौती देने के लिए सत्ता पक्ष के पास एकमात्र रास्ता उन पर महाभियोग लगाने का बचता है। आमचुनाव के 2 महीने से भी कम समय रह गए हैं ऐसे में यह गठबंधन सरकार इसका साहस दिखा पाएगी इसे लेकर संदेह जताया जा रहा है।

गठबंधन में शामिल कम्यूनिस्ट दलों ने भी की आलोचना

गठबंधन में शामिल कम्यूनिस्ट दलों ने भी की आलोचना

संविधान के मुताबिक, किसी बिल को संसद के दोनों सदन दोबारा भेजते हैं तो 15 दिन के अंदर राष्ट्रपति को फैसला लेना होता है। मंगलवार को 15वां दिन समाप्त हो जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि राष्ट्रपति भंडारी संशोधन विधेयक पर दस्तखत नहीं करेंगी। इसके बाद सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पांच में से चार दलों ने एक बयान में राष्ट्रपति की तीखी निंदा की। नेपाली कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड सोशलिस्ट) और जनता समाजवादी पार्टी ने एक साझा बयान में कहा- राष्ट्रपति ने संवैधानिक प्रावधान का पालन और उसका संरक्षण करने के अपने दायित्व पर हमला किया है और संविधान का उल्लंघन किया है।

यूएमएल ने संसद में बिल का किया विरोध

यूएमएल ने संसद में बिल का किया विरोध

लेकिन सत्ताधारी गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनमोर्चा ने इस बयान पर दस्तखत नहीं किए। पार्टी के नेता हिमलाल पुरी ने मीडियाकर्मियों से कहा- 'हमारी पार्टी इस बिल को राष्ट्रीय हित के खिलाफ मानती है। लेकिन वह राष्ट्रपति के इस पर दस्तखत ना करने के कदम का समर्थन नहीं करती।' बता दें कि प्रमुख विपक्षी दल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) ने भी इस बिल का संसद में विरोध किया था। विश्लेषकों के मुताबिक इसे देखते हुए साफ है कि सत्ताधारी गठबंधन के लिए राष्ट्रपति विरोधी कोई रणनीति तैयार करना आसान नहीं होगा।

अभूतपूर्व संवैधानिक संकट में पहुंचा नेपाल

अभूतपूर्व संवैधानिक संकट में पहुंचा नेपाल

विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि राष्ट्रपति द्वारा संविधान संशोधन बिल को मंजूरी न देने से नेपाल के संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य एक अभूतपूर्व संकट में फंस चुका है। साल 2015 में नया संविधान लागू होने के बाद बीते 7 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी राष्ट्रपति ने संसद की संप्रभुता को यूं बुरी तरह से चोट पहुंचाया है। नेपाल के संविधान में राष्ट्रपति के अधिकार और कर्त्तव्यों का स्पष्ट उल्लेख है। इसके तहत वे किसी बिल को सिर्फ एक बार पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा सकती हैं। अपने इस अधिकार का इस्तेमाल भंडारी पहले ही कर चुकी थीं।

राष्ट्रपति कार्यालय ने फैसले को बताया संविधान सम्मत

राष्ट्रपति कार्यालय ने फैसले को बताया संविधान सम्मत

इसके बावजूद राष्ट्रपति कार्यालय ने दावा किया है कि राष्ट्रपति का यह कदम संविधान सम्मत है। राष्ट्रपति के राजनीतिक सलाहकार सलाहकार लालबाबू यादव ने कहा कि अनुच्छेद 61(4) में कहा गया है कि राष्ट्रपति का मुख्य कर्तव्य संविधान का पालन करना और उसकी रक्षा करना होगा। इसका मतलब राष्ट्रपति का काम संविधान के सभी हितों की रक्षा करना है। केवल अनुच्छेद 113 को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि राष्ट्रपति ने ऐसा नहीं किया। यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 113(2) में कहा गया है कि राष्ट्रपति के सामने पेश किए जाने वाले बिल को 15 दिनों में मंजूरी देनी होगी और दोनों सदनों को इसके बारे में सूचित किया जाएगा।

क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश का होगा पालन?

क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश का होगा पालन?

राष्ट्रपति कार्यालय की दलीलों से संविधान विशेषज्ञ सहमत नजर नहीं आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बलराम के.सी. ने कहा है कि भंडारी नेपाल की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी और मुख्य विपक्षी दल यूएमएल की करीबी हैं। इसे पार्टी के सर्वेसर्वा केपी ओली ने उन्हें राष्ट्रपति बनाया था। अब वह अपनी दलीय वफादारी निभा रही हैं। विश्लेषकों ने कहा है कि अगर याचिका दी गई, तो सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को बिल पर दस्तखत करने का आदेश दे सकता है। लेकिन यह सवाल उठाया गया है कि अगर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया, तो उसके बाद क्या होगा?

रविवार तक के लिए टली सुनवाई

रविवार तक के लिए टली सुनवाई

फिलहाल नेपाल नागरिकता अधिनियम, 2006 में संशोधन के लिए बनाए गए विधेयक के मंजूरी से संबंधित रिट याचिका पर सुनवाई रविवार तक के लिए टाल दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता बिमल पौडेल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में कई अन्य मामले सुनने को थे इसलिए आज होने वाली सुनवाई रविवार तक के लिए टाल दी गई है। पौडेल ने कहा कि राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी द्वारा नागरिकता विधेयक को मंजूरी देने से इनकार करने के बाद कुल पांच रिट याचिकाएं शीर्ष अदालत में हैं। याचिका में मांग की गई है कि राष्ट्रपति विधेयक को मूजूरी दें। राष्ट्रपति के कार्यालय को मामले में प्रतिवादी के रूप में नामित किया गया है।

भारत की बेटियों को होगा सबसे अधिक फायदा

भारत की बेटियों को होगा सबसे अधिक फायदा

बता दें कि इस बिल के पारित होने के बाद विदेशी महिलाएं नेपाली पुरुषों से शादी कर आसानी से नागरिकता प्राप्त कर सकेंगी। इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिलने से राष्ट्रीय पहचान पत्र प्राप्त करने की प्रतीक्षा कर रहे कम से कम पांच लाख लोग प्रभावित हुए हैं। विधेयक में वैवाहिक आधार पर नागरिकता देने की व्यवस्था की गई है और गैर-दक्षेस देशों में रहने वाले अनिवासी नेपालियों को मतदान के अधिकार के बिना नागरिकता देना सुनिश्चित किया गया है। अगर यह बिल पारित हो जाता है तो सबसे अधिक फायदा भारत की उन बेटियों को होगा जिनकी शादी नेपाल में होती है।

भारत को UNSC में मिलेगी स्थायी सीट? बाइडन के भरोसे से बढ़ी मोदी सरकार की उम्मीद

Comments
English summary
Political crisis in Nepal, President Bidya Devi Bhandari violating the constitution
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X