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ओपेक तेल उत्पादनः तेल के खेल में अमेरिका हारा बाजी, रूस के साथ जा मिला सऊदी अरब, क्या करेगा भारत?

तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक प्लस के 20 लाख बैरल प्रतिदिन तेल कटौती की घोषणा से अमेरिका को करारा झटका लगा है। यह कदम कच्चे तेल की कीमतों को बढ़ाने के इरादे से उठाया गया है।

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Opec oil production: तेल उत्पादक देशों के संगठन OPEC Plus के 20 लाख बैरल प्रतिदिन तेल कटौती की घोषणा से अमेरिका को करारा झटका लगा है। यह कदम कच्चे तेल की कीमतों को बढ़ाने के इरादे से उठाया गया है। अमेरिका इस फैसले के खिलाफ में था लेकिन बावजूद ओपेक द्वारा यह कदम उठाया गया है। शाही परिवार के इस कदम से ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका और सऊदी के संबंध आने वाले वक्त में और कड़वे होने जा रहे हैं। एक-दूसरे के भरोसेमंद सहयोगी रहे इन देशों के संबंध जमाल खशोगी की हत्या के बाद बिगड़ने शुरू हुए थे।

अगले महीने हैं अमेरिका में मध्यावधि चुनाव

अगले महीने हैं अमेरिका में मध्यावधि चुनाव

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक व्हाइट हाउस ने ओपेक देशों द्वारा उत्पादन में कटौती रोकने का काफी प्रयास किया था, लेकिन यह सफल न हो सका। अमेरिका ने बार-बार ओपेक देशों से आह्वान किया था कि वह प्रोडक्शन न घटाए। अमेरिका के बाइडेन प्रशासन को अगले महीने होने वाले मध्यावधि चुनाव की भी चिंता है। राष्ट्रपति बाइडेन चाहते हैं कि चुनाव से पहले वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति देने तथा ईंधन की कीमतों में कमी लाने के लिए तेल प्रोडक्शन और अधिक बढ़ाया जाए।

सऊदी अरब को मनाने में बेअसर रहा अमेरिका

सऊदी अरब को मनाने में बेअसर रहा अमेरिका

अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी ब्रेट मैकगर्क और यमन के प्रशासन के विशेष दूत टिम लेंडरकिंग के साथ बाइडन के शीर्ष ऊर्जा दूत अमोस होचस्टीन ने बीते महीने सऊदी अरब की यात्रा की थी। इस दौरान ओपेक+ के निर्णय सहित ऊर्जा मुद्दों पर चर्चा की गई। लेकिन इस यात्रा के बावजूद अमेरिका ओपेक देशों के उत्पादन में कटौती को रोकने में नाकाम रहा। इससे पहले जुलाई में अपनी यात्रा के दौरान ऐसा ही प्रयास राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी किया, लेकिन वह भी असफल रहे थे।

बेअसर साबित हुआ प्रतिबंध

बेअसर साबित हुआ प्रतिबंध

ओपेक प्लस देशों में रूस भी आता है। रूस दुनिया में तेल का एक बड़ा खिलाड़ी है। यूक्रेन युद्ध के बाद से ही रूस पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लाद दिए जिसके बाद रूस के तेल की सप्लाई अचानक कम हो गई। जिसकी वजह से तेल की कीमतों में इजाफा होने लगा। भारत और चीन ने मजबूरी में रूस का रूख किया और सस्ते दर पर तेल खरीदा। इससे रूस की समस्या तो दूर हो गई लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा तेल पर लगाया प्रतिबंध लगभग बेअसर साबित हुआ।

रूस और सऊदी अरब साथ आए

रूस और सऊदी अरब साथ आए

ऐसे में अमेरिका की इच्छा थी कि तेल की सप्लाई बढ़ाई ताकि रूसी तेल के दाम को कम किया जा सके। हाल में ही अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंधों का आठवां पैकेज लागू किया जिसमें रूसी तेल की कीमत पर मूल्य कैप लगाने की बात कही गई। लेकिन इस बीच ओपेक देशों ने तेल उत्पादन में कटौती का फैसला सुना दिया। नवंबर से ओपेक प्लस समूह तेल उत्पादन को घटाने जा रहा है। ऐसे में कहा जा रहा है कि सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान और रूसी राष्ट्रपति पुतिन इस मामले में एक साथ आ चुके हैं।

ओपेक में अमेरिका का नहीं है कोई सहयोगी

ओपेक में अमेरिका का नहीं है कोई सहयोगी

यह सच है कि अरब देशों में तेल की खोज अमेरिका ने ही की। अमेरिका ने ही इन देशों को संपन्न बनाया। लेकिन अब संभवतः यह पहली बार होगा जब ओपेक में अमेरिका का कोई भी सहयोगी नहीं बचा है। अब तक के हर ऐतिहासिक संकट में अमेरिका के पास कोई न कोई सहयोगी ओपेक में मौजूद होता था। 1973 के तेल झटके और प्रतिबंध के दौर में अमेरिका ईरान का भागीदार था। 1979 में जब ईरान में इस्लामी क्रांति के दौरान और फिर 1990 में, सद्दाम हुसैन के कुवैत पर आक्रमण के बाद, सऊदी अरब अमेरिका का सहयोगी था।

भारत क्या करेगा?

भारत क्या करेगा?

भारत अब अपने कुल तेल का 10 प्रतिशत हिस्सा तेल रूस से ले रहा है। यूक्रेन युद्ध से पहले भारत, रूस से सिर्फ 0.2 प्रतिशत तेल आयात करता था। लेकिन अब रूस, भारत को तेल निर्यात करने के मामले में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है। इस बीच भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उसे जिस भी देश से सस्ता क्रूड ऑयल मिलेगा वह वहीं से तेल आयात करेगा। इससे पहले केंद्रीय मंक्षत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा था कि सरकार की यह नैतिक ज़िम्मेदारी है कि वो अपनी जनता को ऊर्जा मुहैया कराए। बता दें कि भारत 50 लाख बैरल तेल का रोज उपभोग करता है और यह दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है।

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English summary
American oil game spoiled opec plus reduced oil production all efforts failed
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