अब बिना हिजाब पहने रेस्टोरेंट में खाने पर लड़की गिरफ्तार, घरों पर क्रॉस निशान क्यों बना रहा ईरान?
ईरान हमेशा से ऐसा देश नहीं था, खासकर 1979 में इस्लामिक सरकार बनने से पहले ईरान में महिलाओं को अपने तरीके से जीवन जीने की पूरी आजादी थी और महिलाओं के लिए बिकनी पहनना आम बात थी।
तेहरान, सितंबर 30: ईरान में हिजाब के खिलाफ जारी भीषण प्रदर्शन के बीच कट्टरपंथी सरकार भी झुकने के लिए तैयार नहीं है और अब रेस्टोरेंट में बिना हिजाब पहने नाश्ता करने वाली महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, डोन्या राड नाम की एक ईरानी महिला को शुक्रवार को बिना हिजाब पहने नाश्ता करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
बिना हिजाब पहने नाश्ता, और गिरफ्तारी
ईरानी पत्रकार और कार्यकर्ता मसीह अलीनेजाद ने ट्विटर पर इस जानकारी को साझा किया है और उन्होंने लिखा है कि, "बिना हिजाब पहने नाश्ता करने वाली महिला को गिरफ्तार कर लिया गया है और यह 21वीं सदी के ईरान में एक महिला होने की एक भीषण कहानी है।" उन्होंने कहा कि, "उसका नाम डोन्या रेड है और महिलाओं ने हर दिन सविनय अवज्ञा आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है।" आपको बता दें कि, 22 साल की युवती महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत होने के बाद से ही ईरान में पिछले 10 दिनों से भारी विरोध प्रदर्शन जारी है और ईरान के दर्जनों शहरों में महिलाएं सड़कों पर हैं और कट्टर सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर रहे हैं। वहीं, ईरान में अभी तक 88 प्रदर्शनकारियों के मारे जाने की खबर है।
घरों पर बनाया जा रहा निशान
वहीं, ईरानी पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने अपने एक और ट्वीट में कहा है कि, ईरान की सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर सख्त कार्रवाई करने के लिए उन्हें निशाना बनाना शुरू कर दिया है और उनके घरों पर निशान बनाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि, वो लोग, जो अहिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें भी पकड़ा जा रहा है। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा है कि, लोगों की पहचान के लिए उनके घरों पर क्रॉस निशान बनाए जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं के प्रदर्शन को इस बार भारी संख्या में पुरूषों का साथ मिल रहा है, लिहाजा इस्लामिक कट्टरपंथी सरकार इस बात से डरी हुई है और माना जा रहा है, कि धीरे धीरे जिन दिन घरों पर निशान बनाए गये हैं, उनके ऊपर कार्रवाई की जाएगी।
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पहले ऐसा नहीं था ईरान
ईरान हमेशा से ऐसा देश नहीं था, खासकर 1979 में इस्लामिक सरकार बनने से पहले ईरान में महिलाओं को अपने तरीके से जीवन जीने की पूरी आजादी थी और महिलाओं के लिए बिकनी पहनना आम बात थी। ईरान में सिर्फ त्योंहारों के मौके पर ही बुर्का पहनने का चलन था, लेकिन फिर साल 1979 में इस्लामी क्रांति हो गई और फिर ईरान में महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया। ईरान में महिलाओं के अधिकार काफी सीमित कर दिए गये और देश में महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया। शरिया कानून के तहत महिलाओं की आजादी छीनी गई और उन्हें इस तरह से हिजाब पहनने के लिए कहा गया, जिससे उनका बाल बिल्कुल भी नही दिखे। हालांकि, पहले फिर भी हिजाब को लेकर नियम थोड़े नरम थे, लेकिन बाद में आने वाली सरकारों ने मौलवियों को खुश करने के लिए इस नियम को और सख्त करना शुरू किया और मौजूदा राष्ट्रपति रायसी ने हिजाब पहनने के सख्ततम कानून की पैरवी की है और अगर ईरान में सार्वजनिक जगहों पर कोई महिला बगैर हिजाब नजर आती है, तो फौरन उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है।
ईरानी महिलाओं की क्या है मांग?
ईरान की महिलाएं पिछले कई सालों से अपनी आजादी और बराबरी के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं और एक एनजीओ इक्लाविटी नाऊ से बात करती हुई दिमा दबौस नाम की एक महिला ने कहा कि, हमारी लड़ाई बस इतनी है, कि हमारे साथ अपराधियों जैसा सलूक होना बंद हो। हमारे ऊपर नजर नहीं रखी जाए और अगर हम बाजार जाएं, तो हमारी निगरानी नहीं की जाए। उन्होंने कहा कि, हमारे पास भी अभिव्यक्ति की आजादी हो, बोलने की समानता हो और हमारे पास भी मानवाधिकार हो। लेकिन, ईरान की महिलाओं को अधिकार देने की बात से ईरान के मौलवी बिल्कुल सहमत नहीं हैं और वो इसे धर्म के खिलाफ बताते हैं।
फिर से आवाज उठा रही महिलाएं
महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में संदिग्ध मौत के बाद एक बार फिर से ईरान में बवाल मचा हुआ है और ईरान की महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिसमें ईरान की महिलाएं हिजाब को जला रही हैं और अपने बाल काटकर इस्लामिक सरकार का विरोध कर रही हैं। अभी तक 16 हजार से ज्यादा महिलाओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है और सैकड़ों महिलाओं को गिरफ्तार किया है। प्रदर्शनकारियों पर गोली भी चलाई गई हैं, जिसमें दर्जनों लोगों के घायल होने की भी खबर है। वहीं, ईरान की महिलाएं उस वक्त को याद कर रही हैं, जब उनसे ठीक पहले की पीढ़ी के पास आजादी होती थी और उनके पास अपनी मर्जी से जीने का हक हुआ करता था।
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