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यूक्रेन की जंग: रूस को रोकने के लिए पश्चिमी देश क्या नई रणनीति बना रहे हैं

रूस के ख़िलाफ़ रणनीति पर विचार के लिए लिए नेटो, जी-7 और यूरोपीय संघ तीनों ही बैठकें कर रहे हैं. पश्चिमी देशों के सामने चुनौती है कि रूस को कैसे रोका जाए और यूक्रेन की कैसे मदद की जाए. इसमें अमेरिका की भूमिका अहम है.

By BBC News हिन्दी
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यूक्रेन संकट
Reuters
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यूक्रेन में रूस के हमले के एक महीने बाद तीन सम्मेलन हो रहे हैं. इन सम्मेलनों में हिस्सा लेने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन गुरुवार को ब्रसेल्स पहुंचे. एकजुटता दिखाने के लिए नेटो, जी-7 और यूरोपीय संघ तीनों ही बैठकें आयोजित कर रहे हैं. ऐसी एकजुटता जो पश्चिमी देशों में कम देखने को मिलती है. जो बाइडन इन तीनों सम्मेलनों में हिस्सा लेंगे. ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के किसी सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले वो पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं.

लेकिन, बाइडन का ये ब्रसेल्स दौरा महज प्रतीकात्मक नहीं है.

यूक्रेन में रूस के हमले ने पश्चिमी देशों के डिफ़ेंस अलायंस, नेटो में नए मक़सद की भावना जगा दी है. और जैसा कि यूरोपीय संघ, रूस के साथ अपने रिश्तों को ख़त्म करने की कोशिश में है, उसे दूसरे रिश्तों ख़ासकर अमेरिका के साथ अपने रिश्तों को और मज़बूती देनी होगी.

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की नेटो और ईयू दोनों सम्मेलनों में वीडियो लिंक के ज़रिए हिस्सा लेंगे.

यूक्रेन के लिए ज़्यादा मदद और पूर्वी सहयोगियों के लिए अधिक सैनिकों की तैनाती पर नेटो के सदस्य देशों के 30 राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहमत होंगे. इसका मक़सद यूक्रेन के साथ एकजुटता दिखाने का है. हालांकि, ये एकजुटता एक सीमा तक ही होगी.

इनमें से बहुत से सदस्य हथियारों की आपूर्ति करने के लिए तैयार हैं. ब्रिटेन का कहना है कि वो जी-7 और नेटो दोनों ही बैठकों का इस्तेमाल यूक्रेन के लिए रक्षात्मक सहयोग को पर्याप्त तौर पर बढ़ाने के लिए करेगा.

लेकिन गठबंधन ने ये साफ़ कर दिया है कि वो सीधे तौर पर शामिल नहीं होगा. गठबंधन ने यूक्रेन के लिए नो फ़्लाई ज़ोन की ज़ेलेंस्की की मांग को भी अनदेखा किया है. साथ ही ये साफ़ नहीं किया है कि अगर रूस, यूक्रेन में संघर्ष को बढ़ाता है तो गठबंधन इसका कैसे जवाब देगा. जैसे- अगर पश्चिमी हथियारों के काफ़िले पर हमला होता है या केमिकल या न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल होता है तो गठबंधन क्या करेगा.

नेटो की रेड लाइन अब तक उसकी सीमाओं पर ही खींची गई है.

सामूहिक सुरक्षा

25 देशों के 30,000 नेटो सैनिक पिछले कुछ हफ़्तों से नॉर्वे में ट्रेनिंग कर रहे हैं. ये एक्सरसाइज़ कोल्ड रिस्पॉन्स का हिस्सा है, एक ऐसा अभ्यास जो आज के दौर में अधिक महत्वपूर्ण हो गया है.

यूक्रेन की ही तरह नॉर्वे की सीमा भी रूस से लगती है. अंतर बस इतना है कि नेटो का सदस्य होने की वजह से नॉर्वे के पास 'सामूहिक सुरक्षा' का घेरा है. मतलब ये कि अगर एक पर हमला होता है तो वो नेटो के सभी देशों पर हमला माना जाएगा.

नार्वे के एक युवा सैनिक बीबीसी से कहते हैं, ''मेरा मानना है कि इस तरह का अभ्यास रूस जैसे देशों को ये साबित करने के लिए अच्छा है कि आप नेटो से मत उलझिए.''

नेटो के नेता इस बात पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि वो अपनी सुरक्षा को और कैसे बढ़ाए. वो पहले ही हज़ारों की संख्या में सैनिकों को गठबंधन के पूर्वी हिस्से में भेज चुके हैं, साथ ही साथ हवाई रक्षा के उपकरण, जंगी जहाज़ और लड़ाकू विमान भी भेजे गए हैं.

नेटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग इसे यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद ''न्यू नॉर्मल'' बताते हैं.

वहीं रूस को वो मिला है जो वो नहीं चाहता था, अपनी सीमाओं के निकट ज़्यादा नेटो गठबंधन के सैनिकों की तैनाती.

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स्वीडन और फ़िनलैंड यूरोपीय संघ के वो देश हैं जो नेटो के सदस्य नहीं हैं, लेकिन उन्होंने नॉर्वे में एक्सरसाइज़ के लिए अपनी सेनाओं को भेजा है. रूस के हमले के बाद से वो नेटो के बेहद क़रीब आते दिख रहे हैं.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप नेटो के अस्तित्व पर सवाल उठा चुके हैं, वहीं फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों संगठन को एक बार ''ब्रेन डेड'' भी बुला चुके हैं. लेकिन राष्ट्रपति बाइडेन का ब्रसेल्स दौरा इस बात का सबूत है कि वो रूस पर अंकुश लगाने के लिए नेटो को अब और अहम मानते हैं.

यूरोपीय संघ की हैरान कर देने वाली एकता

यूरोपीय संघ के सम्मेलन में रक्षा रणनीति भी अहम भूमिका निभाएगी. यहां सदस्य देशों के नेता उन योजनाओं को मंज़ूरी देंगे जो सदस्य देशों को सैन्य योजना, इंटेलिजेंस और साज़ोसामान जुटाने के लिए एक साथ लाएंगे. 5,000 सैनिकों की तैनाती भी एक महत्वकांक्षा है.

ये सब "रणनीतिक स्वायत्तता" वाली थीम का हिस्सा है. तर्क ये दिया जाता है कि संप्रभु यूरोप, ज़्यादा सुरक्षित यूरोप है. चाहे इसके लिए ऊर्जा और सेमीकंडक्टर चिप्स की आपूर्ति हासिल करना हो या सैन्य ख़र्च को बढ़ाना हो.

लेकिन 27 देशों के यूरोपीय संघ के लिए बड़ा सवाल ऊर्जा आपूर्ति का है क्योंकि वो इसके लिए रूस से अलग देखने की कोशिश करते है. सभी 27 देशों ने शुरुआत में प्रतिबंध पर जो एकता दिखाई है उसके बाद आगे क्या करना है इस पर सवाल बना हुआ है और बिखराव भी दिखता है.

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जर्मन चांसलर ओलाफ़ स्कोल्ज़ ने सार्वजनिक तौर पर रूसी गैस और तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने की बात की निंदा की है. साथ ही कहा है कि ये क़दम यूरोप को मंदी में धकेल देगा. सम्मेलन से पहले उन्होंने कहा, ''प्रतिबंधों का असर रूसी नेतृत्व से ज़्यादा यूरोपीय देशों पर नहीं होना चाहिए. ये हमारा सिद्धांत है.''

'ब्लड मनी'

यूरोपीय संघ के नेता ऊर्जा की बढ़ती क़ीमतों पर भी चर्चा करेंगे. लेकिन ऐसे देश भी हैं जो कार्रवाई के लिए दबाव बना रहे हैं क्योंकि वो नहीं चाहते कि ऊर्जा की ख़रीद का पैसा क्रेमलिन को जाए, इसके बारे में वो निराशा भी जता रहे हैं. एक यूरोपीय राजनयिक कहते हैं, '' ये ब्लड मनी है. मुझे नहीं लगता कि कुछ देश स्थिति की गंभीरता को समझते हैं.''

ऐसे में सम्मेलन में राष्ट्रपति बाइडन की तरफ़ से यूरोप को अधिक लिक्विफ़ाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) देने की पेशकश पर सबकी नज़रें होंगी. अमेरिका, प्राकृतिक गैस का दुनिया का सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है. ऐसा भी माना जा रहा है कि बाइडन, रूसी नेताओं और ओलीगार्क पर और अधिक प्रतिबंधों का एलान कर सकते हैं.

लेकिन इस हफ़्ते यूरोपीय संघ के नए प्रतिबंधों की संभावना कम ही दिखती है. ब्रसेल्स में कुछ लोग इसे ''थकान'' कहते हैं जबकि बाकी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ये जायज़ा लेने का सही समय है.

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